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फ्रीलांसिंग के जरिए घर बैठे लाखों कमाती हैं नंदिता

मणिपाल ग्लोबल एजुकेशन के एक शोध-अध्ययन के मुताबिक हमारे देश में इस समय 15 मिलियन फ्रीलान्सर्स हैं, जो संख्या की दृष्टि से दुनिया में दूसरे नंबर पर हैं। मुंबई की नंदिता पाल को रंगों से प्यार है। उन्होंने इस सम्मोहन को ही अपना फ्रीलांस करियर बना लिया। आज वह घर बैठे चार लाख रुपए तक की कमाई कर रही हैं।

फ्रीलांसिंग के जरिए घर बैठे लाखों कमाती हैं नंदिता

Thursday May 23, 2019 , 4 min Read

नंदिता पाल

'मणिपाल ग्लोबल एजुकेशन' के एक शोध-अध्ययन के मुताबिक हमारे देश में इस समय 15 मिलियन फ्रीलान्सर्स हैं, जो संख्या की दृष्टि से दुनिया में दूसरे नंबर पर हैं। कोई युवा नौकरी नहीं करना चाहे तो उसके लिए फ्रीलांसिंग घर बैठे पैसे कमाने का एक बेहतर विकल्प है। फ्रीलांसिंग में तमाम लोग घरेलू स्तर पर अपने-अपने प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहे हैं तो अनेक युवा अमेरिका, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया के क्लाइंट्स बनकर भारी आय अर्जित कर रहे हैं।


हमारे देश का एक कुशल फ्रीलांसर हर घंटे कम से कम 20 डॉलर की कमाई कर ले रहा है। उदाहरण के तौर पर मुंबई की वेब डिजाइनर नंदिता पाल इसकी जीती-जागती मिसाल हैं। मुंबई में पली बढ़ीं नंदिता पाल कला और डिजाइनिंग के अपने जुनून को आगे बढ़ाने में छात्र जीवन से ही सक्रिय रही हैं। अपने काम में वह डिजिटल और पारंपरिक दोनों विधियों का उपयोग करती हैं। अब तक वह विज्ञापन संबंधी चित्रों के अलावा मेटलाइफ़ एशिया, गयाना बिजनेस मैगज़ीन, पोटोमैक यूनिवर्सिटी जैसे क्लाइंट्स के लिए काम कर चुकी हैं।


नंदिता को रंगों से प्यार है। उन्होंने इस लगन को ही अपना करियर बना लिया। वह पहले एक प्राइवेट कंपनी में वेबसाइट डिवेलपर थीं। वर्ष 2012 में उन्होंने कम्युनिकेशन मैनुअल, वेबसाइट डिजाइनिंग, पैकेजिंग और लेबल डिजाइंस के साथ फ्रीलांसिंग शुरू कर दी। आज उन्हे इस काम से चार-पांच लाख रुपये तक की कमाई हो रही है। नंदिता ने पहला लैंडस्केप दो साल की उम्र में बनाया था।


वह कई भारतीय कंपनियों और एमएनसी के साथ भी काम कर रही हैं। नंदिता का मानना है कि इस पेशे में जब तक पूरा भुगतान न मिल जाए, पूरा प्रॉजेक्ट सब्मिट नहीं करना चाहिए। आज बिजनेस मैन से लेकर आम आदमी तक अपनी वेबसाइट बनाना चाहता है। यही वजह है कि वेब डिजाइनिंग की इस समय पूरी दुनिया में भारी डिमांड है। वेब डिजाइन सर्विस प्रोवाइड कर अच्‍छी खासी कमाई की जा सकती है।


पूरी दुनिया में इस समय फ्रीलांसिग में तरह-तरह के तमाम काम बिखरे पड़े हैं। जरूरत है इन्ही में से कोई अपने लिए सहेजने की। इस समय वेब एंड मोबाइल डिवेलपमेंट, वेब डिजाइनिंग, डेटा एंट्री और इंटरनेट रिसर्च, अकाउंटिंग और कंसल्टेंसी सर्विसेज टॉप पर हैं। रेज्यूमे लिखना, कुकिंग रेसिपी, ऑनलाइन भरतनाट्यम कोर्स सिखाना, ऑनलाइन ट्यूशन पढ़ाना, ऑनलाइन पेशेंट कंसल्टिंग, डेटा एनालिटिक्स जैसे सेग्मेंट में इस तरह के काफी काम हैं।


फ्रीलांसिंग का ट्रेंड भारत में तेजी से बढ़ रहा है। तमाम फ्रीलांसर्स जॉब छोड़ कर फुल टाइम ऑन्ट्रप्रन्योर बन चुके हैं। केंद्र सरकार की प्राइम मिनिस्टर इम्प्लॉयमेंट जनरेशन प्रोग्राम के तहत वेब डिजाइनर को 90 फीसदी तक लोन भी दिया जाता है। बस 10 फीसदी पैसे का अपनी तरफ से इंतजाम करना होता है। यहां तक कि केंद्र सरकार वेब डिजाइनिंग की ट्रेनिंग और लोन के साथ सब्सिडी भी देती है। शहर में पंद्रह फीसदी और गांवों में पचीस फीसदी तक सब्सिडी मिल सकती है।

नंदिता पाल ने कोई बने-बनाए ढर्रे के सहारे इतनी बड़ी कामयाबी हासिल नहीं की है। इतने बड़े पैमाने पर भारत में फ्रीलांसिंग के रोजगार से ही उन्हे भी ये रिस्क लेने का आइडिया मिला था। जो भी व्यक्ति वेबसाइट डिजाइन करने का काम शुरू करना चाहता है तो उसे ये मोटामोटी जानकारी होना जरूरी है कि कहां से ट्रेनिंग ले, लोन सब्सिडी कैसे मिलेगी। मिनिस्‍ट्री ऑफ माइक्रो, स्मॉल एंड मीडियम एंटरप्राइजेज (एमएसएमई) के अधीन काम कर रही संस्‍था खादी एवं विलेज इंडस्ट्रीज कमीशन ने ऐसे प्रोजेक्‍ट्स के प्रोफाइल अपनी वेबसाइट पर अपलोड कर रखे हैं, जिन्‍हें प्रधानमंत्री इम्‍प्‍लॉयमेंट जनरेशन प्रोग्राम के तहत लोन मिल सकता है। इसमें प्रोजेक्‍ट प्रोफाइल में वेबसाइट डिजाइनिंग सर्विस को भी शामिल किया गया है।


दरअसल, केवीआईसी द्वारा मार्केट रिसर्च के आधार पर यह प्रोजेक्‍ट प्रोफाइल तैयार किए गए हैं। वेब डिजाइनिंग सर्विस प्रोवाइडर के तौर पर बिजनेस शुरू करते समय लगभग 5 लाख 50 हजार रुपए का इन्‍वेस्‍टमेंट दिखाना होता है, जिसमें से 90 फीसदी लोन मिल जाता है यानी अपने घर से सिर्फ 55 हजार रुपए लगाने होते हैं। इस सब्सिडी शुदा लोन के पैसे से दो कम्‍प्‍यूटर, एक मॉडम या वाईफाई, लेजर प्रिंटर, स्‍कैनर, वेब कैमरा, डिजिटल कैमरा, केबल, सॉफ्टवेयर, विंडोज, जरूरी प्रोग्राम, डोमिन रजिस्‍ट्रेशन, वेब कनेक्‍शन, ग्राफिक्‍स, एनीमेटर जैसी जरूरी व्यवस्थाएं हो जाती हैं।


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