लर्निंग को अपने तरीके से मजेदार बना रहा है पूर्व 'टीच फॉर इंडिया' फेलो
हमारे देश में सड़कों पर पेन या फूल बेचते छोटे बच्चों को देखना काफी आम है। हालांकि इनको देखने के बाद ये अंदाजा लगाना गलत नहीं है कि वे यहां क्यों हैं और इनका भविष्य कैसा होगा। इसके पीछे निहितार्थों को देखें तो पाएंगे: शिक्षा में एक खोया हुआ अवसर और इनमें से अधिकांश युवाओं का एक अंधकारमय भविष्य।
28 वर्षीय विवेक वशिष्ठ जब 2014 से 16 तक टीच फॉर इंडिया के फेलो के रूप में काम कर रहे थे तब उनके दिमाग में बार-बार ये विचार आता था कि
"इन बच्चों को स्कूलों में होना चाहिए और सड़कों पर बेचने या भीख मांगने के बजाय अच्छी क्वालिटी की एजुकेशन मिलनी चाहिए।"
भारत में 300 मिलियन बच्चे ऐसे हैं जिनके पास शिक्षा की कोई सुविधा नहीं है। इनमें से ज्यादा से ज्यादा बच्चों के लिए संभावनाओं को बेहतर बनाने के लिए, विवेक ने अपनी फेलोशिप के माध्यम से पूर्वी दिल्ली के निम्न-आय वाले समुदाय के 35 उत्साही बच्चों को शिक्षा देने का फैसला किया।
यह शिक्षा के क्षेत्र को आगे बढ़ाने के लिए उनकी एक अमर यात्रा की शुरुआत थी। अब, विवेक की पहल, इमब्यू एजुकेशन (Imbue Education), स्कूली छात्रों के लिए शिक्षा को मजेदार बनाने के लिए बेहद ही खास तरीके से शिक्षा प्रदान करती है। वे अपनी पहल के जरिए बच्चों को मजेदार ढंग से शिक्षा पहुंचाने के लिए अनुभवात्मक और प्रोजेक्ट बेस्ड शिक्षा प्रदान करते हैं।
योरस्टोरी से बात करते हुए, विवेक कहते हैं,
“हमारी टैगलाइन है- आउट ऑफ सिलेबस उन सभी तत्वों को सामने लाती है जिन्हें मानक पाठ्यक्रम संबोधित करने में विफल रहता है। भारत में लगभग सभी लोगों ने अपने स्कूल के दिनों में ये बहाना जरूर बनाया होगा कि- 'हम उन सवालों के जवाब नहीं दे पाए, क्योंकि वे आउट ऑफ सिलेबस थे’। शिक्षा केवल पाठ्यक्रम तक सीमित नहीं होनी चाहिए। सीखने के प्रति दृष्टिकोण को प्रश्नों का उत्तर देने से लेकर अवधारणाओं को समझने तक बदलना पड़ता है।”
इमब्यू 2018 में स्थापित हुआ। इसका जन्म विवेके द्वारा TFI फेलोशिप के दौरान जुटाए गए नॉलेज और गोल्डमैन सैक्स में अपने दो साल के कॉर्पोरेट जॉब के दौरान सीखी गईं स्किल्स से हुआ था।
विवेक कहते हैं,
“जीएस (गोल्डमैन सैक्स) में, मैं ह्यूमन कैपिटल मैनेजमेंट में एक विश्लेषक के रूप में काम कर रहा था। मैं अपनी प्रोजेक्ट मैनेजमेंट स्किल्स बनाने के लिए कॉर्पोरेट अनुभव हासिल करना चाहता था। इसके अलावा मैं एक बड़े पैमाने पर काम करने का अनुभव भी चाहता था। और उसके बाद मैं शिक्षा में अपना स्टार्टअप खोलने के बारे में स्पष्ट था।”
सफलता के लिए एक घरेलू मॉडल
आज तक, इमब्यू एजुकेशन ने 10-14 वर्ष की आयु के लगभग 300 छात्रों के साथ, इंटरैक्टिव वर्कशॉप और एक यूनीक सिलेबस के माध्यम से काम किया है। दिल्ली स्थित संगठन वर्कशॉप के लिए एक विशेष रूप से तैयार किया गया अनुभवात्मक पाठ्यक्रम (experiential curriculum) और प्रोजेक्ट-बेस्ड लर्निंग और ट्रेनर्स प्रदान करता है।
इसका आउट ऑफ स्कूल वर्कशॉप मॉडल वर्ड-ऑफ-माउथ और पैम्फलेट्स के माध्यम से छात्रों तक पहुंचता है। Imbue द्वारा प्रस्तुत पाठ्यक्रम वर्तमान में इलेक्ट्रॉनिक्स की मूल बातें के माध्यम से समस्या-समाधान को संबोधित करता है। वर्कशॉप्स में शामिल कुछ अवधारणाएं बिजली, मोटर्स, अरुडिनो प्रोग्रामिंग, वायरलेस कम्युनिकेशन, ब्लूटूथ, जीएसएम, सेंसर, वेब डेवलपमेंट और डिजाइन थिंकिंग की मूल बातें हैं - जिनमें से सभी को अनुभवात्मक रूप से सिखाया जाता है।
विवेक कहते हैं,
“स्कूलों के लिए, हम व्यक्तिगत रूप से उनके पास जाते हैं और उन्हें हमारे द्वारा दिए गए मॉडल के बारे में समझाते हैं। यदि जरूरत होती है तो हम इसे स्कूल की जरूरतों के अनुसार प्रस्तुत करते हैं।”
शिक्षण और शिक्षण दृष्टिकोण
संगठन चाहता है कि बच्चे एक ग्रेडिंग सिस्टम के बारे में ज्यादा न सोचें। उनका फोकस बच्चों को स्कोर करने के लिए पढ़ने के बजाय सीखने और उसे अप्लाई करने पर ज्यादा है। उनका मानना है कि ग्रेडिंग सिस्टम से बच्चे स्कोर करने के लिए ज्यादा पढ़ते हैं। इसे हासिल करने के लिए, इमब्यू ने एक ऐसा वातावरण बनाया है, जहां बच्चों को एक टीम के रूप में प्रोजेक्ट पर काम करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, और उनके किसी भी आइडियाज और प्रयासों अनसुना और अनदेखा नहीं किया जाता है।
Imbue में, छात्रों को प्रोजेक्ट-बेस्ड लर्निंग प्रोवाइड कराई जाती है जो छात्रों के लिए तुरंत सीखने के अनुभव को विकसित करने और रचनात्मकता और समस्या-समाधान में उनके कौशल पर केंद्रित है। वर्कशॉप्स में, बच्चे प्रोटोटाइप विकसित करते हैं जिन्हें परीक्षण के लिए रखा जा सकता है।
विवेक कहते हैं,
“स्कूल में सिखाए जाने वाले कॉन्सेप्ट को प्रोजेक्ट बनाने के लिए एक साथ जोड़ा जाता है। प्रोजेक्ट का उद्देश्य या अनुप्रयोग वास्तविक दुनिया की समस्या से जुड़ा हुआ होता है। तब छात्र जो कॉन्सेप्ट सीख रहे होते हैं उसे अप्लाई करते हुए एक प्रोटोटाइप को डिजाइन करते हैं और रियल टाइम फीडबैक लेने के लिए फील्ड पर अपने प्रोटोटाइप को टेस्ट करते हैं।"
उदाहरण के लिए, Imbue के पाठ्यक्रमों में से एक के माध्यम से, कक्षा छह के छात्रों के एक समूह ने नेत्रहीनों के लिए एक स्मार्ट स्टिक डेवलप की है, जिसे एक नेत्रहीन व्यक्ति के साथ टेस्ट किया गया था। पाठ्यक्रम के अंत में बच्चों को एक प्रमाण पत्र भी दिया जाता है। पाठ्यक्रम में वर्कशॉप्स की एक पूरी सीरीज शामिल है होती है जिसे गर्मियों की छुट्टियों के दौरान आयोजित किया जाता।
अब तक का असर
संगठन द्वारा आयोजित वर्कशॉप्स में छात्रों ने अपने ग्रेड स्तरों से परे कॉन्सेप्ट को सीखा है और स्वयं द्वारा तरह-तरह के प्रोटोटाइप बनाए हैं। छात्र-छात्राएं अपने आप से आठ घंटे से अधिक समय तक काम करते रहते हैं।
विवेक कहते हैं,
“हमें लर्निंग को और मजेदार व सार्थक बनाने की आवश्यकता है। इमब्यू में, लर्निंग अधिक डायनमिक है और वर्कशॉप्स आकर्षक हैं क्योंकि छात्रों को बताया जाता है कि किसी भी समस्या को हल करने के लिए वे सही उत्तरों को याद रखने के बजाय चर्चा करके और खुद से कर सकते हैं।"
रास्ते में चुनौतियां
अधिकांश स्टार्टअप्स और सभी पहलों के संस्थापकों की तरह, विवेक को भी शुरुआत में संघर्षों का एक अच्छा खासा सामना करना पड़ा।
वे याद करते हैं,
"पैम्फलेट्स को डिजाइन करने से लेकर उनके छपने तक, और हमारे पाठ्यक्रम में अपने बच्चों को दाखिला दिलाने के लिए लगभग 2000 घरों में जाने तक, और फिर उत्सुकता से उनकी कॉल-बैक का इंतजार करने तक और महीने के अंत में कुछ भी नहीं कमाने पर - ऐसा लगा जैसे एक गलत सौदे का हिस्सा हूं।"
विवेक कहते हैं कि शुरू में, केवल दो माता-पिता ने कार्यक्रम के लिए हस्ताक्षर किए। वे कहते हैं,
“वे दो माता-पिता अभी भी हमारे साथ हैं और दूसरों को कार्यक्रम की सिफारिश करते हैं। हमारे पास अब 12 अभिभावकों का एक छोटा समूह है जो अपने बच्चों को हमारी कार्यशालाओं में भेजते हैं। और, उन्होंने हमें अपना स्कूल शुरू करने के लिए भी कहा है और कहा है कि वे अपने बच्चों को पारंपरिक शिक्षा प्रणाली से हटाने के लिए तैयार होंगे।"
व्यापार, टीम और आगे का रास्ता
Imbue Education के पास एक सिंपल रिवेन्यू मॉडल है जिसमें स्कूल की आवश्यकता के आधार पर विभिन्न मूल्य निर्धारण बिंदु शामिल हैं। इस संगठन को विवेक ने अपनी बचत के साथ शुरू किया था। अब संगठन ने मैकराफरी के सीईओ एमआर विक्रम जीत रॉय से अपने कार्यों को बढ़ाने और सीखने के तरीकों के साथ प्रयोग करने के लिए सीड फंडिंग जुटाई है, जो सबसे प्रभावी होगी। बच्चों को वास्तविक दुनिया के अनुप्रयोगों में प्रशिक्षित करने के लिए, विवेक के पास 10 फुल-टाइम और पार्ट-टाइम सहयोगी टीम के सदस्य हैं। मेंटर्स के रूप में, टीम में विक्रम जीत, सचिन गौर बतौर टैलेंट कोच और मार्केटिंग की देखभाल करने वाले मुकेश रल्हन हैं।
विवेक कहते हैं,
“वर्तमान में, हम माता-पिता के लिए सेशन डेवलप कर रहे हैं कि वे अपने बच्चों की मदद कैसे कर सकते हैं। टीचर ट्रेनिंग हमारा अगला लक्ष्य होगा।"
विवेक बताते हैं कि वे भारत भर में लगभग 10000 शिक्षकों को प्रशिक्षित करने के बारे में देख रहे हैं जो स्कूलों में अपनी कार्यशालाएँ दे सकते हैं। टीम स्कूली बच्चों द्वारा सक्षम प्रोजेक्ट के माध्यम से समाज के जटिल मुद्दों को हल करने के लिए विशेषज्ञता के विभिन्न एरियाज को जोड़ने का भी लक्ष्य बना रही है।
विवेक कहते हैं,
“विभिन्न विषयों को जोड़ने के लिए समस्या-समाधान की आवश्यकता है। उदाहरण के लिए, नेत्रहीन के लिए स्मार्ट स्टिक बनाने के लिए, हमें आंखों, सोनार, इकोलोकेशन के पीछे भौतिकी को समझने की जरूरत थी, अन्य कॉनसेप्ट जैसे, गति और दूरी की गणना करने के लिए गणित, और सेंसर और कोडिंग के लिए इलेक्ट्रॉनिक्स को सीखने की जरूरत थी। हम जिस प्रोजेक्ट से निपट सकते हैं, उसका एक और उदाहरण स्कूलों के लिए फायर अलार्म हो सकता है। हम छात्रों को सिखाएंगे कि कैसे इसका निर्माण किया जाए और कैसे इसे अपने स्कूलों में स्थापित किया जाए।”
संगठन का लक्ष्य अगले 10 वर्षों में 10 मिलियन छात्रों तक पहुँचना है और देश भर में बड़ी संख्या में बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुलभ बनाने के लिए कम लागत वाली योजनाएं बनाने पर काम कर रहा है।
विवेक अंत में कहते हैं,
“शिक्षा को समस्याओं को हल करने के लिए आपको उपकरण प्रदान करने की आवश्यकता है। इसे इस तरह से वितरित करने की आवश्यकता है जो छात्र गलती करें तो उसे बुरा न माना जाए बल्कि इसके बजाय ये माना जाए कि यह उन्हें सीखने में मदद करती हैं।"