अपनी एनजीओ कायाकल्प के जरिए सेक्स वर्कर्स और उनके बच्चों की जिंदगी बदल रही हैं सीमा वाघमोडे
जनवरी 2020 में प्रिया (बदला हुआ नाम) पुणे से 100 किलोमीटर दूर स्थित बोरी गांव के एक लड़के के साथ शादी करने जा रही हैं। कुछ साल पहले तक लोग उसे और बुधवार पेठ की दूसरी सेक्स वर्करों को अच्छी नजरों से नहीं देखते थे। बुधवार पेठ को पुणे के रेड-लाइट एरिया के रूप में जाना जाता है। यहां से बाहर निकलकर शादी करना और घर बसाना किसी सपने के पूरा होने जैसा है। यौन शोषण से खुद को बचाने के लिए प्रिया ने सीमा से संपर्क किया और इस दलदल से बाहर निकलीं। कुछ इस तरह से सेक्स वर्कर्स की सहमति से सीमा आमतौर पर अपने रेस्क्यू प्रोजेक्ट कंडक्ट करती हैं।
इसके अलावा क्षेत्र के अन्य लोग भी आते हैं और इस पेशे में शामिल कम उम्र की महिलाओं की सूचना उन्हें देते हैं। और उन्हें पुलिस की मदद से बचाया जाता है। एक अन्य लड़की, अभिलाषा (बदला हुआ नाम) ने अपनी बीकॉम की डिग्री पूरी कर ली है, और बैंकिंग क्षेत्र में अपनी पढ़ाई जारी रखी है।
कायाकल्प की सीमा वाघमोडे जीवन में आगे बढ़ने वाली महिलाओं के लिए सहायक हैं। उनकी संस्था ने अपनी शिक्षा को जारी रखने के लिए अभिलाषा को 52,000 रुपये की मदद की। लेकिन सीमा का मानना है कि उनका काम खत्म नहीं हुआ है।
1993 में, सीमा एचआईवी-एड्स के लिए भारत में राज्य सरकार की रिसर्च टीम में शामिल हुईं। दरअसल उस समय वायरस या सिंड्रोम के बारे में बहुत कम जानकारी थी, और उन्हें कॉमर्शियल सेक्स वर्कर्स की स्वास्थ्य स्थितियों का आकलन करने के लिए भेजा गया था। लेकिन जब वे पुणे के रेड-लाइट एरिया बुधवार पेठ पहुंचे, तो सीमा जानती थीं कि अकेले स्वास्थ्य निरीक्षण से कोई फायदा होने वाला नहीं है।
वह महिलाओं, या उनके बच्चों को उनके भाग्य पर नहीं छोड़ सकती थीं। जब वह उनकी बेहतरी के लिए काम करना चाहती थीं, तो उनके पति शिरीष ने उन्हें एक समझदार सलाह दी।
उन्होंने कहा,
"यदि तुम सच में उनके लिए काम करना चाहती हो, तो आगे बढ़ो, लेकिन तुम्हारे सामने बहुत सारी कठिनाइयाँ होंगी।"
संघर्षों भरे जीवन में जन्म
पुणे के बुधवार पेठ में रेड-लाइट एरिया न केवल कॉमर्शियल सेक्स वर्कर्स के लिए, बल्कि उनके बच्चों के लिए भी घर है। उस एरिया में अपने अनुभवों को याद करते हुए, सीमा ने कहा कि उन्होंने एक बार एक लड़के को अपनी माँ से ये कहते हुए सुना कि वो "एक और ग्राहकों को ले ले", क्योंकि वह भूखा था। इस घटना ने उनकी जिंदगी बदल दी।
वह आश्वस्त थीं कि उन्हें उन बच्चों के लिए कुछ करना होगा, जो ऐसी जगह पैदा हुए हैं जिसे उन्होंने नहीं मांगा था। उन्होंने बच्चों को देखा और पाया कि वे प्योर और इनोसेंट हैं। वे एक सुंदर बचपन और और बुनियादी अधिकारों के हकदार हैं।
एक साल बाद, 1994 में, उन्होंने बुधवार पेठ में 'कायाकल्प' को शुरू किया। यह एचआईवी/एड्स रोगियों की सहायता करने वाला पहला एनजीओ बन गया। यह सेक्स वर्कर्स के बच्चों के पुनर्वास केंद्र के रूप में भी काम कर रहा है।
घर से दूर स्वर्ग
दो दशक से अधिक समय के बाद, अब तक उन्होंने 10,000 से अधिक सेक्स वर्कर्स और उनके बच्चों की मदद की है। क्षेत्र के लोग उन्हें प्यार करते हैं और अलग-अलग नामों से संबोधित करते हैं जैसे- मैडम, दीदी, मामा, और अब अची (जिसका अर्थ है दादी)।
वर्ष 2006 सीमा के लिए एक मुश्किल समय था। सेक्स ट्रैफिकिंग इंडस्ट्री अपने चरम पर थी। बच्चों के सामने अपनी मताओं को सेक्सुअल सर्विस प्रोवाइड कराते हुए देखने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था। इसे देखते हुए उनके संगठन कायाकल्प ने वाईएमसीए पुणे के साथ करार किया और उन बच्चों के लिए एक ऐसा घर दिया जिसमें दिन और रात हर समय उनकी देखभाल की जा सके।
इसके बाद, उन्होंने और उनके पति ने फैसला किया कि बच्चों को जिले से दूर ले जाना बेहतर होगा। 2015 में, उनकी ससुराल, वाघमोडे फैमिली ने बोरी गाँव में जमीन का एक टुकड़ा दान किया, और स्कॉटिश चैरिटी संगठन, द फ्री टू लिव ट्रस्ट की फंडिंग की मदद से 6,500 वर्ग फुट का एक बाल विकास केंद्र बनाया।
सीमा ने योरस्टोरी को बताया,
"यह एक स्वर्ग की तरह है और यह वह है जिसे मैं उन बच्चों के लिए बनाना चाहती थी।"
पिछले साल, एक और इमारत का निर्माण किया गया, जिसमें लड़कों और लड़कियों के लिए अलग-अलग जगह आवंटित की गई। सीमा कहती हैं कि जमीन पर्याप्त है, लेकिन खेल के मैदानों, पानी की टंकियों और अन्य सुविधाओं को बनाने के लिए फंड की कमी है।
एक बड़ा परिवार
विकास केंद्र का नाम उनके ससुर के नाम पर रखा गया है और इसे रेवरेंड हरिभाऊ वाघमोडे पाटिल प्रतिष्ठान कहा जाता है। सीमा के अनुसार, यहां हर किसी का स्वागत है, एरिया के बच्चे और बचाए गए सेक्स वर्कर्स जो आमतौर पर छोटे बच्चों की देखभाल करते हैं
सीमा बच्चों को एक सलाह देती हैं, वे कहती हैं कि
"मैं हमेशा तुम्हारे लिए वहां मौजूद हूं और इसका मतलब है कि तुम्हें भी उनके लिए वहां रहना होगा।"
एक बार, सुबह-सुबह एक शिशु को उनके घर के दरवाजे पर कोई छोड़ गिया। घर में उसका स्वागत करते हुए, उन्होंने उसका नाम एंजेल रखा, और अब वह लगभग ढाई साल की है।
एक परिष्कृत भिखारी
सीमा (63) खुद को एक परिष्कृत भिखारी बताती हैं और मानती हैं कि मांगना तब तक ठीक है, जब तक कि वे पैसे किसी अच्छे काम के लिए उपयोग किए जाते हैं। वह पूछती हैं, "मुझे दोषी क्यों महसूस करना चाहिए?"। सीमा हमेशा अपने एनजीओ को चालू रखने के तरीके खोज रही हैं। और जिन लोगों ने उनकी मदद ली, वे इसे सबसे अच्छी तरह जानते हैं।
7 अप्रैल, 2017 को बुधवार पेठ स्थित एनजीओ कायाकल्प के ऑफिस में जब सीमा कार से बाहर निकलकर पहुंचती हैं तो पूरा ऑफिस फुल होता है लोग असामान्य रूप से जश्न के मूड में होते हैं। लोग सीमा के जन्म 60वें को मनाने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं। जन्मदिन को मनाने के लिए दिल की आकृतियों में पंखुड़ियों को रखा गया था।
सीमा को गिफ्ट करने के लिए कमर्शियल सेक्स वर्कर्स ने मिलकर 60,000 रुपये दिए थे। वे कहती हैं,
"मैंने 40,000 रुपये और इकट्ठे किए और एक गाय खरीदी ताकि मेरे बच्चे ताजा दूध का आनंद ले सकें। और अब हमारे पास हमारे फार्म पर बत्तख, खरगोश और एक गाय है।"
2004 में, कायाकल्प को बिल और मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन से छह साल के लिए फंड की पेशकश की गई थी। यही नहीं 2008 में, खुद गेट्स फैमिली ने उनके केंद्र को विजिट किया।
"आगे आने में इनाम है"
इन कॉमर्शियल सेक्स वर्कर्स को सबसे ज्यादा नजरअंदाज कर दिया जाता है। सीमा ने उनकी शिकायतों को दूर करने में सरकार की ओर से कोई प्रगति नहीं देखी है। वह कहती हैं कि कम से कम जो किया जा सकता है वो तो करना चाहिए जैसे कंडोम का उपयोग करने और एचआईवी / एड्स रोगियों के लिए लगातार उपचार प्रदान करने के महत्व को बताना चाहिए है। 5,000 रुपये का मासिक उपचार कभी-कभी अनुपलब्ध होता है और उनके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं होता है। परिणामस्वरूप, रोगी की प्रतिरोधी शक्तियाँ कम हो जाती हैं।
उपचार के हिस्से के रूप में दवा लेने के अलावा रोगी को पौष्टिक भोजन करके अपने आहार का भी ध्यान रखना चाहिए। इसके लिए, सेक्स वर्कर्स ने कायाकल्प के तहत आठ साल तक एक सामुदायिक रसोईघर चलाया, जब तक कि उन्होंने भोजन की खरीद के लिए धन का प्रबंधन नहीं कर लिया तब तक। बाद में, संगठन ने बच्चों के लिए भोजन की व्यवस्था की और उन्हें स्कूल जाने के लिए भी मना लिया।
सीमा के लिए यह एक आसान रास्ता नहीं रहा है। लोग उलझन में थे, और उन्हें उनके इरादे पर भी शक था। उन्होंने महसूस किया कि वह इस मुद्दे में काफी ज्यादा अंदर तक जा चुकी हैं और लोगों को लगा कि उन्हें खुद के लिए समय निकालना चाहिए। जब उनकी बड़ी बेटी की शादी हुई, तो उसने अपनी मां सीमा को बताया कि उसे अपनी मां के साथ पर्याप्त समय नहीं मिला और उन्होंने कहा कि अपनी छोटी बेटी के साथ भी ऐसा न करना। लेकिन सीमा कहती हैं, जरूरतमंद लोगों की मदद करने के लिए खुले दिल से आगे आने में इनाम है।