मल्टीनेशनल कंपनी की नौकरी छोड़ जैविक खेती से खुशहाल हुए नगरकोटी
अल्मोड़ा के गांव डोटियाल के कुंदन सिंह नगरकोटी ने मल्टीनेशनल कंपनी की नौकरी ठुकराकर पहाड़ की मिट्टी में ही अपनी राह ढूंढ निकाली है। एक तो जैविक खेती, दूसरे आवारा पशुओं और जंगली जानवरों से फसलों की हिफाजत का एक आसान तरीका। पहली ही कोशिश में एक लाख की कमाई ने उन्हे खुशहाल कर दिया।
मुश्किलें हमेशा नई-नई राहें दिखाती हैं। बस, उन्हे देख लेने की दृष्टि होनी चाहिए। फिर तो जंगल में भी मंगल हो जाता है। यह प्रेरक दास्तान खुद की राह बना चुके, एक ऐसे ही युवा अल्मोड़ा (उत्तराखंड) के गांव डोटियाल के कुंदन सिंह नगरकोटी की है, जो काफी समय तक नौकरी के लिए भटकते रहे। फिर मल्टीनेशनल कंपनियों में काफ़ी वक़्त जाया किया। कहीं भी मन नहीं लगा क्योंकि एक तो उन्हे अपने शांतचित्त गांव डोटियाल की यादें परेशान किया करती थीं तो कभी कुछ कर दिखाने ज़ज्बा उकसाता रहता था।
आखिरकार, वह 2017 में एक मल्टीनेशनल कंपनी की नौकरी छोड़ कर अपने गांव लौट चले। चैलेंज आसान नहीं था। रोजी-रोटी तो चाहिए ही थी। फिर करें तो क्या करें। मन में हौसला कुछ कम न था, बस राह दिख जाने की तलब बढ़ती जा रही थी कि एक दिन उन्होंने अपनी आगे की जिंदगी बसर करने का आइडिया ढूंढ ही निकाला। एक तो जैविक खेती, दूसरे आवारा पशुओं और जंगली जानवरों से फसलों की हिफाजत का एक आसान तरीका।
पहाड़ के गांव जंगली जानवरों और पशुओं से इतने आजिज रहते हैं कि तमाम युवा इसलिए अपनी मिट्टी से पलायन कर जाते हैं कि कौन वहां की खेतीबाड़ी में मगजमारी करे, बचना-बचाना कुछ है नहीं, सब कुछ तो आवारा पशुओं और जंगली जानवरों की भेट चढ़ता रहता है। पहाड़ी किसानों के लिए आज भी सबसे बड़ी चुनौती है अपनी फसलों को उन आवारा पशुओं और जंगली जानवरों से बचा लेना।
नगरकोटी को अपने डबल आइडिया में हाथ लगाने की पहली सीख उन्हे लोक प्रबंध विकास संस्था, सुनोली के जरिये हैस्को (देहरादून) के संचालक पद्मश्री अनिल जोशी से मिली। उन दिनो हैस्को जैव प्रौद्योगिकी विभाग, नई दिल्ली के सहयोग से बायोटेक किसान परियोजना चला रही थी। डॉ. अनिल जोशी ने कुंदन को जैविक खेती को अपना रोजी-रोजगार बनाने की हिदायत के साथ ही उनकी मदद में भी हाथ बंटाया। बस राह सूझने की देर थी, उत्साहित नगरकोटी डॉ जोशी की उस सीख से भी आगे की छलांग लगा गए, जंगली जानवरों और आवारा पशुओं से सुरक्षा का उपाय भी।
उनके गांव में खेतों की फसल पर दिन में बंदरों, रात में जंगली सुअरों और शेही की झपट्टे से अनाज बचे तो घर तक पहुंचे और किसानों की रोजी-रोटी चले। रखवाली का एक ही उपाय उन्हे सूझा, तारबाड़ से खेतों की घेराबंदी। उससे पहले उन्हे सोलर फेसिंग की कीमत चुकानी पड़ी। और, देखते ही देखते उनके खेतों के इर्द-गिर्द टिन की चद्दरों वाली दीवारें तन गईं और फसलें एकदम सुरक्षित। थोड़ी-बहुत झपटमारी के बाद आखिरकार, जंगली जानवर-पशु उनके खेतों की राह भूल गए।
नगरकोटी के इलाके में एक खास किस्म की फसल गडेरी की बहुतायत में खेती होती है। टिन की चादरों से घिरे उनके खेत में पहली बार दस कुंतल जैविक गडेरी पैदा हुई। उसके बाद वह ब्रोकली, मूली, आलू, मटर, गोभी आदि की भी खेती करने लगे, जिससे पहले ही फसल चक्र में लगभग एक लाख की कमाई हो गई। चालू सीजन में वह गडेरी की फसल लगभग पचास-साठ कुंतल पैदा होने की उम्मीद लगाए हुए हैं। वह सिर्फ जैविक आलू से ही इस बार पचीस रुपए प्रति किलो, 60 हजार रुपए की कमाई कर चुके हैं। इसके अलावा नगरकोटी मधुमक्खियों और मुर्गियों का भी पालन कर रहे हैं। उनकी कामयाबी से जिले के कृषि अधिकारी भी अचंभित हैं।