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जानिए आसमान के टाइटेनिक कहे जाने वाले हिंडनबर्ग एयरशिप की कहानी, जिंदा जल गए थे 36 लोग!

हिंडनबर्ग एयरशिप हादसे में 35 लोगों की मौत हुई थी. वहीं जमीन पर खड़ा एक क्रू मेंबर भी जलकर गिरे एयरशिप के नीचे दबकर मर गया था. उस दौर में हिंडनबर्ग एयरशिप को आसमान का टाइटेनिक कहा जाता था.

जानिए आसमान के टाइटेनिक कहे जाने वाले हिंडनबर्ग एयरशिप की कहानी, जिंदा जल गए थे 36 लोग!

Saturday February 04, 2023 , 6 min Read

पिछले कुछ दिनों से लगातार गौतम अडानी (Gautam Adani) के खिलाफ आई हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट (Hindenburg Research Report) की बातें हो रही हैं. तमाम सवालों के बीच एक सवाल ये भी उठा कि आखिर इस रिसर्च फर्म ने अपना नाम हिंडनबर्ग क्यों रखा. दरअसल, हिंडनबर्ग नाम की एक एयरशिप (Hindenburg Airship) हुआ करती थी, जो भयानक हादसे का शिकार हुई थी. उस हादसे में करीब 35 लोग मारे गए थे. इस एयरशिप को आसमान का टाइटेनिक (Titanic of Sky) भी कहा जाता था. हिंडनबर्ग रिसर्च फर्म के फाउंडर नैट एंटरसन (Nate Anderson) का मानना है कि यह इंसानों की गलती का नतीजा है, जिसे रोका जा सकता था, लेकिन उस पर ध्यान नहीं दिया गया. वह दुनिया भर के इंसानों की तरफ से पैदा किए गए घोटालों (Scam) को उजागर करते हैं, इसलिए उन्होंने अपनी कंपनी को भी हिंडनबर्ग नाम दिया. अब सवाल ये है कि आखिर उस हिंडनबर्ग एयरशिप हादसे (Hindenburg Airship Crash) की क्या कहनी है?

करीब 86 साल पुरानी है ये कहानी

ये बात है 6 मई 1937 की, जब हिंडनबर्ग नाम का एयरशिप हादसे का शिकार हुआ था. इस एयरशिप ने 3 मई 1937 को जर्मनी के फ्रैंकफर्ट से अमेरिका के न्यू जर्सी के लिए उड़ान भरी थी. जब यह न्यू जर्सी पहुंचने वाली थी जो मौसम कुछ खराब हो गया, जिसकी वजह से पहली बार में यह एयरशिप लैंड नहीं कर पाया. कंट्रोल रूम से उसे थोड़ी देर के लिए तूफान से दूर जाकर आसमान में ही उड़ने के लिए कहा गया था, क्योंकि एयरशिप की लैंडिंग बहुत मुश्किल होती थी. जब मौसम ठीक हुआ तो लैंडिंग की इजाजत मिली और हिंडनबर्ग एयरशिप न्यू जर्सी की लैंडिंग साइट की ओर बढ़ चला. अभी कुछ ही वक्त बीता था कि हवा का रुख हिंडनबर्ग एयरशिप के खिलाफ होने लगा. ऐसे में दो रास्ते थे. पहला ये कि हवा के रुख के साथ धीरे-धीरे लैंडिंग साइट की ओर बढ़ने की कोशिश की जाए, लेकिन इससे लैंडिं में और ज्यादा देर हो जाती. वहीं कैप्टन ने दूसरा तरीका चुना और एक तगड़ा मोड़ लेते हुए हवा के रुख के खिलाफ लैंडिंग साइट पर पहुंचने का फैसला किया.

तगड़ा मोड़ लेना मानी जाती है हिंडनबर्ग की पहली गलती

कुछ थ्योरी ऐसी हैं कि इस तगड़े मोड़ की वजह से हिंडनबर्ग में लगे स्टील के तारों में से पिछले हिस्से के कुछ तार टूट गए और उन्होंने एक गैस चैंबर को डैमेज कर दिया. नतीजा ये हुआ कि उस गैस चेंबर से गैस लीक होनी शुरू हो गई. लैंडिंग साइट के पास पहुंचने से कुछ देर पहले कैप्टन ने नोटिस किया कि एयरशिप का पिछला हिस्सा नीचे झुक रहा है, जबकि लैंडिंग के वक्त एयरशिप को बैलेंस रहना जरूरी होता है. ऐसे में बैलेंस करने के लिए कैप्टन की तरफ से करीब 3 बार पिछले हिस्से से पानी गिराने के आदेश दिए गए. बैलेंस करने के लिए कई सारे क्रू मेंबर्स को एयरशिप में आगे की तरफ आने को कहा गया, ताकि पीछे वजन कम करते हुए एयरशिप को बैलेंस किया जा सके.

35-40 सेकेंड में जलकर खाक हो गया आसमान का टाइटेनक

आखिरकार लैंडिंग का वक्त आ गया. एयरशिप की लैंडिंग के लिए उसमें से कुछ रस्सियां फेंकी जाती थीं, जिनकी मदद से एयरशिप को नीचे खींचा जाता था. हिंडनबर्ग एयरशिप लैंडिंग साइट के ऊपर पहुंचकर रुक गया और रस्सियां फेंकी गईं. अभी क्रू मेंबर्स रस्सियों की मदद से एयरशिप को खींच ही रहे थे कि एयरशिप के पिछले हिस्से में अचानक आग लग गई. पूरे शिप में ढेर सारी ज्वलनशील हाइड्रोजन गैस भरी थी, जिसने एक झटके में आग पड़ ली. महज 35-40 सेकेंड में ही आसमान का टाइटेनिक कहा जाने वाला हिंडनबर्ग जलकर खाक हो गया.

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अचानक कैसे लग गई आग?

सवाल ये है कि आखिर आग लगी कैसे. इसके पीछे एक थ्योरी ये बताई जाती है कि जब एयरशिप आसमान में तूफान का सामना कर रहा था, उस वक्त आकाशीय बिजली से उसका बाहरी हिस्सा और अंदर का एल्युमिनियम से बना ढांचा इलेक्ट्रिक चार्ज हो गया था. जब रस्सियां नीचे फेंकी गई तो शुरुआत में वह सूखी थीं, इसलिए करंट का सीधे धरती से संपर्क नहीं हुआ. मौसम खराब था और बारिश हुई थी, जिसके चलते थोड़ी देर में रस्सियां गीली हो गईं और एयरशिप के एल्युमिनियम के ढांचे का सारा करंट धीरे-धीरे धरती में चला गया. अब अंदर ढांचे का करंट जीरो था, लेकिन बाहरी हिस्सा अभी भी करंट से चार्ज था. नतीजा ये हुआ कि लीक होती हाइड्रोजन गैस ने एक चिंगारी पैदा कर दी. देखते ही देखते इस चिंगारी ने विकराल आग का रूप ले लिया.

35 सेकेंड में 35 मौतें

हिंडनबर्ग एयरशिप में करीब 36 यात्री और 61 क्रू के सदस्य मौजूद थे. घटना में करीब 13 यात्री और 22 क्रू के सदस्यों यानी 35 लोगों की मौत हो गई. इस तरह महज 35 सेकेंड में एयरशिप पूरा जल गया और 35 लोग मारे गए. इनमें अधिकतर लोगों की मौत आग में जलने की वजह से हुई. वहीं कुछ लोगों ने डर के मारे ऊंचाई से ही खिड़कियां तोड़कर कूदना शुरू कर दिया था, जिससे भी कई सारे लोग मारे गए. वहीं ये एयरशिप जलकर जब नीचे गिरा तो वहां खड़े एक क्रू मेंबर की भी मौत हो गई. यानी इस हादसे ने कुल मिलाकर 36 लोगों की जान ली. सब कुछ 35-40 सेकेंड के अंदर ही हो गया, ऐसे में किसी को संभलने तक का मौका नहीं मिला.

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आसमान का टाइटेनिक कहा जाता था हिंडनबर्ग

हिंडनबर्ग की तुलना टाइटेनिक से की जाती थी. यह करीब 245 मीटर लंबा था यानी लगभग 13 मंजिल ऊंची इमारत जैसा, इसमें सारी लग्जरी सुविधाएं मौजूद थीं. इसी वजह से इसकी तुलना टाइटेनिक से की जाती थी. खैर, टाइटेनिक तो अपनी पहली ही यात्रा में डूब गया था, लेकिन हिंडनबर्ग ने करीब 62 सफल उड़ानें भरी थीं. हालांकि, अपनी 63वीं यात्रा में हिंडनबर्ग दुर्घटनाग्रस्त हो गया. इसमें 16 गैस चैंबर थे, जिसमें करीब 2 लाख क्यूबिक मीटर हाइड्रोजन गैस भरी जा सकती थी. इस शिप में ऊपर की तरफ गैस के चेंबर होते थे और लोगों के बैठने की व्यवस्था और क्रू मेंबर का केबिन होता था.

उस दिन हिंडनबर्ग की आग में जल गई पूरी एयरशिप इंडस्ट्री

हिंडनबर्ग हादसे से पहले तक दुनिया में एयरशिप काफी मशहूर हुआ करती थीं. कई कंपनियां एयरशिप बनाती थीं और ऑपरेट करती थीं. हालांकि, हिंडनबर्ग हादसे के बाद लोगों और अधिकारियों को इस गलती का अहसास हुआ कि जिस हाइड्रोजन गैस की मदद से ये एयरशिप उड़ते हैं, वह बहुत ही ज्यादा ज्वलनशील होती है. हिंडनबर्ग हादसे के बाद लोगो का भरोसा भी एयरशिप से उठने लगा. वहीं दूसरी ओर कमर्शियल एयरप्लेन की भी शुरुआत होने लगी थी. नतीजा ये हुआ कि देखते ही देखते पूरी एयरशिप इंडस्ट्री ही खत्म हो गई.

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