खुद को बताते हैं कछुओं के मम्मी-पापा, समुद्र तट पर कछुओं की बचा रहे हैं जान
ओडिशा राज्य के गुंडाबाला क्षेत्र के रहने वाले बिचित्रानंद बिस्वाल खुद को कछुओं का माता-पिता मानते हैं। वे कछुओं को शिकारियों से बचाने के लिए सराहनीय पहल कर रहे हैं।
आज समुद्री जीवन खतरे में है और हिमशैल गिरने और निरंतर तटवर्ती ड्रिलिंग के साथ जल जीव मनुष्य के लिए एक डंप यार्ड में बदल गए हैं। इन सब के बीच ओडिशा राज्य के गुंडाबाला क्षेत्र के रहने वाले बिचित्रानंद बिस्वाल 1996 से ओलिव रिडले कछुओं को विलुप्त होने से बचाने के लिए प्रयासरत हैं।
बिस्वाल अपने काम को लेकर चौबीसों घंटे सतर्क रहते हैं और कछुओं पर नजर रखते हैं क्योंकि यह स्थल शिकारियों के लिए शिकार करने का एक आसान स्थान है। एडेक्स लाइव के अनुसार, 2000 के बाद से बिस्वाल वन विभाग के साथ लगातार समुद्र तट पर कछुए अंडे देने वाले स्थान पर नज़र रखते हुए गश्त लगा रहे हैं।
इस दौरान, समुद्र तट पर रचे गए अंडे पास की हैचरी में स्थानांतरित कर दिए जाते हैं, और जब वे हैच करते हैं तो पशु संरक्षण टीम उन्हें समुद्र में छोड़ने में मदद करती है। अपने जुनून के लिए 37 वर्षीय बिचित्रानंद को वन्यजीव संरक्षण के लिए बीजू पटनायक पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है।
कछुओं के प्रति अपने प्रेम के विषय में ‘द लॉजिकल इंडियन’ से बात करते बिस्वाल ने कहा,
“जिस तरह एक माँ अपने नवजात शिशु की रक्षा करती है, उसी तरह इन घोंसलों के शिकार स्थलों की देखभाल करना ज़रूरी है। हैचिंग प्रक्रिया जुलाई और दिसंबर के बीच होती है, जिसके बाद मैं कछुओं के छोटे बच्चों को बारीकी से देखता हूं, जब तक वे समुद्र में नहीं चले जाते। इन शिशु कछुओं के लिए मुझे माता-पिता बनना बहुत अच्छा लगता है।”
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बिचित्रानंद बिस्वाल कहते हैं,
“हमने स्थानीय समूहों की मदद से समुद्र तट की सफाई भी कराई है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि तटीय क्षेत्र प्रदूषण से रहित हैं। हमें यह महसूस करने की आवश्यकता है कि हमें अपने आराम या लालच के लिए जानवरों के प्राकृतिक आवास को परेशान नहीं करना चाहिए। यदि हम लापरवाही से कचरा जल निकायों में डंप करते हैं, तो उनका पूरा पारिस्थितिकी तंत्र परेशान हो जाता है। वास्तव में, अगर कोई हमारे साथ ऐसा करता है तो हम कैसा महसूस करेंगे।”
इनके काम से प्रेरित होकर दो युवाओं, सौम्य रंजन बिस्वाल और दिलीप कुमार बिस्वाल ने लुप्तप्राय प्रजातियों के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए राज्य भर में 800 किमी की यात्रा की है। यह कारनामा लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में भी दर्ज किया गया था।