नेशनल टेक्नोलॉजी डे के मौके पर फाइब्रोहील वुंड केयर प्राइवेट लिमिटेड को मिला नेशनल टेक्नोलॉजी स्टार्टअप अवार्ड-2020
फाइब्रोहील देश के कई राज्यों जैसे महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल और असम में अपने उत्पाद के दम पर मेडिकल क्षेत्र में अपनी जगह पुख्ता कर रही है।
भारत सरकार के साइंस एंड टेक्नोलॉजी डिपार्टमेंट के टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट बोर्ड ने नेशनल टेक्नोलॉजी डे (11 मई) के मौके पर कोकून से निकलने वाले फाइब्रोइन प्रोटीन से संक्रमित व असंक्रमित घाव को भरने की दवा तैयार करने वाली फाइब्रोहील वुंड केयर प्राइवेट लिमिटेड को नेशनल टेक्नोलॉजी स्टार्टअप अवार्ड-2020 दिया है।
फाइब्रोहील खुद की तकनीक को विकसित कर वैश्विक स्तर के मेडिकल उत्पाद बनाने की ओर अपने कदम बढ़ा रही है। फाइब्रोहील ने फिलहाल देश के मुख्य सरकारी अस्पतालों में अपने उत्पादों को उपलब्ध कराया है, चूंकि सरकारी अस्पतालों में बड़ी तादाद में गरीब लोग अपने इलाज के लिए जाते हैं, ऐसे में उन्हे सस्ते और बेहतर उत्पाद से खासा लाभ मिलता है। इसी के साथ कंपनी सरकार के कई टेंडरों के साथ भी जुड़ी हुई है।
कंपनी ने गंभीर घाव भरने का उत्पाद सिल्क से बनाया है, और यह वैश्विक स्तर के उत्पादों का निर्माण कर रही है।
फाइब्रोहील देश के कई राज्यों जैसे महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल और असम में अपने उत्पाद के दम पर मेडिकल क्षेत्र में अपनी जगह पुख्ता कर रही है।
कैसे काम करती है फाइब्रोहील
भारत रेशम के कच्चे उत्पादक का दूसरा सबसे बड़ा देश है। इसे सिर्फ कपड़ों को ही बनाने में ही इस्तेमाल नहीं किया जाता, बल्कि अब इससे लोगों के गंभीर घाव भी भरे जा सकते हैं। आमतौर पर रेशम के उत्पादन के लिए पूर्णकीट को रेशम के कोये (कोकून) से बाहर आने से पहले ही उबलते हुए पानी में डालकर रेशम अलग किया जाता है। वहीं, जो रेशम के कीड़े द्वारा टूटा हुआ कोया होता है वो किसानों के किसी काम का नहीं होता। दुनिया भर में इसी टूटे हुए कोये पर खोज चल रही थी कि इनमें कुछ ऐसे तत्व हैं जिनका मेडिकल के क्षेत्र में उपयोग किया जा सकता है।
इस दौरान उन्होंने पाया कि रेशम के कीड़े द्वारा तोड़े हुए कोये (कोकून) में बायोमेडिकल गुणवत्ता होती है, जिसका इस्तेमाल मेडिकल क्षेत्र में किया जा सकता है। इससे न सिर्फ किसानों को आय के नए स्त्रोत मिलेंगे, बल्कि गहरे घाव वाले मरीजों को भी लाभ मिलेगा। विवेक के मुताबिक रेशम से कपड़ों के उत्पाद के लिए पूर्ण कोये (कोकून) का इस्तेमाल होता है, लेकिन जब वही कोया तोड़कर रेशम का कीड़ा बाहर आ जाता है तो किसान के लिए वो कोया बेकार हो जाता है। अपनी खोज में उन्होंने उसी टूटे हुए कोये का इस्तेमाल किया है, जिसमें कीड़ा नहीं होता है। उनके मुताबिक कोये में दो तरह के प्रोटीन होते हैं। पहला सेरिसिन और दूसरा फाइब्रोइन। फाइब्रोइन में अमीनो एसिड मौजूद होता है। जिसमें घाव भरने के प्राकृतिक मॉइस्चराइजिंग तत्व होते हैं। जो संक्रमित व असंक्रमित दोनों तरह के घावों को ठीक करने के काम आते हैं और घाव बहुत कम समय में भर जाता है।
कैसे हुई कंपनी की शुरूआत
विवेक मिश्रा ने साल 2017 में फाइब्रोहील नाम से बेंगलुरु में एक कंपनी खड़ी की। वहीं, भरत टंडन और सुब्रमण्यम शिवारामण उनके साथ सह संस्थापक के तौर पर जुड़े हुए हैं। उनको बाद में भारत सरकार के डिपार्टमेन्ट ऑफ बायोटेक्नालॉजी की तरफ से भी कंपनी को शुरुआती निवेश मिला था। बाद में बीआइआरएसी (बॉयोटेक्नोलॉजी इंडस्ट्रियल रिसर्च असिसटेंस काउंसिल अंडर डीबीटी, सीसीएएमपी (सेंटर फॉर सेल्यूलर एंड मॉलिक्यूलर प्लैटफॉर्म) और कर्नाटक सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी, बॉयोटेक्नोलॉजी व साइंस एंड टेक्नोलॉजी का साथ मिला।
विवेक बताते हैं, “हम सिल्क की प्रोटीन से कई तरह के घाव भरते हैं। भारत में 33 हज़ार मीट्रिक टन सिल्क का उत्पादन होता है। सिल्क की मदद लेते हुए हम इलाज पर आने वाले खर्चों को कम कर सकते हैं। सिल्क के जरूरी प्रोटीन अलग करने के लिए हम विशेष तरह की तकनीक का उपयोग करते हैं।"
रेशम का कीड़ा जिस पूर्ण कोये (कोकून) को तोड़कर रेशम कीड़ा बाहर आता है, वह बेकार हो जाता है। इसी कोया से संबंधित प्रोटीन मिलता है।
कर्नाटक सरकार उनके इस प्रयास के लिए एलीवेट हंड्रेड के तहत मोस्ट इनोवेटिव स्टार्टअप 2019 व स्टार्टअप ऑफ द ईयर 2020 से नवाज चुकी है।
विवेक आगे बताते हैं, “आमतौर पर बाज़ार में घाव भरने के लिए जो भी दवाएं मौजूद हैं वे घाव को बढ़ने से रोकती हैं, जबकि घाव भरने का काम खुद शरीर करता है, लेकिन हमारा उत्पाद मानव शरीर द्वारा घाव भरने की प्रक्रिया के साथ भी सक्रिय तौर पर भाग लेता है।”
फाइब्रोहील के उत्पाद मधुमेह के चलते हुए घाव, संक्रमित घाव, सर्जरी के बाद न भरे जा सके घाव आदि के लिए बेहद कारगर साबित हो रहे हैं। कंपनी फिलहाल कई तरह के उत्पाद बना रही है, इसमें संक्रमित और असंक्रमित घाव के लिए ड्रेसिंग, पाउडर और चोट के निशान (स्कार) में काम आने वाले उत्पाद शामिल हैं।
सिल्क के प्रोडक्ट और किसानों को मिलने वाले लाभ पर बोलते हुए विवेक ने कहा, “अगर सिल्क से बना यह उत्पाद सफल होता है, तो इससे किसानों का भी भला होगा, मेडिकल क्षेत्र का भी भला होगा और मरीज का भी भला होगा। ऐसे में अगर हम इन तीनों आयामों को फायदा पहुंचाकर कंपनी को आगे ले जाते हुए रोजगार भी पैदा कर सके, तो इससे बेहतर हमारे लिए कुछ नहीं होगा।"
उन्होंने कहा, “हमें मार्केट से अच्छी प्रतिक्रिया मिली है। सर्जन कम्युनिटी इस उत्पाद को पहचानते हुए इसे तवज्जो दे रही है। हमें अपने उत्पाद के द्वारा कई ऐसे घाव भी भरें हैं, जहां पैर काटने की नौबत आ गई थी। हमारा उत्पाद मधुमेह के चलते हुए गंभीर घावों में भी बेहद प्रभावी ढंग से काम करता है।”
विवेक ने अंत में कहा, “देश में ऐसी बायोटेक कंपनियाँ बेहद कम ही हुईं हैं, जिन्होंने वैश्विक स्तर पर अपनी छाप छोड़ी है। हम वैश्विक स्तर पर बायोटेक के क्षेत्र में एक अग्रिणी कंपनी बनना चाहते हैं।"