प्लास्टिक की बेकार बोतलों से टोपियां और टीशर्ट बना रहा रेलवे का ये स्टार्टअप
"भारत सरकार के रेलवे विभाग ने अपने एक नए स्टार्टअप से करोड़ों लोगों की कमाई का एक नया जरिया पैदा कर दिया है। 'एक पंथ, तीन काज' जैसे इस उद्यम में एक तो हर रद्दी बोतल पर लोगों को पांच-पांच रुपए मिलेंगे, दूसरे उन बोतलों से टी-शर्ट, टोपियां बनेंगी, साथ ही इससे देश का प्रदूषित हो रहा पर्यावरण भी संरक्षित होगा।"
रोजाना देश के 2.30 करोड़ लोगों के सफर और तीस टन फ्रेट परिवहन के लिए ही नहीं, अब भारतीय रेलवे स्टार्टअप इनोवेशन के लिए भी एक उभरता हुआ हब बन चुकी है, जो थर्ड पार्टी (आंत्रप्रन्योर्स) से कॉलेबोरेट हो रही है। भारतीय रेलवे का डिजिटलीकरण तमाम सेवा प्रदाताओं, ख़ास कर स्टार्टअप्स के लिए वरदान साबित हो रहा है। इसमें एक और ताज़ा अध्याय उस समय जुड़ गया, जब भारतीय रेलवे स्टेशनों और ट्रेनों में खाली पड़ी प्लास्टिक की बोतलों से टी-शर्ट और टोपियां बनाने जा रही है।
इस काम के लिए बोतलें इकट्ठी करने का भी रेलवे ने नायाब तरीका ढूंढ लिया है। जो लोग ऐसी रद्दी बोतलें मुहैया कराएंगे, उनको हर बोतल पर पांच रुपए मिलेंगे। इसे पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। बिहार में पूर्व मध्य रेलवे के चार स्टेशनों पटना जंक्शन, राजेंद्रनगर, पटना साहिब और दानापुर स्टेशन पर लगीं रिवर्स वेंडिंग मशीनों में बोतलों को क्रश कर उनसे टी-शर्ट और टोपियां बनाने का काम शुरू हो चुका है। ये टी-शर्ट हर मौसम में पहनने लायक होंगी।
प्लास्टिक की रद्दी बोतलों से टी-शर्ट और टोपियां बनाने के लिए रेलवे ने मुंबई की एक कंपनी से करार किया है। जल्द ही ये पॉलिएस्टर जैसी टी-शर्ट बाजार में सप्लाई होने जा रही हैं। हाल ही में झारखंड की राजधानी रांची में ऐसी टी-शर्टो की प्रदर्शनी भी लग चुकी है। रेलवे की इस पहले से स्टेशनों और पटरियों पर फेके गए प्लास्टिक कचरे और प्रदूषण से रेलवे परिसर को तो मुक्ति मिलेगी ही, पर्यावरण भी संरक्षित होगा।
देश में रोजाना प्रति व्यक्ति औसतन सात-आठ किलो प्लास्टिक की खपत होती है, जिसका पांच फीसदी अकेले रेलवे में पानी की बोतल का होता है। प्लास्टिक की बोतलें इस्तेमाल के बाद क्रश कर देनी चाहिए लेकिन ज्यादातर यात्री ऐसा करते नहीं हैं। औइससे रेलवे स्टेशनों और पटरियों पर प्रदूषण फैलता रहता है। अब जो रेल यात्री ऐसी खाली बोतलें जमा करेगा, हर बोतल पर उसे वाउचर के रूप में रेलवे की एजेंसी बायो-क्रश की ओर से पांच रुपए मिलेंगे। इस पैसे का इस्तेमाल चुनिंदा दुकानों और मॉल में सामान खरीदने में किया जा सकेगा। ऐसी बोतलें क्रशर मशीन में डालते समय मोबाइल नंबर डालना पड़ेगा। इसके बाद बोतल क्रश होते ही 'थैंक्यू' मैसेज के साथ राशि से संबंधित वाउचर मिल जाएगा।
गौरतलब है कि वर्तमान में भारतीय रेलवे के पास एक लाख पंद्रह हजार किलोमीटर का नेटवर्क, सात हजार रेलवे स्टेशन और बारह हजार ट्रेनें हैं। यही वजह है कि रेलवे सरकारी क्षेत्र का सबसे ज्यादा रोज़गार देनेवाला उपक्रम बन चुका है। इसका हर विभाग डिजिटाइज हो रहा है, जिससे एक अलग तरह के तमाम स्टार्टअप, सेवा प्रदाताओं की श्रृंखला पैदा हो चुकी है। रेलवे का डीजीटाईज़ेशन नेटवर्क क़रीब सौ टेराबाईट्स डेटा सालाना इकट्ठा कर रहा है। पैसेंजर बुकिंग प्लैटफॉर्म पर इसके ढाई करोड़ यूजर्स हैं, जो प्रतिदिन आठ लाख ट्रांज़ेक्शन कर रहे हैं। इसी ने आंट्रेप्रेन्योर्स को अपनी ओर आकर्षित किया है।
मसलन, 'रेलयात्री' वेबसाइट लोगों को प्लेटफॉर्म नंबर, वेटिंग लिस्ट के क्लियर होने की संभावना आदि के बारे में जानकारी देती है। इस कंपनी की स्थापना कपिल रायजादा ने 2014 में की थी। पिछले 6 महीनों में वेबसाइट का प्रयोग करने वालों की संख्या दोगुनी हो चुकी है। कंपनी को इन्फोसिस ने फंडिंग की है। 'ट्रेनमैन' ऐप वेटिंग लिस्ट के बारे में बताता है।
विनीत कुमार चिनारिया ने यह ऐप 2014 में लांच किया था। 'ट्रैवल खाना', 'खाना गाड़ी', 'रेल राइडर' ऐप्स रोजाना हजारों लोगों को ट्रेन में सीट तक पसंदीदा खाना पहुंचा रहे हैं। ये अब तक 15 करोड़ यात्रियों को खाना पहुंचा चुके हैं। 'कंफर्म टीकेटी' ऐप कंफर्म टिकट न मिलने पर यात्रा को दो हिस्सों में बांट कर मंजिल तक पहुंचाता है। इस ऐप के आठ लाख इंस्टाल्स हैं और हर दिन लगभग 66 हजार यूजर्स। तो इस तरह रेलवे ने नए-नए तमाम स्टार्टअप को जन्म दिया है।