इन छोटी-छोटी बातों का ध्यान रख कर आप अपने घर को बना सकते हैं तरक्की वाला घर
जीवन का प्रमुख उद्देश्य प्रगतिशील और समृद्ध बनना ही है और मानव के जीवन में तीन प्रकार की समृद्धि आवश्यक है; धन की समृद्धि, सामाजिक समृद्धि और आध्यात्मिक और बौधिक समृद्धि। इन तीनों के विकास के लिए वास्तु सहायक है।
विंस्टन चर्चिल का प्रसिद्ध उद्धरण, “हम अपने भवन का निर्माण करते हैं फिर वो हमारे जीवन को आकार देता है” उन्होंने ब्रिटेन के नए सदन के निर्माण के समय यह कथन दिया था। हालांकि ये कथन सीधे तौर पर वास्तु के बारे में नहीं था, पर इसका सार वास्तु का आधार है। वास्तु की उर्जाएं हमारे जीवन को आकार देती हैं। जब ये उर्जाएं सकारात्मक हैं तो हमारे अवचेतन को सकारात्मक रूप से प्रेरित करती हैं और हमें प्रगतिशील बनाती हैं। इसके विपरीत नकारात्मक या दोषपूर्ण उर्जाएं हमें विस्मित और भ्रमित करती हैं।
जीवन का प्रमुख उद्देश्य प्रगतिशील और समृद्ध बनना ही है और मानव के जीवन में तीन प्रकार की समृद्धि आवश्यक है; धन की समृद्धि, सामाजिक समृद्धि और आध्यात्मिक और बौधिक समृद्धि। इन तीनों के विकास के लिए वास्तु सहायक है।
तरक्की वाले घर के लिए चार प्रमुख पहलू हैं। सर्वप्रथम, घर का मुख्य द्वार अगर सही दिशा में है तो वो आपको प्रगतिशील बनाता है। चारों दिशाओं में अच्छे द्वार बनाए जा सकते हैं। जरूरत है कि उनको घर की चौड़ाई के अनुसार सही जगह बनाया जाए। सामान्यतः कई वास्तुविद कहते हैं कि मुख्य द्वार पूर्वमुखी या उत्तरमुखी होना चाहिए पर अनुभव से देखा गया है कि अगर ये द्वार सही जगह नहीं बना है तो इन दिशाओं में होने के बावजूद तरक्की नहीं देता और कई सफल लोग दक्षिण मुखी और पश्चिम मुखी घरों में रहकर भी समृद्ध बन जाते हैं।
तरक्की वाले घर का दूसरा पहलू है रसोई का सही जगह होना। भोजन पकाने की जगह का जीवन में उन्नति के लिए महत्वपूर्ण स्थान है। अगर घर में रसोई दक्षिण-पूर्व या उत्तर-पश्चिम में है और उसकी संरचना ऐसी है कि खाना बनाते समय घर की स्त्री पूर्वमुखी होकर खाना बनाती है तो अतिउत्तम है। अगर रसोई उत्तर में है तो जीवन में प्रगति के अवसर आने रुक जाते हैं और धन का आवागमन भी प्रभावित होता है। दक्षिण-पश्चिम में रसोई होने से धन का अपव्यय होता है। उत्तर-पूर्व की रसोई तो जीवन के सारे पहलुओं पर नकारात्मक प्रभाव देती है।
घर के मालिक का शयनकक्ष वो तीसरा पहलू है जो घर को तरक्की देने वाला बनता है। सबसे अच्छा शयन कक्ष वो है जो घर के दक्षिण-पश्चिम या दक्षिण में है। घर के पूर्व या पश्चिम में भी शयनकक्ष होना अच्छा है। दक्षिण-पूर्व में भी आप सो सकते हैं पर उत्तर या उत्तरपूर्व में जो शयन कक्ष है उसका उपयोग आप नहीं करें। यहाँ पर 16 साल से कम उम्र के बच्चे या 65 साल से ज्यादा उम्र के बुजुर्ग सो सकते हैं।सोते समय आपका सिर दक्षिण या पूर्व की तरफ हो और उत्तर की तरफ बिलकुल भी ना हो।
घर का रखरखाव वास्तु का चौथा महत्वपूर्ण पहलू है। घर की जिस दिशा में कूड़ा-करकट है वहीं की उर्जाएं नकारात्मक हो जाती हैं और जीवन के उस पहलु को खराब करती हैं। अगर उत्तर में कूड़ा जमा है तो धनार्जन के अवसर बंद हो जाते हैं, पूर्व में अगर कूड़ा है तो समाज से आपके संबंध कमजोर हो जाते हैं, दक्षिण-पश्चिम में कूड़ा-करकट जमा है तो धन टिकता नहीं है और अगर पश्चिम में गंदगी जमा है तो आपके प्रयासों का लाभ नहीं मिल पाता है।
इन छोटी-छोटी बातों का ध्यान रख कर आप अपने घर को तरक्की वाला घर बना सकते हैं।
आचार्य मनोज श्रीवास्तव ऐसे वास्तु कंसलटेंट और ज्योतिषी हैं जिनको बीस साल से ज्यादा का कॉर्पोरेट लीडरशिप का अनुभव है। वे पूर्व में एयरटेल, रिलायंस और एमटीएस जैसे बड़े कॉर्पोरेट हाउस में वरिष्ठ पदों पर कार्यरत रहे हैं। आजकल वे पूर्ण रूप से एक वास्तु कंसलटेंट और ज्योतिषी के रूप में अपनी सेवाएँ दे रहे हैं।
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