क्या भारत में मौत की सजा के बदलेंगे नियम? पांच जजों की पीठ करेगी फैसला
देशभर की अदालतों में मौत की सजा देने के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रिया को लेकर सुप्रीम कोर्ट गाइडलाइंस बनाएगा. ये गाइडलाइंस फांसी की सजा के मामलों में सभी अदालतों में लागू होगी.
दरअसल, 30 मार्च को फांसी की सजा पाए कैदियों की सुध लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मृत्युदंड प्रक्रिया की समीक्षा के लिए खुद संज्ञान लेते हुए कार्यवाही शुरू की थी. सजा-ए-मौत देने से पहने अपनाई जाने वाली प्रक्रिया अधिक निष्पक्ष कैसे हो सकती है पर भी कोर्ट ने गौर किया था. मृत्युदंड को कम करने वाली परिस्थितियों से संबंधित दिशा-निर्देशों को लेकर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई जिसके बाद कोर्ट ने इस मामले को पांच जजों की पीठ को सौंप दिया है.
चीफ जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस सुधांशु धूलिया की बेंच ने 17 अगस्त को अपना फैसला सुरक्षित रखते हुए कहा था कि मौत की सजा अपरिवर्तनीय है और आरोपी को सजा कम कराने के लिए पर्याप्त अवसर दिया जाना चाहिए, ताकि अदालत यह निष्कर्ष निकाल सके कि मृत्युदंड की जरूरत है या नहीं है. बेंच ने कहा था- मृत्युदंड की सजा और दोषी के मरने के बाद फैसले को न बदल सकते हैं न हटा सकते हैं. यानी आरोपी को अपराध की गंभीरता को कम साबित करने का मौका देना जरूरी है. कोर्ट यह सुनिश्चित करना चाहता है कि मृत्युदंड की संभावना वाले मामलों में ट्रायल के दौरान सुबूतों को शामिल किया जाए, क्योंकि इस मामले में तुरंत कार्रवाई की जरूरत है. हालांकि, मौत की सजा को कम करने वाले हालात को आरोप साबित होने के बाद ही दोबारा दर्ज किया जा सकता है.
सजा-ए-मौत से पहले अलग सुनवाई जरूरी
संविधान पीठ बनाने का आदेश देने से पहले बेंच ने कहा कि एक आरोपी को मौत की सजा देने से पहले सुनवाई के संबंध में कई विरोधी फैसले थे. बच्चन सिंह मामले में कोर्ट ने भारत के 48वें विधि आयोग की सिफारिशों के अनुसार मौत की सजा देने से पहले आरोपियों की अलग सुनवाई अनिवार्य कर दी थी.
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के केस पर लिया था फैसला
मौत की सजा कम करने और दोषी का पक्ष सुनकर फैसला लेने का यह मामला इरफान नाम के शख्स की याचिका के बाद सामने आया. इसमें निचली अदालत ने उसे मौत की सजा सुनाई थी और मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने इसे जारी रखा था.
इरफान को नाबालिग से रेप के आरोप में निचली अदालत ने फांसी की सजा सुनाई थी, जिस पर हाईकोर्ट की भी मुहर लग चुकी है. इरफान ने इस आदेश के खिलाफ अपील की. उसी पर सुनवाई के दौरान इरफान के वकील ने एक अर्जी दाखिल करके मिटिगेशन इनवेस्टिगेटर को जेल में उससे मुलाकात करने और उसके बचाव में सूचनाएं जुटाने की इजाजत देने का निर्देश देने की गुहार लगाई है.
इरफान के वकील का इरशाद हनीफ का कहना है कि मध्य प्रदेश के जेल नियमों में इस तरह के प्रतिबंधों के कारण उन्हें सुप्रीम कोर्ट मे ये अर्जी दाखिल करनी पड़ी है. एमपी के जेल मैनुअल के मुताबिक, फांसी की सजा पाए कैदी से सिर्फ लीगल एडवाइजर ही इंटरव्यू कर सकता है. राज्य में लीगल एडवाइजर की जो परिभाषा दी गई है, उसमें मिटिगेशन इनवेस्टिगेटर फिट नहीं होते. मिटिगेशन इनवेस्टिगेटर डिफेंस टीम का हिस्सा होते हैं, जो आरोपी से मुलाकात करके उसके बचाव में काम आने वाली सूचनाएं जुटाते हैं. इरफान के वकील ने बताया कि उन्होंने उज्जैन के सेंट्रल जेल के सुपरिंटेंडेंट के यहां मिटिगेशन की अर्जी दाखिल की थी, जिसका कोई फायदा नहीं हुआ.
सुप्रीम कोर्ट में अर्जी पर सुनवाई के दौरान एमिकस क्यूरी के. परमेश्वर ने मध्य प्रदेश में लागू उस नीति की तरफ ध्यान दिलाया, जिसमें सरकारी वकील को इस आधार पर प्रमोशन दिए जाने का प्रावधान है कि उसने कितने मामलों में आरोपियों को फांसी दिलवाई. इस पर बेंच ने इस पॉलिसी को भी रिकॉर्ड पर लाने का निर्देश दिया.
सर्वोच्च न्यायालय ने अदालतों में फांसी की सजा देने के लिए अपनाई जाने वाली न्यायिक प्रक्रिया में सुधार के लिए खुद संज्ञान लेते हुए इस प्रक्रिया की जांच के लिए गाइडलाइंस निर्धारित करने का फैसला लिया. इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने मौत की सजा के मामलों में जानकारी को कम करने के आकलन की प्रक्रिया को लेकर चिंता जताई थी.