राष्ट्र पहले आता है: विदेश मंत्री एस जयशंकर चाहते हैं कि भारतीय भारत पर गर्व करें
विदेश मंत्री एस जयशंकर का पालन-पोषण एक देशभक्त के रूप में हुआ था और उनका जीवन खुद से पहले भारत और भारतीयों के बारे में सोचने की उनकी क्षमता से संचालित हुआ है.
हाइलाइट्स
- एस जयशंकर का पालन-पोषण एक राष्ट्रवादी परिवार में हुआ, जिससे उनमें अपने देश के प्रति गहरा प्रेम और इसकी उपलब्धियों पर गर्व की भावना पैदा हुई.
- छात्रों से लेकर एमएसएमई तक सभी के लिए अवसर पैदा करना और उन लोगों के लिए वित्त तक पहुंच सुनिश्चित करना जिन्हें इसकी आवश्यकता है, सच्चे विकास का रास्ता है.
- विरासत-सूचित निर्णय-प्रक्रिया, खुली प्रतिक्रिया और संवाद सुशासन सुनिश्चित करते हैं.
- ऐसे नेताओं को चुनें जो देश के विकास के लिए बड़े सपनों को क्रियान्वित योजनाओं में बदल सकें.
जब महामारी देशों में फैल रही थी, तब दुनिया टीके का निर्माण कर रही थी. इस दौरान सोशल मीडिया पर छद्म युद्ध शुरू हो गया. जबकि भारत अपना टीका बनाने में तत्पर था, कुछ आलोचकों को आश्चर्य हुआ कि क्या यह यूरोपीय और अमेरिकी टीकों के मुकाबले खड़ा होगा. क्या यह सचमुच सुरक्षित था? जब इस टीके को लेकर हिचकिचाहट बढ़ रही थी, विदेश मंत्री एस जयशंकर ने वैश्विक महामारी के लिए हमारे स्वदेशी टीके कोवैक्सिन का डोज लिया. एक केंद्रीय मंत्री के रूप में, उनकी विश्व स्तर पर उपलब्ध किसी भी वैक्सीन तक पहुंच थी, लेकिन उन्होंने 'मेक इन इंडिया' का विकल्प चुना.
भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने YourStory की फाउंडर और सीईओ श्रद्धा शर्मा के साथ बातचीत में, उन्होंने बताया कि उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि यह लोगों को यह समझाने का उनका तरीका था कि भारतीय का मतलब गुणवत्ता है.
वह कहते हैं, “जब मैं लोगों को बताता हूं कि मैंने कोवैक्सिन लिया है, तो इसका प्रभाव पड़ता है. मैंने वह टीका लिया जो भारत में बना था.” जब वह देश के बारे में बात करते हैं तो राष्ट्र के प्रति एक निश्चित अटूट विश्वास और प्रेम छलकता है.
राष्ट्रवाद जरूरी है
यह राष्ट्रवाद अपनी आजादी के बाद से और पिछले कुछ वर्षों में देश द्वारा की गई सभी प्रगति पर गर्व करने के बारे में था. जैसा कि वह बताते हैं, “उनका परिवार हमेशा गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस समारोहों में भाग लेता था. यह मेरे जीवन और पालन-पोषण का एक हिस्सा मात्र था.” इसलिए, यदि उनके माता-पिता ने उन्हें देशभक्त होने के लिए बड़ा किया, तो यह स्वाभाविक है कि वह हर भारतीय से यही अपेक्षा करते हैं. मंत्री, जिन्होंने किसी भी अंतरराष्ट्रीय दबाव के सामने देश का हित रखा है, कहते हैं, “मैं लोगों से राष्ट्रवादी होने की उम्मीद करता हूं. जब लोग ऐसी बातें कहते हैं जो देश के लिए अच्छी नहीं हैं, तो इससे मुझे गुस्सा आता है और मैं परेशान हो जाता हूं.”
और उस राष्ट्र पर गर्व महसूस करना कितना मुश्किल हो सकता है जो वास्तव में आत्मनिर्भर हो गया है? जैसा कि मंत्री का कहना है, भारत "चंद्रयान मिशन के माध्यम से चंद्रमा के अछूते हिस्से तक पहुंच गया है, देश, जिसने दुनिया को यूपीआई जैसी भुगतान प्रणाली दी है" और "भारत में बनी 5जी तकनीक" का उपयोग करके वास्तव में डिजिटल युग में प्रवेश किया है.”
राष्ट्रहित से परे कुछ भी नहीं
इसका एक सरल उदाहरण रूस-यूक्रेन युद्ध होगा. जब रूस पर प्रतिबंध लगाने का वैश्विक दबाव था, तब भी भारत देश से तेल निर्यात कर रहा था. उसका कारण सरल था. जबकि पश्चिम प्रतिबंध लगाने का जोखिम उठा सकता था, भारत ऐसा नहीं कर सका.
जयशंकर कहते हैं, “अगर हम रूसी तेल नहीं खरीदते, तो तेल की कीमतें बढ़ जातीं. कम आय वाले उपभोक्ताओं को पेट्रोल के लिए अधिक कीमत चुकानी पड़ती.” सीधे शब्दों में कहें तो भारतीयों की भलाई को प्राथमिकता देना उनके पूरे करियर में उनका मार्गदर्शक सिद्धांत रहा है.
मंत्री 'मेक इन इंडिया' के संदेश का प्रतीक हैं, और चाहते हैं कि हर कोई इस पहचान पर गर्व करे. इसलिए, टीकों से लेकर कारों से लेकर कपड़ों तक, वह चाहते हैं कि पारंपरिक मूल्य और देश के प्रति प्रेम हर भारतीय की शोभा बढ़ाए. लेकिन यह केवल भव्य भाषण देने के बारे में नहीं है, भारत सरकार मेक इन इंडिया भावना का समर्थन करने के लिए योजनाएं शुरू करने पर जोर देती है.
वह बताते हैं, “आज बिजनेस शुरू करना बहुत आसान हो गया है, नए पेशे आ गए हैं जो पहले नहीं थे.” विश्वविद्यालयों के छात्रों से लेकर स्थानीय एमएसएमई तक, सभी को वित्त की आवश्यकता होती है. वह और सरकार में उनके सहयोगी इसे समझते हैं और सुनिश्चित करते हैं कि किसी को भी अवसर से वंचित न किया जाए.
भविष्य के लिए तैयार
जब लोग कहते हैं कि वह सुलभ हैं तो ऐसा इसलिए है क्योंकि वह चाहते हैं कि हर भारतीय की आवाज उन तक पहुंचे. वह कहते हैं, “प्रतिक्रिया महत्वपूर्ण है, हमें लगातार अपना मूल्यांकन करना होगा.” “सरकार में, यह अच्छे निर्णय लेने का हिस्सा है और मैं लोगों को मुझे चुनौती देने के लिए प्रोत्साहित करता हूं. आपके सर्कल में सिर्फ हाँ में हाँ मिलाने वाले लोग नहीं हो सकते.”
भारत उस ओर बढ़ रहा है जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 'अमृत काल' कहते हैं. एस जयशंकर का मानना है कि भारत इस सपने को साकार करने के कगार पर है. उन्होंने बताया, “पिछले 10 वर्षों ने इस भविष्य की नींव रखी. अमृत काल के अगले 25 वर्ष उस मजबूत नींव के कारण संभव हैं जो रखी गई थी.” लेकिन भारतीय इस कल की ओर कैसे चल सकते हैं? रहस्य एक राष्ट्रवादी की तरह सोचने और सही व्यक्ति को चुनने में निहित है. “किसी ऐसे व्यक्ति की पहचान करें जो बड़ा सोचता है और उसे पूरा करता है. सपनों को ज़मीन पर क्रियान्वित करें.” लेकिन यदि संदेह हो तो जैसा मंत्री सलाह दें वैसा ही करें. "बस अपने आप से पूछो."
(Translated by: रविकांत पारीक)