पढ़ें, बीते हफ्ते की कुछ कहानियाँ जो रोचक होने के साथ ही प्रेरणादायक भी हैं
बीते हफ्ते प्रकाशित हुईं कुछ बेहतरीन कहानियों को हम आपके सामने संक्षेप में प्रस्तुत कर रहे हैं। कहानियों के साथ दिये गए लिंक पर क्लिक कर आप पूरी कहानी विस्तार में पढ़ सकते हैं।
बीते हफ्ते प्रकाशित हुईं कुछ खास कहानियाँ एक नई सोच के साथ ही हमें प्रेरणा भी देती हैं। कहानी चाहे पारंपरिक कारों को इलेक्ट्रिक कारों में तब्दील करने की हो या संस्कृत को नए कलेवर के साथ लोगों के समक्ष प्रस्तुत करने की, इन सभी कहानियों से सकारात्मक ऊर्जा का संचार हो रहा है।
नीचे हम उन सभी बेहतरीन कहानियों को संक्षेप में आपके सामने पेश कर रहे हैं, आप इनके साथ दिये गए लिंक पर क्लिक कर पूरी कहानी विस्तार में पढ़ सकते हैं।
प्रदूषण और ट्रैफिक जाम से मिलेगा छुटकारा
प्रदूषण का लगातार बढ़ता स्तर विश्व भर के लिए लिए चिंता का विषय बना हुआ है। देश में वाहनों की बढ़ती संख्या न सिर्फ प्रदूषण का बड़ा कारण है, बल्कि ये कारें महानगरों में जाम की मुख्य वजह भी हैं। इस समस्या के समाधान के लिए हैदराबाद आधारित स्टार्टअप ‘भारत मोबी’ एक नई सोच के साथ आगे बढ़ रहा है।
भारत मोबी पेट्रोल और डीजल से चलने वाली पारंपरिक कारों को इलेक्ट्रिक कारों में परिवर्तित करने का काम करता है। देश में अभी इलेक्ट्रिक व्हीकल की कीमत पारंपरिक कारों की तुलना में अधिक है, लेकिन भारत मोबी कम कीमत पर पेट्रोल और डीजल से चलने वाली कारों को इलेक्ट्रिक में बदलने का काम कर रही है।
भारत मोबी के सह संथापक अशर कहते हैं,
“इस तरह हम तीन मुख्य समस्याओं को सुलझा रहे हैं। एक तो है प्रदूषण, दूसरा है ट्रैफिक की समस्या और तीसरा है वाहनों को कबाड़ में तब्दील होने से बचाना।”
इस बेहतरीन कहानी को आप इधर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।
संस्कृत हुई रीब्रांड
देववाणी संस्कृत आज देश में अपना अस्तित्व को बचाने की लड़ाई लड़ रही है। कभी जिस भाषा में वेदों की रचना की गई थी, आज पाश्चात्य संस्कृति के हावी होने से देश में संस्कृत में रुचि रखने वाले लोगों की संख्या में काफी कमी आई है। इसी बीच मुंबई के युवा ने संस्कृत भाषा को फिर से लोगों के बीच ले लाने का बीणा उठाया है।
सुशांत रत्नापारखी रीसंस्कृत नाम से एक वेबसाइट और इंस्टाग्राम पेज चलाते हैं, जहां वे संस्कृत के श्लोकों को अर्थ और डिजाइन के साथ लोगों के सामने प्रस्तुत करते हैं। सुशांत की इस पहल को लोग सराह रहे हैं। रीसंस्कृत के इंस्टाग्राम पेज पर आज 1 लाख 70 हज़ार से अधिक फॉलोवर्स हैं। सुशांत संस्कृत को रीब्रांड करते हुए इसे एक व्यवसाय का रूप देने की ओर बढ़ रहे हैं।
रीसंस्कृत के बारे में बात करते हुए सुशांत कहते हैं,
"बीते 15 सालों में देश में तकनीक और विज्ञान ने अपनी जगह बनाई है, ऐसे में मुझे लगता था कि संस्कृत को भी एक नई जगह मिलेगी। मैंने इंतज़ार किया, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। फिर मैंने सोचा कि क्यों न मैं ही कुछ शुरुआत करूँ।"
रीसंस्कृत की यह कहानी आप इधर पढ़ सकते हैं।
मशहूर 'ठग्गू के लड्डू'
उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में एक दुकान है ‘ठग्गू के लड्डू’, जिसकी टैगलाइन है ‘ऐसा कोई सगा नहीं, जिसको हमने ठगा नहीं।’ ठग्गू के लड्डू अपनी मिठाई की गुणवत्ता के लिए मशहूर है। यह कारोबार 6 दशक पहले शुरू हुआ था, आज इसे तीसरी पीढ़ी संभाल रही हैं। इस दुकान के नाम के पीछे गांधी जी से जुड़ा हुआ एक संदर्भ भी है।
ठग्गू के लड्डू में काम करने वाले कर्मचारियों को वो आवास भी मुहैया कराते हैं। दुकान कितनी चर्चित है इस बात का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि दुकान के आस-आस बॉलीवुड कि कई फिल्मों की शूटिंग हुई है। 'ठग्गू के लड्डू' के पास लड्डू के अलावा एक कुल्फी है, जिसका नाम ‘बदनाम कुल्फी’ है। ‘ठग्गू के लड्डू’ की यह पूरी कहानी आप इधर पढ़ सकते हैं।
साहस से पाई कैंसर पर जीत
कैंसर जैसी बीमारी से लड़ने के लिए शारीरिक और मानसिक दोनों ही स्तर पर इंसान का मजबूत होना आवश्यक है। इसी तरह की हिम्मत की मिशाल है विभा रानी। पेशे से लेखक, थिएटर आर्टिस्ट, कवि और एक्टर विभा आज अन्य कैंसर पीड़ितों की मदद के लिए भी पहल कर रही हैं।
कैंसर जैसी बीमारी से जूझते हुए भी विभा रानी ने जो हिम्मत दिखाई, उस संदर्भ में बात करते हुए वह कहती हैं,
“मैं बीमारी से जूझ रही थी, लेकिन मुझे कोई अधिकार नहीं था कि मेरी वजह से मेरे परिवार वाले दुखी हों।”
बीमारी के चलते जारी इलाज के दिनों में विभा रानी ने कई कविताएं लिखीं, जो बाद में एक संग्रह के रूप में प्रकाशित हुईं। विभा आज अन्य कैंसर मरीजों की सीधे तौर पर मदद करती हैं। विभा की पूरी कहानी आप इधर पढ़ सकते हैं।
नहीं डगमगाया हौसला
स्कूल ऐसा की कुछ कक्षाओं के लिए शिक्षक तक नहीं थे, लेकिन छत्तीसगढ़ के आदिवासी क्षेत्र से आने वाले सुरेश के इरादे इन सब से नहीं डिगने वाले थे। सुरेश ने अपनी शिक्षा के सामने किसी भी समस्या को आड़े नहीं आने दिया और बेहतरीन प्रदर्शन करते गए।
एनआईटी में बीटेक की पढ़ाई और फिर गेट क्लियर कर एनटीपीसी में नौकरी के बाद भी सुरेश का मन आईएएस परीक्षा पर ही रुका हुआ था। सभी चुनौतियों को गलत साबित करते हुए सुरेश ने अपने चौथे प्रयास में आईएएस के लिए क्वालिफ़ाई किया।
अपनी सफलता के बारे में सुरेश कहते हैं,
“समस्याओं से घिरकर जब मंजिल हासिल होती है, तो उसका मजा ही कुछ और होता है। परेशानियों से घिरा एक व्यक्ति जितना मजबूत होता है, उतना कोई और नहीं हो सकता।"
सुरेश की पूरी कहानी आप इधर पढ़ सकते हैं।