इस मुस्लिम बहुल गांव की हवा में घुली है देशभक्ति, हर घर में है एक फौजी, कुल 500 फौजी कर रहे हैं देश सेवा
लगभग सात हजार की जनसंख्या वाला धनूरी गांव झुंझुनु जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर है। यह मलसीसर तहसील में आता है। इसे फौजियों की खान के नाम से भी जाना जाता है। यहां कायमखानी मुस्लिम रहते हैं और पांच पीढ़ियों से देश की रक्षा में लगे हुए हैं।
राजस्थान का झुंझुनु जिला और जिले का धनूरी गांव, वैसे तो यह गांव दिखने में बाकी गांवों के जैसा ही है लेकिन इस गांव की बहुत बड़ी खासियत है। इस गांव के लगभग हर एक परिवार में एक सैनिक है। यानी कि हर परिवार से कोई ना कोई सदस्य देश की रक्षा के लिए सेना में लगे हुए हैं।
कुल संख्या की बात करें तो इस गांव में 500 से अधिक लोग सेना में शामिल होकर देश सेवा कर रहे हैं। मुस्लिम बहुल इस गांव में कायमखानी मुस्लिम रहते हैं। चाहे 1962 का युद्ध हो, 1965 का हो या फिर 1971 का युद्ध। हर युद्ध में इस गांव से सैनिकों ने देश की रक्षा करते हुए अपनी जान दांव पर लगाई है।
अकेले इस गांव से 17 सैनिक देश की रक्षा करते हुए शहीद हुए हैं। वर्तमान में इस गांव के 500 से अधिक लोग सेना में हैं। साथ ही 400 से अधिक जवान रिटायर होकर आ चुके हैं। यह अपने आप में देश का एक अनोखा गांव है जहां लगभग हर परिवार से एक फौजी देश की सरहद पर खड़ा है।
लगभग सात हजार की जनसंख्या वाला धनूरी गांव झुंझुनु जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर है। यह मलसीसर तहसील में आता है। इसे फौजियों की खान के नाम से भी जाना जाता है। यहां कायमखानी मुस्लिम रहते हैं और पांच पीढ़ियों से देश की रक्षा में लगे हुए हैं।
इस गांव के सैनिक पहले और दूसरे विश्व युद्ध में भी शहीद हुए हैं। इसी गांव की 103 वर्षीय सायरा बानो के पति दूसरे विश्व युद्ध में शहीद हुए थे। पिछले महीने ही उनकी भी मृत्यु हो गई। शायद यह देश में अकेला ऐसा गांव होगा जहां से 1962, 65 और 71 की जंग में सैनिकों ने सीमा पर देश के लिए मोर्चा संभाला।
इस गांव के सरकारी स्कूल का नाम भी शहीद मेजर मोहम्मद हसन खान के नाम से रखा गया है जो 1971 की लड़ाई में शहीद हो गए थे। उन्हें वीर चक्र अवॉर्ड से भी नवाजा गया था।
राजस्थान पुलिस में एसएचओ पद से रिटायर सादिक खान ने योरस्टोरी से बातचीत में बताया,
'यह देश का पहला गांव होगा जहां पर एक ही समुदाय के 17 जवान शहीद हुए हैं। यहां के हर घर में 1-2 फौजी जरूर मिलेंगे। मेरे खुद के दो भाई सेना से रिटायर हो चुके हैं। फिलहाल दो भतीजे, दो पोते और तीन दोयते (बेटी के पुत्र) भी सेना में भर्ती होकर देश की सेवा कर रहे हैं। मेरा परिवार 21 लोग सेना में रह चुके हैं और अभी भी हैं।'
देश सेवा यहां के युवाओं की रगों में दौड़ती है। अभी भी देखेंगे तो सुबह-सुबह युवा दौड़ और बाकी प्रैक्टिस करते दिख जाएंगे। सेना में जाने के लिए इनमें अलग ही क्रेज है। इनके सपनों को पंख (ट्रेनिंग) देने के लिए सेना से रिटायर हुए इकबाल खान प्राइवेट ट्रेनिंग एकेडमी चलाते हैं।
फिलहाल गांव की कमान युवा सरपंच मोहम्मद इबरीश संभाल रहे हैं जिनके दादाजी जाफर अली खान भी देश की सेवा करते हुए शहीद हुए थे। केवल सेना ही नहीं बल्कि इस गांव के युवा बाकी डिफेंस फोर्सेज जैसे- पुलिस, पैरा मिलट्री फोर्सेज में शामिल होकर भी देश सेवा कर रहे हैं।