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Infosys की कहानी: 8 लाख करोड़ वैल्यूएशन, 3 लाख एम्पलॉई; कभी पत्नी से 10000 उधार लेकर की थी शुरुआत

Infosys भारत में IT सेक्टर की सबसे बड़ी कंपनियों में शुमार है. इसकी शुरुआत को अब चार दशक हो चुके हैं. अमेरिकी शेयर मार्केट में लिस्ट होने वाली ये पहली भारतीय कंपनी है. कंपनी की वैल्यूएशन करीब 8 लाख करोड़ रुपये है और इसमें करीब लाख एम्पलॉई जॉब करते हैं... लेकिन इसकी शुरुआत की कहानी बेहद दिलचस्प है...

Infosys की कहानी: 8 लाख करोड़ वैल्यूएशन, 3 लाख एम्पलॉई; कभी पत्नी से 10000 उधार लेकर की थी शुरुआत

Thursday December 15, 2022 , 8 min Read

आज के दौर में IT सेक्टर में जॉब करने वाले हर शख्स का सपना है कि उसके पास इंफोसिस लिमिटेड (InfosysLtd.) का आईडी कार्ड हो. उसे वहां जॉब मिल जाए; फिर चाहे वह सॉफ्टवेयर इंजीनियर हो, या हार्डवेयर इंजीनियर. आज Infosys दुनियाभर की नामचीन कंपनियों में शुमार है. इसे भारत की अर्थव्यवस्था में योगदान देते हुए 4 दशक हो चुके हैं. इस सफर में कंपनी ने लगभग 8 लाख करोड़ की वैल्यूएशन बनाई और लगभग तीन लाख एम्पलॉई यहां जॉब करते हैं.

इंफोसिस में हर साल 20 लाख से ज्यादा जॉब एप्लीकेशन आती हैं. इतनी तो भारत के 95% शहरों की आबादी भी नहीं है.

साल 2022 में Infosys कई बड़ी आईटी कंपनियों को पछाड़कर दुनिया की तीसरी सबसे वैल्युएबल कंपनी बन गई है.

लेकिन जैसा की हर एक हसीन सफर की शुरुआत बेहद मुश्किल होती है... कई उतार-चढ़ाव आते हैं. एक को-फाउंडर छोड़ गए, कंपनी बिकने की कगार पर आ गई, IPO फ्लॉप रहा. Infosys ने भी ये सब देखा है. पर वो कहते हैं न... योद्धा गिरते नहीं, थकते नहीं, हारते नहीं... तमाम मुश्किलों के बावजूद Infosys खड़ी रही. इसका श्रेय जाता है इसके को-फाउंडर एन. आर. नारायण मूर्ति, और उनकी पत्नी सुधा मुर्ति को.

इंफोसिस के कर्मचारियों की एक शुरुआती तस्वीर

इंफोसिस के कर्मचारियों की एक शुरुआती तस्वीर

7 इंजीनियर दोस्तों ने शुरू की कंपनी

जब देश में IT नामक बीज उगने के लिए जमीन तलाश कर रहा था, तब 2 जुलाई, 1981 को 7 इंजीनियर्स ने मिलकर पुणे में इंफ़ोसिस कंसल्टेंट्स प्राइवेट लिमिटेड (Infosys Consultants Private Limited) नाम से एक कंपनी की शुरुआत की थी. इसके को-फाउंडर एन.आर. नारायण मूर्ति, नंदन नीलेकणी, एस. गोपालकृष्णन, एस. डी. शिबुलाल, के. दिनेश, एन. एस. राघवन और अशोक अरोड़ा हैं.

सुधा मूर्ति ने दिए 10 हजार रुपये

सुधा मूर्ति की इंफोसिस कंपनी की स्थापना में अहम भूमिका रही है. उनकी बचत के दस हजार रुपये से इस कंपनी की नींव रखी गई थी. उस वक्त इनके पास इतने पैसे भी नहीं थे कि कंपनी के लिए कोई कमरा भी किराए पर ले सकें. कंपनी की शुरुआत में ऑफिस का पता मूर्ति के दोस्त और कंपनी में पार्टनर राघवन के घर का दिया गया. हालांकि, मूर्ति के घर के अगले भाग में स्थित कमरा ही उनका इंफोसिस का ऑफिस था.

सन 1983 में Infosys का हेड ऑफ़िस पुणे से बैंगलोर शिफ़्ट कर दिया गया था. अप्रैल 1992 में कंपनी ने इसका नाम बदलकर ‘इंफ़ोसिस टेक्नोलॉजीज़ प्राइवेट लिमिटेड’ कर दिया. इसके बाद जून 1992 में पब्लिक लिमिटेड कंपनी बनने पर ये ‘इंफ़ोसिस टेक्नोलॉजीज़ लिमिटेड’ बन गई. जबकि जून 2011 में फिर से इसका नाम बदलकर इंफ़ोसिस लिमिटेड (Infosys Limited) कर दिया गया.

नारायण मूर्ति नहीं थे पहले कर्मचारी

नारायण मूर्ति भले ही इस कंपनी के को-फाउंडर्स में से एक हों, लेकिन वे इंफोसिस के पहले कर्मचारी नहीं हैं. दरअसल इंफोसिस के शुरू होने के एक साल बाद वह आधिकारिक तौर पर इसके साथ जुड़ पाए थे. उनके ज्वॉइन करने से पहले ही तीन लोग इंफोसिस के कर्मचारी बन चुके थे.

दो साल तक कंपनी के पास नहीं था कम्प्यूटर

इंफोसिस आज के समय में दिग्गज आईटी कंपनियों में शुमार है. इनकम टैक्स फाइलिंग के लिए जो नया पोर्टल बना है, उसे इसी कंपनी ने तैयार किया है. हालांकि जब कंपनी शुरू हुई थी, तब उसके पास अपना एक भी कम्प्यूटर नहीं था. करीब 2 साल तक कंपनी ने बिना कम्प्यूटर के ही काम किया. साल 1983 में इंफोसिस ने 'डेटा जनरल 32 बिट एमवी 800' मॉडल का पहला कम्प्यूटर सिस्टम खरीदा.

पहला कॉन्ट्रैक्ट

इंफोसिस ने इन सब का फायदा उठाया और डाटा बेसिक्स नाम की एक कंपनी से अपना पहला कॉन्ट्रैक्ट हासिल किया. लेकिन एक दिक्कत थी कि कम्पनी के पास कंप्यूटर आयत के लिए पैसा नहीं था. इसके बाद काम करने का एक जुगाड़ खोजा गया. इंफोसिस ने अपने क्लाइंट से कहा कि वो भारतीय इंजीनियर को ऑन साइट भेजेंगे. इसके बाद क्लाइंट से इंजीनियर का एक इंटरव्यू कराया जाता और उसके बाद इंजीनयर अमेरिका जाकर सिस्टम पर काम करता. इस तरह इंफोसिस कंप्यूटर आयत किए बिना काम कर पाई . साथ ही उन्होंने क्लाइंट्स से एडवांस पेमेंट लेकर धंधे को फाइनेंस किया.

बंद होने की कगार पर थी Infosys

शुरू होने के महज 8 साल बाद 1989 में कंपनी बंद होने की कगार पर आ गई. दरअसल, इंफोसिस का अमेरिकी पार्टनर कर्ट सलमॉन एसोसिएट्स के साथ करार काम नहीं किया. उसी वक्त कंपनी के एक को-फाउंडर अशोक अरोड़ा भी कंपनी छोड़ गए. दूसरे लोगों में भी निराशा थी. यहां नारायण मूर्ति ने कमान संभाली. उन्होंने अन्य लोगों से कहा- अगर आप सभी भी जाना चाहते हैं, तो जाइए. मैं यहां आखिर तक लडू़ंगा.

जब बिकने वाली थी इंफोसिस

जनवरी 1990 की बात है. इंफोसिस के चार फाउंडर्स एक रेस्त्रां में खाना खा रहे थे. खाने से ज्यादा गर्म थी वो बहस, जो चारों के बीच चल रही थी. एक ऑफर आया था, कम्पनी को खरीदने का. करीब 2 करोड़ रुपये में. करीब एक साल पहले ही कंपनी मुश्किल से दिवालिया होने से बची थी. ऐसे में 2 करोड़ का ऑफर मुनाफे का लग रहा था. तीन लोग कंपनी बेचने के लिए तैयार थे. लेकिन नारायणमूर्ति ने साफ़ मना कर दिया. एक घंटे चली बहस में उन्होंने बाकी साथियों को इस बात के लिए राजी किया. और कंपनी बिकते-बिकते रह गई. भविष्य ने नारायणमूर्ति के इस फैसले को सही साबित किया.

इन्वेस्टर्स को रास नहीं आया Infosys IPO

इंफोसिस 14 जून, 1993 में शेयर बाजार में उतरी. 450 रुपये प्रति शेयर की दर से 5,50,000 शेयर पब्लिक को ऑफर किए गए. आपको ये जानकर हैरानी होगी कि इंफोसिस के आईपीओ को इन्वेस्टर्स ने खास पसंद नहीं किया था और उसे 13 फीसदी कम सब्सक्रिप्शन मिल पाया था. यहां तक कि नारायणमूर्ति के अपने दोस्त और रिश्तेदार भी शेयर खरीदने में हिचकिचा रहे थे. इसके बावजूद कम्पनी ने अपने IPO ऐसे 4.4 मिलियन डॉलर जुटाए थे. मॉर्गन स्टैनले ने तब कंपनी के 13 % शेयर ख़रीदे थे.

तब इंफोसिस के शेयरों की कीमत महज 95 रुपये थी. आज के समय में इंफोसिस के एक शेयर की कीमत 1,748.65 रुपये हो चुकी है. अगर उस समय किसी ने इंफोसिस के मात्र 100 शेयर खरीदे होते तो उसे 9,500 रुपये लगाने पड़ते, लेकिन उसके इन्वेस्टमेंट की वैल्यू आज करीब 17.50 लाख रुपये हो गई होती.

1993 में अगर आपने इंफोसिस में 10 हजार रुपये लगाए होते, तो आज उसकी कीमत 18 करोड़ रुपये होती.

1999 में इंफोसिस ने 100 मिलियन डॉलर का आंकड़ा छू लिया. इसी साल यह नैस्डेक में लिस्टेड होने वाली भारत की पहली आईटी कंपनी बन गई. 1999 में कंपनी के शेयर के दाम 8,100 रुपए तक पहुंच गए. इसके साथ ही यह सबसे महंगा शेयर बन गया. तब इंफोसिस मार्केट कैपिटलाइजेशन के लिहाज से नैस्डेक में लिस्टेड 20 बड़ी कंपनियों में शामिल हो गई.

Infosys Team

बदलते रहे CEO

एन.आर. नारायण मूर्ति ने सन 1981 से साल 2002 तक इंफ़ोसिस लिमिटेड (Infosys Limited) के मुख्य कार्यकारी निदेशक के तौर पर काम किया. साल 2002 में नारायण मूर्ति ने ये पोजीशन नन्दन निलेकणी को सौंप दी थी. इस दौरान वो मार्गदर्शक के रूप में कंपनी से जुड़े रहे. नारायण मूर्ति साल 1992 से लेकर साल 1994 तक NASSCOM के अध्यक्ष भी रहे हैं. 13 अप्रैल 2007 को नंदन निलेकणी ने इन्फोसिस के सीईओ का पद संभाला. जिसके बाद जून 2007 के दौरान क्रिस गोपालकृष्णन उनकी कुर्सी पर बैठे. वर्तमान में इंफोसिस के सीईओ सलिल पारेख हैं.

आठ लाख करोड़ वैल्यूएशन

इसी दौर में अमेरिकी में हुई एक घटना ने भारतीय IT सेक्टर पर बड़ा असर डाला. 1990 में अमेरिका में H1B वीजा की शुरुआत हो चुकी थी. जिसके चलते भारतीय इंजिनीयर्स की मांग में लगातार इजाफा हुआ. भारत में एक के बाद एक IT कॉलेज की शुरुआत हुई.

20 वीं सदी के आख़िरी सालों में जब Y2K बग का मसला उठा तो इंफोसिस ने अपने लिए बिलकुल ठीक पोजीशन बना ली थी. अगले 5 सालों में Y2K कॉन्ट्रैक्ट्स से कम्पनी के खूब मुनाफा कमाया. 1998 में कम्पनी की 22% कमाई Y2K कॉन्ट्रैक्ट्स से ही हुई थी. मार्च 1999 में इंफोसिस NASDAQ पर लिस्ट हुई और 2004 आते-आते कम्पनी का रेवेन्यू 1 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया. अगले दो सालों में ये दोगुना होकर 2 बिलियन तक पहुंचा. और 2021 में कंपनी ने 100 बिलियन डॉलर (आठ लाख करोड़ रुपये) के आंकड़े को भी छू लिया. इस आंकड़े को छूने वाली ये सिर्फ चौथी भारतीय कंपनी है.

सोशल सर्विस में भी आगे Infosys

कमाई के साथ कंपनी सोशल सर्विस में भी पीछे नहीं है. इंफोसिस फाउंडेशन ने बाढ़ ग्रस्त इलाकों में 2,500 मकान बनवाए हैं. देशभर में 15 हजार से ज्यादा रेस्टरूम, 60 हजार से ज्यादा लाइब्रेरी बनवाई हैं. 14 लाख स्कूली बच्चों को खाना मुहैया कराया है. इसके आलावा फाउंडेशन साइंस और रिसर्च सेक्टर में सालाना 73 लाख रुपए से ज्यादा के अवार्ड और सम्मान देता है.

इन सेक्टर्स में भी काम करती है कंपनी

इंफ़ोसिस लिमिटेड (Infosys Limited) एक मल्टीनेशनल इंफ़ॉर्मेशन टेक्नोलॉजी कंपनी है, जो ‘बिज़नेस कंसल्टिंग’, ‘इंफ़ॉर्मेशन टेक्नोलॉजी’ और ‘आउटसोर्सिंग’ सेवाएं प्रदान करती है. इसके अलावा कंपनी ‘कम्युनिकेशन मीडिया और एंटरटेनमेंट’, ‘बैंकिंग एंड कैपिटल मार्किट’, ‘एयरोस्पेस एंड एविओनिक्स’, ‘एनर्जी, फैसिलिटीज़ एंड सर्विसेज़’, ‘इन्सुरेंस’, ‘हेल्थकेयर एंड लाइफ़ साइंस’, ‘मैन्यूफ़ैक्चरिंग’, ‘प्रोडक्ट इंजीनियरिंग एंड वैलिडेशन सर्विसेज़’, ‘रिटेल’, ‘कंज्यूमर प्रोडक्ट्स एंड गुड्स’ और ‘न्यू ग्रोथ इंजन’ का काम भी करती है. पिछले 4 दशकों में ये कंपनी ‘ज़ीरो’ से ‘हीरो’ बन चुकी है. आज Infosys एक ब्रांड बन चुका है, जिसमें नौकरी करना हर इंजीनियर का सपना होता है. आज TCS के बाद Infosys देश की दूसरी सबसे बड़ी आईटी कंपनी है.