मिलिए उत्तराखंड के गांव में 500 पेड़ों का एक पूरा जंगल लगाने वाली प्रभा देवी से
जलवायु परिवर्तन की समस्या हमारे ऊपर है। प्लास्टिक के उपयोग, पेड़ों की कटाई और पर्यावरण पर कहर बरपाने वाली अन्य हानिकारक प्रथाओं सहित प्रदूषण के दूरगामी परिणामों से नागरिक और सरकारें अब जूझ रही हैं।
हालांकि दुनिया की तरह भारत के लोग भी हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठे हैं। उदाहरण के लिए आरे वन विरोधों को ही लें। मुंबई के 'लास्ट लंग' कहे जाने वाले इस क्षेत्र में विकास कार्यों के लिए 2,000 पेड़ों की कटाई को रोकने के लिए महाराष्ट्र सरकार के खिलाफ देशव्यापी प्रदर्शन हुआ।
भविष्य की पीढ़ियों के लिए पेड़ महत्वपूर्ण हैं, और प्रभा देवी से बेहतर इसे कोई नहीं जानता। 76 वर्षीय प्रभा देवी ने उत्तराखंड के अपने गांव में एक पूरा जंगल लगाया है।
हिमालयन घाट की रिपोर्ट के मुताबिक, उनके इस जंगल में विभिन्न प्रजातियों के 500 से अधिक पेड़ शामिल हैं, जिनमें ओक, रोडोडेंड्रोन (एक प्रकार की सदाबहार झाड़ी जिसके फूल बड़े होते हैं), दालचीनी, सोप नट (रीठा) आदि शामिल हैं। उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के एक गाँव पालशत की रहने वाली प्रभा देवी ने अपने शुरुआती वर्षों में यह पहल शुरू की और अभी भी यह जारी है।
द लॉजिकल इंडियन से बात करते हुए उन्होंने कहा,
“हमारे गाँव में और उसके आस-पास वनों की कटाई की गतिविधियों में बहुत वृद्धि हुई थी। लोग पेड़ों को काटने के बाद नए भवनों या रिसॉर्ट का निर्माण करना चाहते हैं और जंगलों का पूरा पारिस्थितिकी तंत्र बिगड़ रहा है। जंगलों को मनुष्यों की भौतिकवादी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए निर्दयता से काटते देख मुझे दुख हुआ। मेरे परिवार के पास जमीन का एक छोटा टुकड़ा था जिसे ऐसे ही छोड़ दिया गया था उस पर खेती नहीं होती थी। मैंने उस जमीन पर और अपने घर के आसपास भी पेड़ लगाना शुरू कर दिया। अब, यह घने जंगल में बदल गया है, और मेरा लक्ष्य बंजर भूमि पर अधिक से अधिक पेड़ लगाना है।”
प्रभा देवी की 16 साल की कम उम्र में ही शादी हो गई थी और उन्हें कोई औपचारिक शिक्षा भी नहीं मिली पाई। आज भले ही वह शिक्षित न हों, लेकिन पेड़ों की देखभाल करने के तरीके पर उनके पास अथाह ज्ञान है। वृक्षारोपण के सभी तरीकों को स्वयं से सीखकर, वह इलाके की परिस्थितियों और पेड़ के विकास के लिए महत्वपूर्ण अन्य विवरणों की विशेषज्ञ हैं।
उनके प्रयासों के चलते प्रभा देवी को उनके गाँव में 'फ्रेंड ऑफ ट्री' के नाम से जाना जाता है। भूमिगत पानी की कमी उनके गांव के लिए एक बड़ा चिंता का विषय था। एक समाधान के रूप में, उन्होंने आस-पास के क्षेत्रों में बांज (Baanj) जैसे स्थानीय प्रजातियों के पेड़ लगाने का सुझाव दिया ताकि जल क्षमता को बढ़ाया जा सके।
इसके अलावा, ये पेड़ मवेशियों के लिए चारा भी प्रदान करते हैं या कृषि आधारित गतिविधियों में इस्तेमाल किए जा सकते हैं जिस पर कई स्थानीय लोग निर्भर करते हैं।
प्रभा देवी के बेटे, मनीष सेमवाल ने द लॉजिकल इंडियन को बताया,
“जब हम मां को केवल एक दिन के लिए शहर आने को कहते हैं, तो वह मना कर देती हैं। वह गढ़वाली संस्कृति में गहराई से निहित है और दृढ़ता से महसूस करती हैं कि हमारे जंगल उतने ही महत्वपूर्ण हैं जितना कि हमारे रसम रिवाज जिनकी हम कसमें खाते हैं। चूंकि हम सभी बाहर चले गए हैं, वह जंगल से स्थानीय समुदाय के सदस्यों का भला कर रही हैं।”
प्रभा देवी जैसे लोग अपने तरीके से पर्यावरण को बचाने के लिए काम कर रहे हैं, इससे एक बात तो साफ हो गई है कि धरती माता को लेकर उम्मीदें अभी खोई नहीं हैं।