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पर्यटन मंत्रालय ने की शुरू की वेबिनार सीरीज़ "अंग्रेजों के खिलाफ भारत के संघर्ष की कम ज्ञात कहानियां" शीर्षक

देखो अपना देश वेबिनार श्रृंखला की 47वीं कड़ी "अंग्रेजों के खिलाफ भारत के संघर्ष की कम ज्ञात कहानियां" शीर्षक से सुश्री अकीला रमन और सुश्री नयनतारा नायर द्वारा प्रस्तुत किया गया।

पर्यटन मंत्रालय ने की शुरू की वेबिनार सीरीज़ "अंग्रेजों के खिलाफ भारत के संघर्ष की कम ज्ञात कहानियां" शीर्षक

Friday August 14, 2020 , 12 min Read

देश अपने 74वें स्वतंत्रता दिवस समारोह का जश्न मनाने के लिए तैयार है, 12 अगस्त 2020 को पर्यटन मंत्रालय ने देखो अपना देश वेबिनार श्रृंखला के तहत "अंग्रेजों के खिलाफ भारत के संघर्ष की कम ज्ञात कहानियां" शीर्षक नामक 47वां वेबिनार प्रस्तुत किया।


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फोटो साभार:FlowerAura


देखो अपना देश वेबिनार श्रृंखला की 47वीं कड़ी "अंग्रेजों के खिलाफ भारत के संघर्ष की कम ज्ञात कहानियां" शीर्षक से सुश्री अकीला रमन और सुश्री नयनतारा नायर द्वारा प्रस्तुत किया गया। ये दोनों स्टोरीट्रेल्स  नामक एक कंपनी का प्रतिनिधित्व करते हैं, एक ऐसा संगठन है जो बच्चों और वयस्कों के लिए कहानी पर आधारित घूम-घूमकर, ऑडियो के माध्यम से, स्थानीय अनुभवों और सीखने के कार्यक्रमों के माध्यम से लोगों के जागरूक करता है। उनकी कहानियां भारत के इतिहास, संस्कृति और जीवन के तरीके को दर्शाती हैं। इस वेबिनार में उनके प्रस्तुतकर्ता हमें अंग्रेजों के खिलाफ भारत के संघर्ष की कम ज्ञात कहानियों के बारे में बताते हैं। देखो अपना देश वेबिनार श्रृंखला एक भारत, श्रेष्ठ भारत के तहत भारत की समृद्ध विविधता को प्रदर्शित करने का एक प्रयास है।

1) शिवगंगा- वेलु नाचियार

यह कहानी श्री मुथु वदुगनाथा पेरिया ओडया थेवर के शासन के दौरान शिवगंगा में स्थापित है। उनका विवाह रामनाथपुरम की राजकुमारी वेलु नाचियार से हुआ था। राजा मुथु का अपने पड़ोसी, आर्कोत के शक्तिशाली राजा के साथ विवाद हो गया था। उस समय, दक्षिण भारत में भी ब्रिटिश सत्ता बढ़ रही थी, और अर्कोट के नवाब से अंग्रेजों का मजबूत गठजोड़ था। 1772 में, अंग्रेजों ने नवाब के लिए कब्जा करने का इरादा रखते हुए शिवगंगा पर हमला किया। श्री मुथु ने उनसे बातचीत करने के लिए दूत भेजे। ऐसा लगता था कि अंग्रेज उनके साथ बात करने के लिए सहमत हो गए थे, इसलिए शिवगंगा सेना के सैनिक शांत हो गए थे। तब, हमला कर ब्रिटिश सेना ने राजा मुथु सहित सभी को मौत के घाट उतार दिया।


इस कहानी का सार श्रीमती वेलु नचियार द्वारा लड़ी गई लड़ाई थी। वह अपने पति की मौत का बदला लेने के लिए दृढ़ थी। उसे मारुड़ ब्रदर्स का समर्थन प्राप्त था, उसके साथ कई बड़े सरदारों और वफादारों का भी पूरा समर्थन था। श्रीमती वेलु नचियार को उनके अंगरक्षकों के नेता श्री उदयाल द्वारा संरक्षित किया गया था। अंग्रेजों ने उसे पकड़ लिया और उससे वेलु नचियार के ठिकाने का पता लगाने के लिए काफी प्रताड़ित किया। उदयाल ने अंग्रेजों को कुछ भी नहीं बताया और अंतत: वह मारा गया। बहादुर वेलु ने महिलाओं की एक और बटालियन खड़ी की और इसे उदयाल रेजिमेंट नाम दिया। इसकी कमान वफादार कुइली ने संभाली थी। वेलु नचियार ने मैसूर के राजा हैदर अली से मुलाकात की और उन्हें मदद करने के लिए मना लिया। हैदर अली ने वेलु नचियार को शिवगंगा वापस प्राप्त करने में मदद के लिए 5,000 सैनिकों को भेजा।


लेकिन, अब तकशिवगंगा को अंग्रेजों के हवाले कर दिया गया थाऔर उन्होंने उस जगह को अपना मान लिया था। कुइली ने कुछ महिला छापामारों को इस कार्य के लिए लगाया और जब खाड़ी में अंग्रेजों ने उनको पकड़ा तो उसने गोला बारूद भंडार में घुसकर आग लगा दी। इस प्रक्रिया में उनकी मृत्यु हो गई।


वेलु नचियार शिवगंगा की महारानी बन गईं और दस वर्षों तक शासन किया। 1947 में रियासतों के विलय होने तक शिवगंगा पर उनके परिवार का ही शासन रहा। भारत सरकार ने 2008 में उनके सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया।



(2) मुंबई- बेंजामिन हॉरनिमन

हॉरनिमन सर्कल गार्डन दक्षिण मुंबई में एक बड़ा पार्क है, जो मुंबई के व्यस्त किले जिले में स्थित है। इसका नाम द बॉम्बे क्रॉनिकल नामक एक समाचार पत्र के ब्रिटिश संपादक, श्री बेंजामिन हॉरनिमन के नाम पर हैं।


बॉम्बे क्रॉनिकल की शुरुआत सर फिरोजशाह मेहता ने की थी। इसके संपादक के रूप में, हॉरनिमन ने उपनिवेशवाद के खिलाफ बात की। उन्होंने भारतीय राष्ट्रवादी कारणों के बारे में बोलने के लिए बॉम्बे क्रॉनिकल का उपयोग किया।


फिर 1919 में अमृतसर में जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ। अंग्रेजों को पता था कि इस घटना को लेकर कड़ी प्रतिक्रिया होगी। अंग्रेजों ने तुरंत प्रेस के पर कतर दिए। हॉरनिमन ने सेंसरशिप को परिभाषित किया। उसने पंजाब के बाहर नरसंहार की पहली रिपोर्ट प्रकाशित की। उन्होंने लगातार इसके बारे में बताना जारी रखा और इससे वास्तव में अंग्रेजों को चिंता में डाल दिया। उन्होंने हॉरनिमन को इंग्‍लैंड वापस भेज दिया। हॉरनिमन ने अपने साथ हुई ब्रिटिश अत्याचार की इन रिपोर्टों और तस्वीरों को इंग्‍लैंड में मंगवा लिया और समान रूप से उसे ब्रिटिश जनता के लिए सामने पेश कर दिया। इन सब ने ब्रिटिशों को औपनिवेशिक शासन के कई कठोर सत्यों का सामना करने के लिए मजबूर किया। जलियांवाला बाग हत्याकांड को संसद के सामने प्रस्तुत किया गया और कई ब्रिटिश राजनेताओं ने इसकी निंदा की। हॉरनिमन ने इंग्‍लैंडमें अपने सभी लेखन से भारत में ब्रिटिश शासन की क्रूरताओं के खिलाफ विरोध जारी रखा। 1926 में, उन्होंने निर्वासन आदेश की खामियों का फायदा उठाया और अपने कार्य को जारी रखने के लिए वापस भारत लौट आए।


आज भी, हॉरनिमन सर्कल मेंआप एक लाल इमारत को देख सकते हैं जहां गुजराती में छपने वाले एक समाचार पत्र बॉम्बे समाचार का कार्यालय है। यह पूरे एशिया का सबसे पुराना अखबार है। इसे 1822 में शुरू किया गया था और लगभग 200 वर्षों के बाद भी यह निरंतर चल रहा है, जिसका नाम अब मुंबई समाचार हो गया है। वह भवन बॉम्बे क्रॉनिकल का जन्मस्थान भी था और यह वही स्थान है जहाँ हॉरनिमन ने काम किया था।


भारतीय स्वतंत्रता के तुरंत बाद, 1948 में हॉरनिमन की मृत्यु हो गई। जहां से बॉम्बे क्रॉनिकल कार्य करता था, उस सर्कल का नाम बदलकर हॉरनिमन सर्कल रखा गया- एक ऐसे अंग्रेज के सम्मान में जिसने भारतीयों को एक स्वतंत्र प्रेस की शक्ति दिखाई।



(3) भारत को नियंत्रित करने के लिए संस्थाएँ

ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी भारतीय उपमहाद्वीप के कुछ हिस्सों पर शासन करने वाली एक निजी कंपनी थी। ईस्ट इंडिया कंपनी एक निजी लिमिटेड कंपनी थी, जो लंदन में निदेशक मंडल को रिपोर्ट करती थी। जैसे-जैसे भारत में उनकी भूमिका में वृद्धि हुई, उन्होंने भारत में शासन करना अधिक मुश्किल और कठिन पाया। इसलिए उन्होंने भारत में प्रबंधन और नियंत्रण के लिए कुछ ब्रिटिश संस्थानों की शुरुआत की, जिनमें न्यायपालिका, रेलवे, सेना और अंग्रेजी शिक्षा शामिल हैं।


अ) न्यायपालिका- अंग्रेजों को भारतीय कानूनी प्रणाली का उपयोग करना बहुत कठिन लगा। इसलिए उन्होंने सिर्फ भारत में अपने कानून का आयात कियाऔर इसके लिए उन्होंने मद्रास, बॉम्बे और कलकत्ता में तीन अदालतें स्थापित कीं। ये अदालतें उन प्रेसीडेंसी के सुप्रीम कोर्ट के रूप में कार्य करती थीं। आप आज भी इन तीनों शहरों में इन खूबसूरत न्यायालय की इमारतों को देख सकते हैं।


इन अदालतों ने घोषणा की कि कानून के तहत सभी समान थे। लेकिन एक भारतीय न्यायाधीश एक यूरोपीय पर निर्णय नहीं दे सकता था। भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड रिप्पन ने इल्बर्ट बिल के साथ इस अधिकार को स्थापित करने का प्रयास किया, लेकिन वे सफल नहीं हो पाए।



इल्बर्ट बिल ने भारतीयों का मोहभंग कर दिया और उन्हें उनके साथ हुए अन्याय के बारे में जगाया। यह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए एक और प्रमुख बिंदु साबित हुआ।


ब) रेलवे- चेन्नई का रॉयपुरम स्टेशन पूरे भारत में सबसे पुराना मौजूदा रेलवे स्टेशन है। तो अंग्रेजों ने भारतीयों को यह रेलवे प्रणाली उपहार में क्यों दिया? क्योंकि वे व्यापार के लिए यहां आए थे और उन्हें अपने माल को जल्दी और कुशलता से स्थानांतरित करने की आवश्यकता थी। दूसरा कारण, सुरक्षा के लिए अपने सैनिकों को तेजी से एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजना था। 1850 के दशक तक, अंग्रेजों ने अपने बड़े बंदरगाहों के अंदरूनी हिस्सों को जोड़ने के लिए रेलवे लाइनें बिछाई थीं। लेकिन भारतीय रेलवे प्रणाली के कुछ अनपेक्षित परिणाम भी थे।


उन पुरानी भारतीय रेलों में गोरे लोगों के लिए आरक्षित बोगियां थीं। अन्य बोगियां सभी भारतीयों के लिए थीं - हर सामाजिक वर्ग और जाति, बिना किसी वर्ग और जाति के भेद के एक डिब्बे में यात्रा करने को बाध्य थे। भारतीयों के लिए इसे स्वीकार करना बहुत कठिन था। यह विचार कि सभी लोग समान थे, अधिकांश भारतीयों के लिए एक नई अवधारणा थी। लेकिन एक रेल में सवारी ने उन्हें जल्द इससे अवगत करा दिया। यह रेलवे ही था कि भारतीय अब खुद को भारतीय समझने लगे और अपनी पहचान पाने के लिए छटपटाने लगे।


कानून के तहत समानता का विचार के कारण अब भारतीयों को दूसरी श्रेणी के रेलवे बोगियों में यात्रा की अनुमति मिली और यह राष्ट्रवाद के रूप में उभरा। विडंबना यह है कि जिस प्रणाली को अंग्रेजों ने भारत में शासन करने के लिए तैयार किया था, आखिरकार उन्होंने उसे खो दिया।



स) सशस्त्र सेना- क्या आप जानते हैं कि मद्रास रेजिमेंट भारतीय सेना की सबसे पुरानी रेजिमेंट है? इसका गठन मेजर स्ट्रिंजर लारेंस द्वारा किया गया था, जिन्होंने भारतीयों के समूह को इकट्ठा किया और उन्हें एक युद्धक बल बनाया। सेना आगे बढ़ी और इससे अंग्रेजों को बड़ी सुरक्षा भी मिली। लेकिन कुछ ऐसे स्थान थे जहाँ सेना ने अपने ब्रिटिश आकाओं के खिलाफ जैसे द वेल्लोर म्युटिनी और 1857 के विद्रोह मेंकार्य कियाजिससे अंग्रेजों का ध्यान इस ओर अब तेजी से गया। यह 1857 का विद्रोह ही था कि भारत को ब्रिटिश क्राउन द्वारा अपने शासन के अधीन ले लिया गया था। 90 वर्षों तक चलने वाले इस काल को आज ब्रिटिश राज कहा जाता है। सेना पर भी अधिकार कर लिया गया था। लेकिन इसे खत्म नहीं किया गया था। यह बहुत कीमती था कि इसे छोड़ दिया जाए। और इस तथ्य में दिखाया गया है कि दो विश्व युद्धों में करीब 20 लाख से अधिक भारतीयों ने बहुत सम्मानजनक रूप से अंग्रेजों के लिए लड़ाई लड़ी।


द) ब्रिटिश भारत में अंग्रेजी शिक्षा- अंग्रेजों को इस देश के विशाल आकार के कारण संचालित करना बहुत मुश्किल हो गया। इसलिए उन्होंने भारतीयों को शिक्षित करने और उनका उपयोग करने का निर्णय लिया। वे शिक्षा के माध्यम के रूप में अंग्रेजी का उपयोग करने का निर्णय लिया। उन्होंने मद्रास, कलकत्ता और बॉम्बे में भी विश्वविद्यालय स्थापित किए– जो आज भी इन जगहों पर यथावत हैं।


समय के साथ, अंग्रेजी बोलने वाले भारतीयों की एक पूरी नई पीढ़ी तैयार थी, और काफी अच्छी भी थी। उन्होंने कार्यालयों, बैंकों, सेना, रेलवे-कहीं भी सरकारी नौकरी की। उन्हें जल्दी पता चल गया कि भारतीयों का शोषण किया जा रहा है। सभी प्रमुख स्वतंत्रता सेनानियों न केवल स्पष्ट अंग्रेजी बोलते थे बल्कि उनमें से कुछ ने तो वास्तव में इंग्‍लैंड में प्रशिक्षण भी लिया था: जिनमें गांधी, नेहरू, जिन्ना, बोस सहित और कई नाम शामिल थे। और इसलिए भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित की गई शिक्षा प्रणाली थी, कि जिसने अप्रत्याशित रूप से उन्हें एकजुट भी किया।



(4) मदुरै-मासी स्ट्रीट

खादी परिधान में आकर्षक दिखने वाले महात्मा गांधी की छवि प्रतिष्ठित हो चुकी थी। यहां तक कि अपनी इसी वेशभूषा धोती, शॉल और चप्पल पहनकर वह किंग जॉर्ज पंचम से मिलने इंग्लैंड भी गए। गांधी जी वास्तव में अपने कपड़ों के माध्यम से भारत की आर्थिक स्थिति के बारे में आम भारतीयों को अवगत करा रहे थे। भारत हमेशा से अपने सूती कपड़े के लिए प्रसिद्ध था। जब अंग्रेज यहां आए, तो वे भी अपने साथ बहुत सारी कपास ले गए। धीरे-धीरेउन्होंने यहां से कच्चा कपास ले जाना शुरू कर दिया, इंग्‍लैंड में इसे बुनाऔर भारत में तैयार कपड़े को उच्च लाभ पर बेच दिया। इसका मतलब यह हुआ कि भारत में सूत काटने वाले और बुनकर बेरोजगार रह गए थे। धीरे-धीरेपूरी तरह से स्थापित कपास बुनाई उद्योग खत्म हो गया था।


1921 में, गांधी जी तमिलनाडु में मदुरै की यात्रा पर थे। वे सड़कों गरीबी को देखकर आश्चर्यचकित रह गए था। बहुत से लोग इतने गरीब थे कि उनके कमर पर केवल थोड़े कपड़े या बहुतों के शरीर पर कम वस्त्र थे। गांधी जी इसे देखकर भयभीत हो गए थे। उन्होंने फैसला किया कि वे वही पहनेगें जो राष्ट्र के सबसे गरीब ने पहना हो। अगली सुबह, 22 सितंबर, 1921 कोगांधी जी मदुरै में जब अपने कमरे से निकले, एक छोटी धोती, उनके पैरों में सैंडल और एक शॉल पहने हुए थे। और तब से, ये कपड़े उनकी पहचान बन गएऔर वे अपने जीवन के अंत तक इन्हीं कपड़ों में रहे।



गांधी जी ने भारतीयों से चरखे से अपने लिए सूत कातने और इसके साथ खादी का कपड़ा बनाने का आग्रह किया। देश भर के सभी वर्गों के लोगों ने इसे उत्साह से अपनाया। इस कार्य के साथ, गांधी जी ने स्वतंत्रता आंदोलन को शिक्षित अभिजात वर्ग के हाथों से वापस ले लिया और इसे आम जनता के हाथों में सौंप दिया। तब सेहाथ से बने कपास के वस्त्र यानि खादी स्वतंत्रता सेनानियों की वर्दी और स्वतंत्रता आंदोलन का प्रतीक बन गया।


जिस घर में गांधी जी ने अपना नया परिधान अपनाया था, वह अभी भी मदुरै में है। आज, भूतल पर एक खादी की दुकान है। पहली मंजिल पर एक छोटा सा संग्रहालय है जिसमें इस ऐतिहासिक क्षण को चिह्नित किया गया है।


सुश्री रूपिंदर बरार ने अपने समापन भाषण में पर्यटन मंत्रालय के अतुल्य भारत पर्यटक सुविधा प्रमाणन कार्यक्रम के बारे में बात की, जो नागरिकों को ऑनलाइन सीखने में सक्षम बनाएगा, और एक प्रमाणित सूत्रधार भी बनेगा, जो उन्हें हमारे इस सुंदर देश को प्रदर्शित करने का अवसर प्रदान करेगा। यह आगे उन्हें जिम्मेदार होने और उनके अधिकारों एवं कर्तव्यों का ठीक से निर्वहन कर सशक्त भी करेगा।


देखो अपना देश वेबिनार श्रृंखला को इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के राष्ट्रीय ई गवर्नेंस विभाग के साथ तकनीकी साझेदारी में प्रस्तुत किया गया है।


वेबिनार के सत्र अब https://www.youtube.com/channel/UCbzIbBmMvtvH7d6Zo_ZEHDA/featured पर उपलब्ध हैं और साथ ही भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय के सभी सोशल मीडिया हैंडल पर भी उपलब्ध हैं।


(सौजन्य से: PIB_Delhi)