कहानी भारत की पहली महिला डॉक्टर की
कलकत्ता मेडिकल कॉलेज ने कादंबिनी गांगुली को एडमिशन देने से इनकार कर दिया था क्योंकि उस समय यह नियम था कि लड़कियों को मेडिसिन में दाखिला नहीं दिया जाता था.
आज कादंबिनी गांगुली की पुण्यतिथिहै. आज से 161 साल पहले आज ही के दिन भागलपुर में (जो उन दिनों बंगाल प्रेसिडेंसी का हिस्सा हुआ करता था ) के बंगाली ब्राम्हण परिवार में कादंबिनी का जन्म हुआ था.
कादंबिनी गांगुली का परिचय यह है कि वह मेडिसिन की पढ़ाई करने के बाद भारत में मेडिकल प्रैक्टिस करने वाली पहली भारतीय महिला थीं. वह 1884 में कलकत्ता मेडिकल कॉलेज में एडमिशन पाने वाली पहली महिला थीं. इतना ही नहीं, वह इंडियन नेशनल कांग्रेस में भाषण देने वाली भी पहली महिला थीं. यूरोप जाकर एडवांस मॉडर्न मेडिसिन की ट्रेनिंग लेने वाली भी वह पहली भारतीय
महिला थीं.
कादंबिनी गांगुली का जन्म गुलाम भारत में उस दौर में हुआ, जब मेडिसिन पढ़ना तो दूर, मामूली स्कूली शिक्षा को भी लड़कियों के लिए बुरा माना जाता था. उनके पिता ब्रज किशोर बासु खुद एक सामाजिक कार्यकर्ता थे और आजादी के आंदोलन में सक्रिय थे. उन्होंने 1863 में भागलपुर में भारत के पहले महिला अधिकार संगठन “महिला अधिकार समिति” की शुरुआत की थी. उदार विचारों वाले और सामाजिक रूढि़यों के खिलाफ सुधार आंदालनों में सक्रिय नंदकिशोर ने बेटी को स्कूल भेजकर पढ़ाने का फैसला किया. कादंबिनी शुरू से ही पढ़ाई में तेज थी. पिता पढ़ने को प्रेरित करते और बेटी हर कक्षा में अव्वल आकर पिता का हौसला और उम्मीद बढ़ा देती.
कादंबिनी गांगुली की शुरुआती शिक्षा
कादंबिनी ने उस जमाने में अंग्रेजी मीडियम से पढ़ाई की, जब ऊंची जाति का लड़कियों के लिए शिक्षा के दरवाजे भी बंद थे. 1878 में उन्होंने कलकत्ता यूनिवर्सिटी की प्रवेश परीक्षा पास की. यह परीक्षा पास करने वाली वह पहली भारतीय महिला थीं. वह और चंद्रमुखी बासु, दोनों को ग्रेजुएशन की पढ़ाई करने वाली पहली भारतीय महिला होने का गौरव हासिल है.
कलकत्ता मेडिकल कॉलेज के खिलाफ लंबी लड़ाई
कादंबिनी मेडिकल की पढ़ाई करना चाहती थीं, लेकिन यह मुमकिन नहीं था क्योंकि तब कलकत्ता मेडिकल स्कूल का यह अलिखित नियम था कि वहां लड़कियों को दाखिला नहीं मिलता था. द्वारकानाथ ने मेडिकल कॉलेज के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. लंबी लड़ाई के बाद आखिरकार वह कादंबिनी को वहां एडमिशन दिलाने में कामयाब रहे. एडमिशन ने 11 दिन पहले 12 जून, 1883 को कादंबिनी ने द्वारकानाथ गांगुली से विवाह कर लिया. तब उनकी उम्र 22 साल थी.
1844 में जन्मे द्वारकानाथ गांगुली अपने समय के नामी सामाजिक कार्यकर्ता थे. कादंबिनी से उनका परिचय इस प्रकार हुआ कि वह स्कूल में उनके टीचर भी थे. कादंबिनी का प्रखर दिमाग और पढ़ाई के प्रति उनकी लगन से प्रेरित होकर द्वारकानाथ ने उन्हें आगे मेडिसिन की पढ़ाई करने के लिए प्रेरित किया था.
मेडिकल की पढ़ाई और गृहस्थी का बोझ
कादंबिनी असाधारण प्रतिभा की धनी थीं, लेकिन विवाह के तुरंत बाद ही वह एक बच्चे की मां बन गईं. इन दोनों जिम्मेदारियों को साथ-साथ निभाना आसान नहीं था. आगे चलकर उन्होंने कुल 8 बच्चों को जन्म दिया और इन बच्चों की परवरिश और तमाम घरेलू जिम्मेदारियों के साथ मेडिसिन की पढ़ाई पूरी की. फिर यूके जाकर मॉडर्न मेडिसिन की एडवांस ट्रेनिंग ली, कुछ साल यूके में काम किया और फिर भारत लौटकर अपनी प्रैक्टिस शुरू की. कादंबिनी अपने समय की नामी डॉक्टरों में शुमार की जाती थीं.
जब एक बांग्ला पत्रिका ने लिखा, “कादंबिनी गांगुली वेश्या हैं”
बंगाल का संकीर्ण रूढि़वादी समाज, जो आजादी की लड़ाई में तो सक्रिय रूप से भागीदार था, लेकिन वह महिलाओं की आजादी के पक्ष में नहीं था. इसलिए उस दौर के बहुत सारे रसूखदार लोग कादंबिनी को पसंद नहीं करते थे. कादंबिनी सिर्फ प्रैक्टिसिंग डॉक्टर ही नहीं थीं, बल्कि अपने समय की मुखर आवाज भी थीं. वह महिला संगठनों के साथ मिलकर स्त्री अधिकारों के लिए आवाज उठाने वाली अपने समय की प्रतिनिधि आवाज थीं. यह बात कट्टर मर्दवादी ब्राम्हणों के गले नहीं उतरती थी.
जब कादंबिनी यूके से लौटकर हिंदुस्तान आईं तो एक बांग्ला पत्रिका “बंगभाषी” ने अपने संपादकीय में कादंबिनी के लिए अपरोक्ष रूप से लिखा कि वह वेश्या हैं. द्वारकानाथ गांगुली ने उस मैगजीन पर मुकदमा कर दिया और वो मुकदमा जीते भी. पत्रिका के संपादक महेश पाल को छह महीने की
जेल हुई.
मुंह में आवाज रखने वाली, मुखर औरतों को वेश्या बुलाना तो आम था, लेकिन ऐसा पर किसी को छह महीने जेल की सजा काटनी पड़े, ऐसा पहली बार हुआ था.
अमेरिकन इतिहासकार की नजर से
दक्षिण एशियाई इतिहास के विशेषज्ञ अमेरिकन इतिहासकार डेविड कॉफ लिखते हैं, “निश्चित ही कादंबिनी गांगुली अपने समय की सबसे आजाद और समर्थ ब्राम्हण स्त्री थीं. अपने पति द्वारकानाथ गांगुली के साथ उनका रिश्ता उस दौर के संबंधों से इतर आपसी प्रेम, बराबरी, संवेदनशीलता और बुद्धिमत्ता की जमीन पर बना था.” कॉफ लिखते हैं कि बंगाली भद्रलोक की पढ़ी-लिखी और बुद्धिमान स्त्रियों के बीच भी कादंबिनी गांगुली बिलकुल अलग थीं. उनमें मनुष्य की क्षमताओं को पहचाने, उसके भीतर झांक लेने की अभूतपूर्व क्षमता थी. बंगाली समाज की स्त्रियों के उत्थान के लिए किया गया उनका काम अतुलनीय है.”