मुंबई के कचरा उठाने वालों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए मिशन पर हैं टीनेजर संजना
अक्सर कक्षा 10वीं का छात्र अपने कॉलेज की प्लानिंग कर रहा होता है। या स्कूल लाइफ एंजॉय कर रहा होता है। लेकिन बॉम्बे स्कॉटिश स्कूल की दसवीं कक्षा की छात्रा संजना रुणवाल इन सबके अलावा यह भी सुनिश्चित कर रही है कि उनका वर्तमान सार्थक हो। टीनेजर संजना समुदाय में सकारात्मक बदलाव लाने और अपने आसपास के लोगों, खासकर मुंबई के रैगपिकर्स (कचरा उठाने वाले) और क्लीनर्स के जीवन में बदलाव लाने के लिए अथक प्रयास कर रही हैं। पढ़ने की शौकीन होने के अलावा संजना को बास्केटबॉल काफी पसंद है। इसके अलावा वह शानदार पियानो भी बजाती हैं। संजना, शहर में अनेकों रैगपिकर्स के कल्याण के लिए काम कर रही हैं। मुंबई के एक एनजीओ ‘क्लीन-अप फाउंडेशन’ के साथ मिलकर वह शहर में कूड़ा-कचरा बीनने वालों के हित में अभियान चला रहीं हैं।
संजना का यह कोई पहला सामाजिक काम नहीं है। यह सब तब शुरू हुआ था जब उनके स्कूल ने 2018 में कृत्रिम अंगों (prosthetic limbs) के लिए धन जुटाने का अभियान शुरू किया था। वकील बनने की इच्छा रखने वाली संजना ने सक्रिय रूप से दान अभियान में भाग लिया और आठ लोगों को चलने योग्य बनाने के लिए पर्याप्त धन एकत्र करने में कामयाब रही।
योरस्टोरी से बात करते हुए संजना कहती हैं, “जब मैंने अभियान के बारे में सुना तो मेरे दिमाग में पहली बात यह आई कि लोग बिना पैरों के कैसे जीवन व्यतीत करते होंगे। चूंकि कृत्रिम अंग उन्हें अपने पैरों पर वापस लाने का एकमात्र तरीका था, इसलिए मैं वास्तव में उस अभियान में अपना योगदान देना चाहती थी। इसलिए, मैंने क्राउडफंडिंग प्लेटफॉर्म, फ्यूलड्रीम, और अपने व्यक्तिगत सोशल मीडिया हैंडल पर इस अभियान को आगे बढ़ाया। अंत में, मैं 84,000 रुपये एकत्र करने में सफल रही।”
संजना ने बाद में अपने भाई सिद्धार्थ रूणवाल द्वारा स्थापित क्लीन-अप फाउंडेशन की गतिविधियों को गति दी। इसकी एक मुख्य पहल मुंबई में सबसे उपेक्षित लोग - कचरा क्लीनर और रैगपिकर्स के कल्याण के लिए काम करना है। संजना ने न केवल मुफ्त सुरक्षा उपकरण वितरित किए, बल्कि उन्हें भोजन और स्वच्छ पेयजल भी प्रदान किया। इस पहल के तहत 350 श्रमिकों को लाभ मिला।
जरूरी लेकिन बहुत उपेक्षित
रैगपिकर्स शहर के वर्कफोर्स का एक अभिन्न हिस्सा हैं। हर दिन कचरे की सफाई, प्लास्टिक की बोतलें, पैकिंग मैटेरियल और बेकार कागज, समोसे से लेकर सब्जी के छिलकों तक वे सब उठाते हैं। अंत में हर प्रकार के कचरे को अलग-अलग रखते हुए उसे बेचते हैं। इससे वे हमारे शहरों को साफ सुथरा रखने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। लेकिन समुदाय सभ्य जीवन जीने के लिए संघर्ष करता है और उनमें से ज्यादातर गरीबी में रहते हैं।
भारत के अनुमानित 1.5 मिलियन रैगपिकर्स अमानवीय परिस्थितियों में काम करते हैं, हानिकारक पदार्थों के संपर्क में आते हैं, उनके लिए बुनियादी नागरिक सुविधाओं की कमी होती है, और मुश्किल से थोड़ा बहुत कमा पाते हैं।
उनकी पीड़ा को समझने के बाद, संजना ने रैगपिकर्स की मदद करने का मन बनाया। वह क्लीन-अप फाउंडेशन में शामिल हो गईं और उसके संचालन को संभाला क्योंकि सिद्धार्थ को अपनी शिक्षा के लिए विदेश जाना पड़ा। वह कहती हैं, “फाउंडेशन, जो पहले से ही कूड़ा बीनने वालों के कल्याण की दिशा में काम कर रहा था, ने बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) के वार्ड कार्यालयों में कई वाटर प्यूरीफायर स्थापित किए, जिससे हर दिन 12,000 सफाईकर्मियों को पीने के साफ पानी तक पहुंचने में मदद मिली। हालाँकि, यह सिर्फ पहला कदम था। मुझे एहसास हुआ कि अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। मैंने 2019 में 'केयरिंग फॉर द क्लीनर्स' पहल को पूरी तरह से रैगपिकर्स के जीवन को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से लॉन्च किया।"
फाउंडेशन ने मुंबई में 200 से अधिक कचरा बीनने वालों को रेनकोट और गमबूट वितरित किए। इसके पीछे यह आइडिया था कि भारी बारिश और आंधी के दौरान सफाईकर्मियों की सेहत और सुरक्षा को बनी रहे। संजना कहती हैं कि उनके अभियानों में उन्हें बीएमसी वार्ड ऑफिसर, चंद्रकांत ताम्बे का काफी सहयोग मिला। उनकी मदद के चलते ही उनके अभियान सफल हो पाए। चंद्रकांत ताम्बे ने संजना की रैगपिकर्स की पहचान और अन्य कानूनी औपचारिकताओं को पूरा करने में काफी मदद की।
उज्ज्वल दिखता भविष्य
पढ़ाई और उसके साथ किसी सामाजिक पहल को मैनेज करना आसान नहीं है। संजना एक दिन में औसतन दो घंटे सामाजिक कार्य करती हैं। वह कई पहलों के माध्यम से देश भर में कई और रैगपिकर्स तक पहुंचने की योजना बना रही है। वह कहती हैं, "ये तो बस शुरुआत है। मैं भारत में सफाईकर्मियों के कल्याण के लिए बहुत कुछ करना चाहती हूं। मेरी तत्काल योजना चिकित्सा बीमा प्रदान करने के लिए धन जुटाने की है क्योंकि बहुत से रैगपिकर्स अक्सर बीमार पड़ जाते हैं, हो सकता है वे इसिलए बीमार पड़ते हों क्योंकि वे इस तरह की अस्वच्छ परिस्थितियों में काम करते हैं।"
संजना के भाई सिद्धार्थ अमेरिका में नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी से हायर एजुकेशन हासिल कर रहे हैं। वे अपनी बहन की तारीफ करते हुए कहते हैं, “संजना एक शानदार काम कर रही है और मुझे उस पर बहुत गर्व है। मुझे यकीन है कि वह भविष्य में समाज की भलाई के लिए व्यापक बदलाव लाने जा रही है।”
क्या है जो संजना को प्रेरित करता है? वह खुद कहती हैं, “यह विचित्र है कि कैसे हमारा छोटा सा काम भी लोगों के जीवन में बड़े पैमाने पर प्रभाव पैदा कर सकता है। यही बात है जो मुझे आगे बढ़ते रहने के लिए प्रेरित करती है। अगर हम में से हर कोई समाज के लिए कुछ करने की जिम्मेदारी ले सकता है, तो यह दुनिया बहुत बेहतर जगह बन जाएगी।”