मिलें लोगों की सेवा करने में अपने जीवन का उद्देश्य खोजने वाली सुधा मूर्ति से
पुरस्कार विजेता लेखक व पद्मश्री से सम्मानित परोपकारी सुधा मूर्ति का कहना है कि आपको कभी भी लाइमलाइट में रहने की चिंता नहीं करनी चाहिए। यह एक घूमते कैमरे की तरह है। HerStory की women on mission समिट में सुधा ने अपनी बुद्धि और ज्ञान के साथ उपस्थित सभी लोगों को काफी आकर्षित किया। YourStory की फाउंडर और सीईओ श्रद्धा शर्मा के साथ एक गहन बातचीत में, सुधा मूर्ति ने वूमेन ओन मिशन समिट में भाग लेने वाली 700 से अधिक महिलाओं से आग्रह किया कि वे अपने जुनून को आगे बढ़ाने पर ध्यान दें। उन्होंने कहा कि आप ऐसा काम करें कि आपका काम बोले नाकि लोग जो कहते हैं उससे प्रभावित हों। उन्होंने कहा, "आपको केवल उस काम की चिंता करनी चाहिए जिसे आप करना पसंद करते हैं, आप जो करना चाहते हैं वह नैतिक रूप से सही हो।"
इंफोसिस फाउंडेशन की चेयरपर्सन के रूप में, सुधा मूर्ति विभिन्न क्षेत्रों के लोगों के साथ काम करती हैं। उनका मानना है कि उन्होंने लोगों की सेवा करने में ही अपने जीवन का उद्देश्य पाया है। इस दिग्गज आईटी कंपनी की गैर-लाभकारी शाखा, इंफोसिस फाउंडेशन के जरिए सुधा मूर्ति ने अपना जीवन शिक्षा, गरीबी उन्मूलन, स्वास्थ्य सेवा, सार्वजनिक स्वच्छता, शिक्षा और कला और संस्कृति के माध्यम से सशक्त बनाने के लिए वंचितों की सेवा में समर्पित कर दिया है। सुधा मूर्ति कहती हैं, “लोगों की सेवा करने से मुझे बहुत शांति मिली है। मेरे लिए अब और कुछ भी मायने नहीं रखता है।” सुधा अपनी बेटी को अपने कामों का श्रेय देती हैं। क्योंकि उनकी बेटी ने ही करीब दो दशक पहले उनके जीवन के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया था। उस समय, सुधा मूर्ति बेंगलोर विश्वविद्यालय में कंप्यूटर विज्ञान विभाग की प्रमुख थीं।
सुधा कहती हैं, “मेरी बेटी ने मुझसे पूछा: आप जैसा व्यक्ति जो अच्छी तरह से पढ़ा-लिखा हो और अच्छी तरह से ट्रैवल करता हो, उससे आप जीवन में क्या उम्मीद करते हैं? क्या आप ग्लैमरस बनना चाहती हैं? क्या आप अपना समय टेक्नोलॉजी में बिताना चाहती हैं? या आप अपने बड़े परिवार के साथ अपना समय बिताना चाहती हैं? आप जीवन में करना क्या चाहती हैं?” बेटी के इन सवालों ने ही 45 वर्षीय सुधा मूर्ति को, जीवन में उद्देश्य प्राप्ति के लिए प्रेरित किया। उन्होंने उस समय खुद को खुद से पूछते हुए पाया, “मेरे जीवन का क्या मतलब है? मुझे लगा कि मैं अपने श्रम का फल भोग सकती हूं, लेकिन ‘आनंद’ का क्या मतलब है? क्या यह पैसा कमाने, पुरस्कार जीतने, बच्चे पैदा करने या अधिक डॉक्टरेट प्राप्त करना है? ”
इसके तुरंत बाद, सुधा मूर्ति ने विश्वविद्यालय में अपनी फुल-टाइम पोजीशन से इस्तीफा दे दिया और कंसल्टिंग प्रोफेसर की भूमिका निभाने का चयन किया। इसके बाद वह इन्फोसिस फाउंडेशन के पहले ट्रस्टियों में से एक बन गई, जिसे 1996 में स्थापित किया गया था। तब से, सुधा मूर्ति ने इन्फोसिस फाउंडेशन द्वारा अस्पतालों, स्कूलों, अनाथालयों, पुनर्वास केंद्रों के साथ-साथ 14,000 से अधिक शौचालयों और समाज के वंचित वर्गों के लिए 60,000 से अधिक पुस्तकालयों के निर्माण के लिए विभिन्न पहल का नेतृत्व किया है।
स्पष्ट शब्दों में कहें तो, सुधा मूर्ति ने हमेशा जो भी कार्य किया है, उसमें अपना मन लगाया है। वह कहती हैं, “अपने जीवन के पहले 24 साल, मैंने अकैडमिक्स उत्कृष्टता हासिल करने में बिताए। अगले 20 वर्षों में, मैंने अपने पति की मदद की, ताकि वह इन्फोसिस नामक एक साहसिक कार्य कर सकें।” जैसे ही सुधा भारतीय टेक इन्फोसिस के लीजेंडरी सह-संस्थापक व अपने पति नारायण मूर्ति, का उल्लेख करती हैं वैसे ही दर्शक जोरदार तालियां बजाने लगते हैं। नारायण मूर्ति भारत के सबसे प्रसिद्ध उद्यमियों में से एक। इसके अलावा सुधा मूर्ति के जीवन में एक खास दिन वो भी था जब 3,000 पुनर्वासित यौनकर्मियों ने उनके 18 साल के अथक परिश्रम के लिए उन्हें 'थैंक्स गिविंग' सेरेमनी का आयोजन किया। सुधा ने उन यौनकर्मियों के लिए काफी काम किया है ताकि उन्हें सामान्य जीवन जीने के लिए सशक्त बनाया जा सके।
सुधा कहती हैं, “मैं वहां मंच पर गई और वे 3,000, जो अब सामान्य जीवन जी रहीं हैं, वे मुझसे कुछ सुनना चाहती थीं लेकिन मेरे पास शब्द नहीं थे। मेरी आंखों से आँसू बह रहे थे। तभी मैंने रामायण से एक श्लोक उद्धृत किया: भगवान ... मुझे अमीर मत बनाओ, मुझे सुंदर मत बनाओ, मुझे रानी मत बनाओ। यदि आप मुझे कुछ भी देना चाहते हैं, तो मुझे एक कोमल ह्रदय और एक मजबूत हाथ दें, ताकि मैं दूसरों के आँसू पोंछ सकूं।’उस पल मुझे एहसास हुआ कि मैं क्यों पैदा हुई, और इसने मुझे बहुत शांति प्रदान की।" पिछले साल, सीएसआर और इंफोसिस के परोपकारी हाथ उन लोगों के लिए आरोहण सोशल इनोवेशन अवार्ड्स लॉन्च किए, जो सामाजिक प्रभाव पैदा करने और नवप्रवर्तन क्षेत्र में नवाचार में तेजी लाना चाहते हैं। इस साल की शुरुआत में, इन्फोसिस फाउंडेशन ने छह श्रेणियों में स्टार्टअप्स को उनके काम के लिए आरोहण सोशल इनोवेशन अवार्ड्स के साथ सम्मानित किया: महिला सुरक्षा और सशक्तिकरण, स्वास्थ्य सेवा, निराश्रित देखभाल, ग्रामीण विकास, शिक्षा और खेल, और स्थिरता।
इन्फोसिस फाउंडेशन ने वंचितों की मदद के लिए पहले ही 1,100 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए हैं। सुधा मूर्ति का कहना है कि जिंदगी के इस पड़ाव में इन्फोसिस फाउंडेशन के साथ उनका काम उनकी पहली प्राथमिकता है। सुधा कहती हैं, “प्रकृति बहुत बुद्धिमान है। भले ही आप दिख रहे हैं या नहीं, आप बुद्धिमान हैं या नहीं, आप अमीर हैं या नहीं लेकिन आप सभी के पास एक दिन में केवल 24 घंटे ही हैं। सिर्फ इसलिए कि आप बहुत अच्छे दिख रहे हैं, आपको 48 घंटे नहीं मिलेंगे। यह वह पहली चीज है जिसका मुझे सबसे पहली बार एहसास हुआ था। आपकी समस्याओं या कठिनाइयों या समाधानों का जो भी सेट है, आपको उन सभी को 24 घंटों में समायोजित करना होगा। तो मैं अपना समय कहाँ लगा सकती हूँ? मेरी प्राथमिकता क्या है? यह वह तरीका है जिससे मैं काम करती हूं।"
इन्फोसिस फाउंडेशन के लिए प्राथमिकता के अलावा वह सोचने और लिखने में समर्पित हैं। इसके अलावा वह इनवाइट किए गए ईवेंट्स में शामिल होने को लेकर भी काफी सिलेक्टिव हैं। वह कहती हैं, "इससे मैं बहुत समय बचाती हूं और मैं बहुत अधिक मल्टीटास्किंग काम कर सकती हूं।" वह यह भी कहती हैं कि उनके साथ काम करने वाले लोगों से बहुत मदद मिलती है। अपने इंजीनियरिंग कॉलेज के दिनों से लिंग पूर्वाग्रह का सामना कर चुकीं सुधा मूर्ति का मानना है कि यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि आपका काम ही है जो बोलता है। यह रवैया कुछ ऐसा है जिसने उनके कॉलेज के दिनों से उनकी मदद की है - जहां वह इंजीनियरिंग में दाखिला लेने वाली 150 छात्रों में पहली और एकमात्र लड़की थीं - और टेल्को में पहली महिला इंजीनियर के रूप में काम कर रहीं थी।
सुधा मूर्ति कहती हैं कि महिलाओं को अपना काम करने देना चाहिए और खुद पर निर्भर रहना चाहिए। वह कहती हैं, “हम हमेशा मानते हैं कि कोई हमारी मदद करेगा और कोई हमारे बचाव में आएगा, चाहे वह हमारे पिता, भाई, बच्चे हों। दरअसल, एक सुंदर श्लोक है, जो कहता है, आपका सबसे अच्छा दोस्त कौन है? तुम खुद। आपका सबसे बड़ा दुश्मन कौन है? आप, स्वयं।’ इसलिए कृपया स्वयं पर निर्भर रहें और जानें कि आपके भीतर साहस का जन्म होना है। इसमें समय लगता है लेकिन आपको इसके लिए काम करना होगा।'
अंत में एक श्लोक के जरिए सुधा कहती हैं, “जीवन में क्या महत्वपूर्ण है? न तो आपका ताज, न ही आपकी शारीरिक सुंदरता, या आपके फूल या आपकी पोशाक महत्वपूर्ण है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आपके काम में साहस और दृढ़ विश्वास है। यह आप में असली सुंदरता है। यही कारण है कि सबसे सफल व्यक्ति की सुंदरता उनके काम और साहस में होती है।"
यह भी पढ़ें: UPSC 2019: दो साल तक रहीं सोशल मीडिया से दूर, हासिल की 14वीं रैंक