पोप फ्रांसिस ने ईसाई धर्म में ‘कट्टरता’ की निंदा की, ईसाइयत लगातार अप्रासंगिक होता जा रहा- पोप
ऐसा जान पड़ता है कि फ्रांसिस का यह संदेश रूढिवादी एवं परंपरावादी कैथोलिक समुदाय के लिए है । उनमें वैटिकन कुरिया भी हैं, जिन्होंने उनके प्रगतिशील सोच वाले पोपतंत्र के खिलाफ विरोध के स्वर मुखर किये हैं।
पोप फ्रांसिस ने शनिवार को चेतावनी दी कि
‘‘ईसाई धर्म के अनुपालन में ‘कट्टरता’ से दुनिया में नफरत और गलतफहमी की भयंकर स्थिति पैदा हो रही है जहां ईसाइयत लगातार अप्रासंगिक होता जा रहा है।’’
फ्रांसिस ने होली सी (रोमन कैथोलिक क्षेत्र के संप्रभु प्रशासनिक क्षेत्र) में कार्यरत कार्डिनल, बिशप और पादरियों के प्रति अपने वार्षिक क्रिसमस बधाई के दौरान वेटिकन के नौकरशाहों से बदलाव को आत्मसात करने का आह्वान किया।
ऐसा जान पड़ता है कि फ्रांसिस का यह संदेश रूढिवादी एवं परंपरावादी कैथोलिक समुदाय के लिए है । उनमें वैटिकन कुरिया भी हैं, जिन्होंने उनके प्रगतिशील सोच वाले पोपतंत्र के खिलाफ विरोध के स्वर मुखर किये हैं।
इन लोगों की आलोचना इस साल भर के दौरान बढ़ी है जब वेटिकन कई वित्तीय और यौन उत्पीड़न के स्कैंडलों से घिर गया लेकिन फिर भी ये मामले पूरी तरह सामने नहीं आये।
फ्रांसिस ने यह स्वीकार करते हुए एपोस्टोलिक पैलेस के सालाक्लेमेंटिना के कर्मचारियों के लिए आत्मविश्लेषण मापदंड जारी किये कि ईसाइयत की वैसी उपस्थिति और प्रभाव नहीं रहा जो हुआ करता था।
उन्होंने कैथोलिक चर्च की प्रगतिशील शाखा के नेता दिवंगत कार्डिनल कार्लो मारिया मार्टिनी का हवाला दिया जिन्होंने 2012 में अपने निधन से पूर्व आखिरी साक्षात्कार में इस बात पर अफसोस प्रकट किया था कि गिरजाघर बदलाव को अपनाने के डर के कारण ‘‘200 साल पीछे’’ चल रहा है।
आपको बता दें कि इससे पहले मई, 2019 में पोप फ्रांसिस गर्भपात को लेकर दिए गए एक बयान से भी खासा सुर्खियों में रहे थे।
पोप फ्रांसिस ने कहा था,
‘‘गर्भपात कराना ठीक नहीं है, यह क्षमा योग्य नहीं हो सकता है।’’
उन्होंने डॉक्टरों और पादरियों से अनुरोध किया कि वे ऐसे गर्भधारण को पूरा करने में परिवारों की मदद करें।
गर्भपात-रोधी विषय पर वेटिकन-प्रायोजित सम्मेलन में पोप फ्रांसिस ने कहा था
‘‘गर्भपात का विरोध कोई धार्मिक मुद्दा नहीं है बल्कि यह मानवीय विषय है।’’
उन्होंने कहा था,
‘‘यह गैरकानूनी है कि एक समस्या के समाधान के लिये आप अपने अंदर से किसी जीवन को निकाल फेंके।’’
(Edited by रविकांत पारीक )