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पीएम मोदी की सीख ने जम्मू के बेरोजगार किसान भारत भूषण को बनाया लखपति

पीएम मोदी की सीख ने जम्मू के बेरोजगार किसान भारत भूषण को बनाया लखपति

Wednesday March 04, 2020 , 4 min Read

चार साल पहले पीएम मोदी से एक वीडियो कांफ्रेंसिंग के बाद लैवेंडर की खेती कर सालाना लाखों रुपए कमा रहे डोडा (जम्मू) के गांव खेलानी हमलेट निवासी किसान भारत भूषण को आज दिल्ली में पूसा कृषि मेले के अंतिम दिन भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के इनोवेटिव फार्मर अवॉर्ड से सम्मानित किया गया।


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दूसरी फोटो में भारत भूषण (फोटो: सोशल मीडिया)



एक हल्के बैंगनी रंग का फूल होता है लैवेंडर। पहाड़ी क्षेत्रों में इन फूलों की खेती होती है। फूल फरवरी महीने में खिलने शुरू हो जाते हैं। इनके फूलों से सुगंधित तेल बनाया जाता है, जो दवाइयां बनाने सहित कई चीजों में काम आता है। यह खाद्य पदार्थों में सुगंध के लिए भी जाना होता है।


इसी की खेती करने वाले जम्मू संभाग के डोडा जिले के खेलानी हमलेट गांव के रहने किसान भारत भूषण दिल्ली में पूसा कृषि मेले के अंतिम दिन भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के प्रतिष्ठित नवाचार किसान (इनोवेटिव फार्मर) अवार्ड से सम्मानित हुए हैं। वह अपने राज्य के पहले ऐसे किसान हैं।


भारत भूषण बताते हैं कि वह गरीबी रेखा से नीचे रहे हैं। एक समय में उनके पास सिर्फ दो कनाल भूमि थी, जिस पर वह सब्जी और मक्की की खेती करते थे। उसी से पूरे साल में मात्र 15 हजार रुपये कमा पाते थे, लेकिन चार साल पहले 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ वीडियो कांफ्रेंस के बाद उनकी जिंदगी का रुख ही बदल गया। वह 62 एकड़ जमीन पर लैवेंडर की खेती करने लगे। उसके बाद उनको सालाना तीन लाख तक की कमाई होने लगी। वह पहले जहां, खुद किसी रोजी-रोजगार के लिए तरसते थे, आज 100 किसानों के रोजगार के साथ ही 60 लोग उनके यहां नौकरी कर रहे हैं।


भारत भूषण बताते हैं कि पहली बार वर्ष 2010 में उन्होंने लैवेंडर की खेती करने का मन बनाया था लेकिन लोग उनका मजाक उड़ाने लगे। बाहर की तो छोड़िए, खुद के घर वाले ही विरोध करने लगे। उन्होंने ऐसे हालात की रत्ती भर परवाह नहीं की और खेती में जुट गए। मेहनत और हिम्मत ने उनका साथ दिया। पहली ही फसल खूब अच्छी हुई। इससे उनकी आय बढ़ने लगी।


शुरू में यह खेती कोई आसान काम नहीं था। लैवेंडर का बीज भी बहुत महंगा होता है। पीएम से मुलाकात जिंदगी का टर्निंग प्वॉइंट रहा। उसी दिन केंद्र सरकार ने एरोमा मिशन भी शुरू किया था। आज उन्हे सैंपल बिल्कुल मुफ्त मिलते हैं। हिम्मत बढ़ी तो उन्होंने लैवेंडर की खेती के लिए लीज पर अतिरिक्त जमीन ले ली। वह बताते हैं कि उनके खेत आज कृषि वैज्ञानिकों के लिए भी जैसे रिसर्च सेंटर बन गए हैं। कृषि विज्ञान केंद्र डोडा और कृषि विभाग ने इन खेतों को फील्ड ट्रेनिंग के लिए चुना है। वहां किसानों को ट्रेनिंग दी जा रही है।





भारत भूषण बताते हैं कि लैवेंडर (लैवेन्डुला) पुदिना परिवार लैमिआसे के 39 फूल देने वाले पौधों में से एक प्रजाति है। यह एक पुरानी विश्व प्रजाति मकारोनेसिया (केप वर्डे और कैनरी द्वीप और मैदेरा) अफ्रीका, भूमध्यसागरीय, दक्षिणी पश्चिमी एशिया, अरब, पश्चिमी ईरान और दक्षिण पूर्व भारत के पार से पूरी दुनिया में फैल चुकी है।


बताया जाता है कि यह प्रजाति एशिया में उत्पन्न हुई, लेकिन अब यह अधिक विविधता ले चुकी है। इस प्रजाति में वार्षिक पौधे, जड़ी-बूटियों के पौधे, उपझाड़ियां और छोटी-झाड़ियां भी शामिल हो चुकी हैं। देसी प्रकार कैनरी द्वीप, उत्तरी और पूर्वी अफ्रीका, दक्षिणी यूरोप और भूमध्य सागर, अरब और भारत के पार तक फैला है।


चूंकि दुनिया भर में इसकी खेती हो रही है और उद्यान लगाए जा रहे हैं तो ये जंगलों में अपनी प्राकृतिक सीमा से परे बहुत कम ही पाए जा रहे हैं। हालांकि, जब से लैवेंडर का प्रतिकूल-परागण आसान हो गया है, तब से इस प्रजाति में अनगिनत विवधिता पाई जाने लगी है। ये सूखी, गीली, रेतीली या पथरीली मिट्टी और पूरी धूप में बहुत अच्छी तरह पनपते हैं। इसे बराबर उर्वरक और अच्छी हवा परिसंचरण की जरूरत होती है।