टीबी से जंग जीत दूसरों के लिये बने मसीहा, अब जरूरतमंदों की मदद के लिये चला रहे एनजीओ
July 21, 2020, Updated on : Tue Jul 21 2020 08:01:30 GMT+0000

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मुसीबत की घड़ी में जरूरतमंदों की मदद के लिये आगे आये कोलकाता के 70 वर्षीय अरूप सेनगुप्ता, जिन्होंने टीबी से जंग जीती और 45 वर्षों की अपनी पूरी जमा-पूँजी को यौनकर्मियों और जरूरतमंदो की मदद में लगा दिया।

फोटो साभार: notunjibon
अरूप सेनगुप्ता अपने ऑक्सीजन सिलेंडर को अपने साथ लेकर चलते हैं। सात साल पहले, उन्हें क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) का पता चला था। न तो बीमारी और न ही थकावट उनके हौसले को हरा पाई है और 70 वर्षीय अरूप रोज अपने दूसरे घर नॉटन जिबोन - कोलकाता स्थित एक एनजीओ जो उन्होंने यौनकर्मियों और उनके बच्चों के पुनर्वास के लिए स्थापित किया था, का एक चक्कर जरूर लगाते है।
द बेटर इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, अरूप ने बताया,
"नून जिबोन का मतलब है नया जीवन और मैं उन लोगों की सेवा करना जारी रखूंगा और उन्हें अपनी अंतिम सांस तक एक नए जीवन का मौका दूंगा।"
उन्होंने चार साल पहले अपने संगठन की शुरुआत की थी और आज यह कोलकाता में 40 से अधिक यौनकर्मियों के बच्चों को सपोर्ट करता है और शिक्षा देता है और कई महिलाओं को अपमानजनक विवाह से बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
अरूप ने बताया,
“1968 में, जब मेरे पड़ोसियों को मेरी बीमारी के बारे में पता चला, तो उन्होंने मुझे अपने इलाके से बाहर निकाल दिया। मैं देखता हूं कि COVID-19 के मरीज आज किस तरह से स्तब्ध हैं, और यह निश्चित रूप से मुझे मेरे उन दिनों की याद दिलाता है।”

फोटो साभार: notunjibon
परिवार के समर्थन के बिना, उन्हें एक आश्रय घर में एक छत मिली।
रिपोर्ट के अनुसार अरूप ने आगे बताया,
“मैं पिछले कुछ वर्षों में कई शुभचिंतकों को इकट्ठा करने में कामयाब रहा। सोशल मीडिया पर एक पोस्ट और मैं अपने दोस्तों को विनम्रता से समर्थन देने के लिए आगे आ रहा हूं। मेरी 45 वर्षों की सारी बचत इस संगठन में चली गई है।”
Edited by रविकांत पारीक
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