Pegasus: 5 फोन में मिले मालवेयर, SC ने कहा- सरकार ने नहीं किया जांच कमिटी का सहयोग
पिछले साल एक अंतरराष्ट्रीय मीडिया संघ ने अपनी रिपोर्ट्स में दावा किया था कि भारत सहित दुनियाभर के हजारों प्रभावशाली लोगों के मोबाइल नंबर इजरायली कंपनी एनएसओ द्वारा दुनियाभर की सरकारों को दिए गए स्पाईवेयर पेगासस के संभावित निशाने पर थे.
सुप्रीम कोर्ट ने बृहस्पतिवार को कहा कि पेगासस स्वाइवेयर विवाद की जांच के लिए उसके निर्देश पर नियुक्त टेक्नीकल कमिटी को जांच में भेजे गए 29 फोन में से पांच में एक तरह का ‘मालवेयर’ मिला. हालांकि, चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एनवी रमण ने कहा कि सरकार ने समिति के साथ सहयोग नहीं किया और पैनल की कार्यवाही में भी वही रुख अपनाया था, जो उसने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष रखा था.
इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एनवी रमण, जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ कर रही है. न्यायालय अब इस मामले पर चार सप्ताह बाद सुनवाई करेगा.
पीठ ने बताया कि पैनल ने तीन हिस्सों में अपनी ‘‘लंबी’’ रिपोर्ट जमा की है और एक हिस्से में नागरिकों के निजता के अधिकार एवं देश की साइबर सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कानून में संशोधन करने का सुझाव दिया गया है. उसने बताया कि वह पर्यवेक्षण न्यायाधीश (सेवानिवृत्त) आरवी रवींद्रन की सामान्य प्रकृति वाली रिपोर्ट को अपनी वेबसाइट पर अपलोड करेगी. पीठ ने कहा कि वह अन्य रिपोर्ट का संशोधित हिस्सा पक्षकारों को देने की अपील पर विचार करेगी.
पीठ ने नेताओं, पत्रकारों और कार्यकर्ताओं की लक्षित निगरानी के लिए सरकारी एजेंसियों द्वारा इजराइली स्पाइवेयर के इस्तेमाल के आरोपों की जांच का पिछले साल 27 अक्टूबर को आदेश दिया था. हालांकि, इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र का स्वंय विशेषज्ञ समिति गठित करने का अनुरोध यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया था कि ऐसा करना पूर्वाग्रह के खिलाफ स्थापित न्यायिक सिद्धांत का उल्लंघन होगा.
कोर्ट ने कहा था कि सरकार हर बार राष्ट्रीय सुरक्षा की दुहाई देकर बच नहीं सकती और इसे ‘हौवा’ नहीं बनाया जा सकता, जिसका जिक्र होने मात्र से न्यायालय खुद को मामले से दूर कर ले.
गौरतलब है कि शीर्ष अदालत इस संबंध में दाखिल कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है जिनमें वरिष्ठ पत्रकारा एन राम और शशि कुमार के साथ-साथ एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया की याचिका भी याचिका शामिल है. इन याचिकाओं में कथित पेगासस जासूसी कांड की स्वतंत्र जांच की मांग की गई है.
क्या है मामला?
पेगासस विवाद पिछले साल 18 जुलाई को तब सामने आया था जब एक अंतरराष्ट्रीय मीडिया संघ के तहत भारतीय डिजिटल मीडिया वेबसाइट द वायर (The Wire) सहित कई अन्य अंतरराष्ट्रीय मीडिया संगठनों ने अपनी रिपोर्ट्स में दावा किया था कि भारत सहित दुनियाभर के हजारों प्रभावशाली लोगों के मोबाइल नंबर इजरायली कंपनी एनएसओ द्वारा दुनियाभर की सरकारों को दिए गए स्पाईवेयर पेगासस के संभावित निशाने पर थे.
रिपोर्ट में दावा किया गया था कि पेगासस स्पाइवेयर के जरिए कथित निगरानी के संभावित लक्ष्यों की सूची में 300 से अधिक सत्यापित भारतीय मोबाइल फोन नंबर शामिल थे. इसमें 40 भारतीय पत्रकार, राहुल गांधी जैसे राजनीतिक नेता, चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर, पूर्व चुनाव आयुक्त अशोक लवासा जैसे कई बड़े नाम शामिल थे.
रिपोर्ट्स में यह सामने आया था कि एनएसओ पेगासस स्पाईवेयर केवल सरकारों को बेचती है और किसी प्राइवेट कंपनी को नहीं देती है.
जनवरी, 2022 में न्यूयॉर्क टाइम्स ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि भारत की पेगासस की खरीद 2017 के व्यापक सौदे का हिस्सा थी और संभावित रूप से केंद्र सरकार को लाखों डॉलर की लागत आई थी.
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज की निगरानी में बनी थी विशेषज्ञ समिति
इजराइली स्पाईवेयर पेगासस के इस्तेमाल के आरोपों की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 27 अक्टूबर को साइबर विशेषज्ञ, डिजिटल फॉरेंसिक, नेटवर्क एवं हार्डवेयर के विशेषज्ञों की तीन सदस्यीय समिति नियुक्त की थी. इस जांच की जिम्मेदारी शीर्ष अदालत के पूर्व जज जस्टिस आरवी रवींद्रन को दी गई थी.
शीर्ष अदालत ने कहा कि पूर्व आईपीएस अधिकारी आलोक जोशी और संदीप ओबेरॉय (अध्यक्ष, उप समिति (अंतरराष्ट्रीय मानकीकरण संगठन/अंतरराष्ट्रीय इलेक्ट्रो-तकनीकी आयोग/संयुक्त तकनीकी समिति) जस्टिस रवींद्रन समिति के कामकाज की निगरानी करने में मदद करेंगे.
Edited by Vishal Jaiswal