एक लक़ीर और सदी की सबसे बड़ी त्रासदी!
ये कहानी है दुनिया की सबसे बड़े विस्थापन की. यह एक ऐसी कहानी है जिसके दस्तावेज़ों को आज़ादी के हर जश्न के बीच हमेशा उलटना-पलटना पड़ता ही है.
रह-नवर्द-ए-बयाबान-ए-ग़म सब्र कर सब्र कर, कारवाँ फिर मिलेंगे बहम सब्र कर सब्र कर
शहर उजड़े तो क्या है कुशादा ज़मीन-ए-ख़ुदा, इक नया घर बनाएँगे हम सब्र कर सब्र कर
दफ़ बजाएँगे बर्ग ओ शजर सफ़-ब-सफ़ हर तरफ़, ख़ुश्क मिट्टी से फूटेगा नम सब्र कर सब्र कर
लहलहाएँगी फिर खेतियाँ कारवाँ कारवाँ, खुल के बरसेगा अब्र-ए-करम सब्र कर सब्र कर
दर्द के तार मिलने तो दे होंट हिलने तो दे, सारी बातें करेंगे रक़म सब्र कर सब्र कर
भारत-पाकिस्तान बंटवारे में विस्थापित हुए लाखों लोगों के दर्द को जुबां देती 'नासिर काज़मी' के ये ग़ज़ल.
सन '47 में भारत-पाक बंटवारे से विस्थापित हुए लोग एक लकीर खिंच जाने भर से अपने घरों से, अपने खेतों से, कुओं-तालाबों, अपने शहरों, अपने रिश्तों से बेगाने और जुदा कर दिए गए. उनकी सदियों पुरानी साझा विरासत और जीवन शैली को अचानक, नाटकीय रूप से ख़त्म कर दिया गया. विश्वास और धार्मिक आधार पर एक हिंसक विभाजन की यह कहानी आम लोगों के सब्र की कहानी भी है, उनकी हिज़रत की कहानी.
सरहद पार वे वहां पहुंचे जहां के साथ पहले से उनका कोई सम्बन्ध नहीं था. संस्कृति या भाषा की दृष्टि से भी वे एक समान नहीं थे.
ये कहानी है दुनिया की सबसे बड़े विस्थापन की. एक ऐसी कहानी जिसके दस्तावेज़ों को आज़ादी के हर जश्न के बीच हमेशा उलटना-पलटना पड़ता ही है.
लाखों लोग इस पार से उस पार जाने को मजबूर हुए. इस अदला-बदली में दंगे भड़के, कत्लेआम हुए. जो लोग बच गए, उनमें लाखों लोगों की जिंदगी बर्बाद हो गई. भारत-पाक विभाजन की यह घटना सदी की सबसे बड़ी त्रासदी में बदल गई.
13 अगस्त 1947 से पहले पूरी तरह से तय हो चुका था कि देश का बंटवारा हो रहा है. इसकी वजह से हिंदुओं और सिखों ने पाकिस्तान के होने वाले इलाकों को छोड़ना शुरू कर दिया था तो वहीं मुसलमानों ने भारत का हिस्सा होने वाले इलाकों से पलायन करना शुरू कर दिया था. पैदल, बैलगाड़ियों और रेल के सहारे अपनी ज़मीन, खेती, दूकान, परिवार छोड़ पलायन करने को मजबूर हुए इन लोगों की, अपनी ज़िन्दगी का सबसे बड़ा हादसा समेटे हुए अपने ही देश में शरणार्थी बन गए इन लोगों की कहानी को यह तस्वीरें बयान करती हैं.
विभाजन के दौरान व्यापक स्तर पर सांप्रदायिक दंगे हुए, जिनमें मरने वालों की संख्या की गिनती नहीं थी. छिटपुट दंगे आज़ादी की घोषणा से पहले से होने लगे थे.
बंटवारे के दौरान रेल से जुडी ऐसी भयावह कहानियां हैं जिन्हें सुनकर रोंगटे खड़े हो सकते हैं. भारत और पाकिस्तान के बीच आपसी परामर्श से रेल सुविधा को जारी रखा गया था. हर दिन 5-6 ट्रेनेें दोनों ओर से चलती थीं. ऐसी कई डरावनी कहानियां भी हैैं, जिनमेें रेलगाड़ियां जब अपने अंतिम गंतव्य स्थान पर पहुंचतीं तब उनमें केवल लाशेें और घायल व्यक्ति ही मौजूद होते थे.
विभाजन के दौरान सिन्ध के अल्पसंख्य्कों (हिन्दू और सिख) को जितनी विकराल एवं भयावह त्रासदी सहनी पड़ी, उसका कटु अनुभव सिन्ध छोड़कर आए लोगों के मन मेें आज भी जीवन्त है. सिंध से आने और जाने वाले लोगों का एक बड़ा हिस्सा ऐसा था, जिसने कराची और मुंबई (तब बंबई) के बीच पानी के जहाज से अपना सफ़र तय किया था. भारत सरकार ने शरणार्थियों की आवाजाही के लिए नौ स्टीमर लगाए थे.
सबसे बड़ी संख्या में लोगों ने काफ़िलों में पलायन किया. उस दौरान उन्होंने न सिर्फ़ प्रचंड गर्मी झेली, बल्कि मानसून की मूसलाधार बारिश में भी मीलों पैदल चलने को मजबूर रहे. जैसे-जैसे काफ़िला आगे बढ़ता जाता था, उसमें लोगों की संख्या भी जुड़ती जाती थी. इन काफ़िलों की लंबाई 10 मील से लेकर 27 मील तक हुआ करती थी, जिनमें हज़ारों हज़ार लोगों की तादाद होती थी. जैसे-जैसे काफ़िलेें चलते थे, उन गांवों से अधिक से अधिक लोग जुड़ते जाते थे.
विभाजन के दौरान महिलाओं को भारी नुकसान उठाना पड़़ा, और विभाजन एवं उसके आघात का उनका अनुभव पुरुषों से बहुत अलग था. उनका अपहरण किया गया, उनके साथ बलात्कार किया गया, बहुतों को अपना धर्म बदलने पर मजबूर किया गया. उनके अपने परिवार के सदस्य अक्सर 'परिवार के सम्मान को बचाने' के लिए उन्हें मार देने की कोशिश की, बहुतों ने मार भी दिया. भारत सरकार ने 33,000 महिलाओं के अपहरण की सूचना दी, जबकि पाकिस्तान सरकार ने 50,000 महिलाओं के अपहरण का अनुमान लगाया. लेकिन इन आंकड़ों ने उनके दुःख की सीमा को बहुत कम करके आंका.
ये क़ाफ़िले विशेष रूप से भीड़ के हमले की चपेट आ जाते थे. लोग बिना आश्रय, भोजन या पानी के बिना चलते रहे. इस कारण हज़ारों बुज़ुर्ग, बच्चे थकावट, भुखमरी और बीमारी से मर गए.
भारत-पाकिस्तान का बंटवारा दुनिया के इतिहास में सबसे बड़े विस्थापन के रूप में याद किया जाता है. 1951 की विस्थापित जनगणना के अनुसार विभाजन के बाद 72,26,000 लाख मुसलमान भारत छोड़कर पाकिस्तान गये और 72,49,000 लाख हिन्दू और सिख पाकिस्तान छोड़कर भारत आये.
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