वीकली रिकैप: पढ़ें इस हफ्ते की टॉप स्टोरीज़!
यहाँ आप इस हफ्ते प्रकाशित हुई कुछ बेहतरीन स्टोरीज़ को संक्षेप में पढ़ सकते हैं।
इस हफ्ते हमने कई प्रेरक और रोचक कहानियाँ प्रकाशित की हैं, उनमें से कुछ को हम यहाँ आपके सामने संक्षेप में प्रस्तुत कर रहे हैं, जिनके साथ दिये गए लिंक पर क्लिक कर आप उन्हें विस्तार से भी पढ़ सकते हैं।
किसान आंदोलन
केंद्र सरकार के कृषि कानून के खिलाफ पंजाब और हरियाणा के बाद देश भर के किसान धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। जिन बिलों को मोदी सरकार किसानों के हित में बता रही है, असल में उसकी वजह से ही देश के किसान आज सड़कों पर हैं।देशभर के किसान संगठनों ने भारत बंद का आह्वान किया है, जिसमें पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान समेत कई राज्यों के किसान संगठन शामिल हैं। ऑल इंडिया किसान संघर्ष कोऑर्डिनेशन कमिटी के बैनर तले बुलाए गए भारत बंद में देशभर के 400 से ज्यादा किसान संगठन शामिल हैं। मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस समेत दर्जन भर राजनीतिक दलों ने भी बंद का समर्थन किया है।
किसानों को सबसे बड़ा डर न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) खत्म होने का है। इस बिल के जरिए सरकार ने कृषि उपज मंडी समिति (APMC) यानी मंडी से बाहर भी कृषि कारोबार का रास्ता खोल दिया है। गौरतलब है कि मंडी से बाहर भी ट्रेड एरिया घोषित हो गया है। मंडी के अंदर लाइसेंसी ट्रेडर किसान से उसकी उपज एमएसपी पर लेते हैं, लेकिन बाहर कारोबार करने वालों के लिए एमएसपी को बेंचमार्क नहीं बनाया गया है। इसलिए मंडी से बाहर एमएसपी मिलने की कोई गारंटी नहीं है।
किसानों का कहना है कि आढ़तिया या व्यापारी अपने 6-7 फीसदी टैक्स का नुकसान न करके मंडी से बाहर खरीद करेगा, जहां उसे कोई टैक्स नहीं देना है। इस फैसले से मंडी व्यवस्था हतोत्साहित होगी। मंडी समिति कमजोर होंगी तो किसान धीरे-धीर बिल्कुल बाजार के हवाले चला जाएगा। जहां उसकी उपज का सरकार द्वारा तय रेट से अधिक भी मिल सकता है और कम भी। किसानों की इस चिंता के बीच राज्य सरकारों (पंजाब और हरियाणा) को इस बात का डर सता रहा है कि अगर निजी खरीदार सीधे किसानों से अनाज खरीदेंगे तो उन्हें मंडियों में मिलने वाले टैक्स का नुकसान होगा। दोनों राज्यों को मंडियों से मोटा टैक्स मिलता है, जिसे वे विकास कार्य में इस्तेमाल करते हैं।
साल 2020 में ढाबा मालिकों को सोशल मीडिया ने बनाया हीरो
ऐसा कहा जाता है कि "पंजाबी जहां भी जाते हैं वहां ढाबा चलता है।" अगर इतिहास खंगालकर देखा जाए तो आप पायेंगे कि "ढाबा, असल में पंजाबियों (पंजाब के लोगों) की देन है।"
साल 2020 में सोशल मीडिया की बदौलत कुछ ढाबा मालिकों ने काफी सुर्खियां बटोरी हैं। अगर हम कहें कि सोशल मीडिया पर छाने के बाद उनकी कमाई में दिन दोगुनी, रात चौगुनी वृद्धि हुई है, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
साल 2020 'बाबा का ढाबा' के नाम रहा। इस साल में ढाबा वालों की सफलता का सिलसिला इसी नाम से शुरू होता है।
दिल्ली के मालवीय नगर में 'बाबा का ढाबा' भोजनालय चलाने वाले 80 वर्षीय बुजुर्ग दंपती बीते 30 साल से चुपचाप राहगीरों को घर का बना हुआ सुपाच्य भोजन परोस रहे थे फिर एक दिन यूट्यूब फूड ब्लॉगर गौरव वासन द्वारा शूट किया गया वीडियो सोशल मीडिया पर इसकदर वायरल हुआ कि, खाना खाने के लिए 'बाबा का ढाबा' के सामने लोगों की लंबी कतारें लग गई।
दिल्ली के पीरागढ़ी की रहने वाली सरिता कश्यप के पास कोई ठेला, होटल या बड़ी दुकान नहीं है वो अपने स्कूटर पर भी बर्तन चूल्हा रखकर इसे चला रही है।
अवानिश सारन जोकि आईएएस ऑफिसर हैं, ने सोशल मीडिया पर एक फोटो शेयर करते हुए लिखा, "ये हैं पश्चिम विहार दिल्ली की सरिता कश्यप, पिछले 20 साल से ये अपनी स्कूटी पर ‘राजमा-चावल’ का स्टाल लगाती हैं। अगर आपके पास पैसे नहीं हैं, तो भी आपको ये भूखा नहीं जाने देंगी। खाली समय मे बच्चों को पढ़ाती भी हैं।"
गुजरात में बच्चूदादा का एक ढाबा है जिसे कम ही लोग जानते हैं। ये बुज़ुर्ग शख़्स दशकों से लोगों को खाना खिला रहे हैं और ग़रीब मजबूर लोगों से पैसे भी नहीं लेते।
गुजरात राज्य के मोरबी शहर में 74 साल के बच्चू दादा है जो पिछले 40 सालों से एक ढाबा चला रहे हैं। असल में बच्चू दादा का पूरा नाम बचुभाई नारंगभाई पटेल है।
ढाबे का व्यापार समाजसेवा है। कमाई के नाम पर बचुदादा के पास जो भी होता है उसे वह इसी ढाबे में लगा देते हैं।
20 हजार से 20 करोड़ रुपये तक का सफर
कई कठिनाइयों को पार पाने और यहां तक कि ऑफिस किराए के भुगतान के बदले मुफ्त में प्रोजेक्ट्स करने के बाद, बेहज़ाद खरस ने 2005 में The BNK Group की शुरूआत की। आज, कंपनी का टर्नओवर 20 करोड़ रुपये है।
बेहज़ाद 25 साल के थे, जब उन्होंने अपने दोस्त के ऑफिस में एक छोटी सी मेज का उपयोग कर नासिक में शुरुआत की। उन्होंने किराए के बदले में अपने दोस्त के लिए ऑफिस की जगह डिजाइन की और अपनी आंत्रप्रेन्योरशिप की यात्रा शुरू की। उनके दोस्त ने उन्हें कुछ अन्य लोगों के पास भेजा, जिससे एक चीज़ दूसरे को मिली और उन्हें पुणे और मुंबई सहित आसपास के शहरों से प्रोजेक्ट्स मिलने शुरू हो गए।
बेहज़ाद ने दो कर्मचारियों के साथ नौ महीने तक इस तरह काम किया। जैसे-जैसे उन्हें और अधिक प्रोजेक्ट मिलने लगे, वह छह कर्मचारियों के साथ एक चॉल में चले गए, और 10 कर्मचारियों के साथ एक मॉल में एक दुकान की ओर बढ़ गए। 2013 में, बेहज़ाद ने आखिरकार 40 कर्मचारियों के साथ मुंबई के एक व्यवसायिक जिले में अपना उद्यम स्थापित किया।
The BNK Group ने अफ्रीका (6,000 वर्ग फुट विला), चीन, दुबई आदि में प्रोजेक्ट्स भी डेवलप किए हैं। भारत में कंपनी ने ताज विवांता, दिल्ली; वन अविघ्न, मुंबई; स्काई विला, मुंबई; आदि के लिये डिज़ाइन किया है।
भविष्य में, बेहज़ाद मुख्य रूप से अपने ग्राहकों के लिए एक अनुभव केंद्र खोलने और व्यवसाय का विस्तार करने के लिए एक इन-हाउस निर्माण स्थान स्थापित करने के लिए बाहरी फंड जुटाने के लिए तत्पर हैं।
लौट आई भारत की पहली महिला सुपरहीरो प्रिया
डॉक्यूमेंट्री फिल्म निर्माता, टेक्नोलॉजिस्ट, और अमेरिका स्थित मीडिया हाउस Rattapallax के फाउंडर, राम देविनेनी ने 2012 में दिल्ली सामूहिक बलात्कार के बाद प्रिया शक्ति को भारत की पहली महिला सुपर हीरो के रूप में बनाया।
इस साल, जैसा कि पूरी दुनिया कोविड-19 से लड़ाई लड़ रही है, Priya’s Mask, सीरीज़ का सबसे नया जोड़ है, जो कि सब्जेक्ट के साथ बहुत सटीक है।
राम कहते हैं, “मैंने युवा दर्शकों तक पहुंचने के लिए 2014 में Priya Shakti कॉमिक बुक सीरीज़ बनाई। मेरा लक्ष्य महिलाओं की भूमिका के बारे में बहुत कम उम्र में लोगों की धारणा को बदलना था, और विशेष रूप से उन बचे हुए लोगों की धारणा।”
प्रिया ने छोटी मीना को फ्रेंडली हेल्थकेयर वर्कर्स द्वारा दी गई कुर्बानियों को दिखाने के लिए और साहस और करुणा की शक्ति को बढ़ाने के लिए दोस्ती की। अपने बाघ साहस के साथ, प्रिया एक मास्क पहने और महामारी से लड़ने के लिए एक साथ काम करने के सभी महत्वपूर्ण संदेश से गुजरती है।
एनिमेटेड शॉर्ट फिल्म में अमेरिका और भारत की फेमिनिस्ट लीडर्स की आवाजें शामिल हैं, जिनमें रोसन्ना एक्वेट, विद्या बालन, मृणाल ठाकुर और सायरा कबीर शामिल हैं।
HIV-AIDS के बारे में मिथक और भेदभाव के खिलाफ महिलाओं की जंग
HIV के बारे में हमारे समाज में कई तरह के मिथक फैले हुए जिसके चलते लोगों के साथ बड़ा भेदभाव होता है और उन्हें जीवन जीने के लिये कड़ा संघर्ष करना पड़ रहा है। ये चार महिलाएं इसके प्रति जागरूकता फैलाने में मदद कर रही हैं कि कैसे HIV-AIDS के रोगी सामान्य जीवन जी सकते हैं।
TB-HIV कार्यकर्ता, मोना बलानी ने एक लंबी और कठिन यात्रा शुरू की है और अब वह दिल्ली में India HIV/AIDS Alliance के साथ काम करती है। एचआईवी से जुड़े कलंक को चुनौती देने और बीमारी के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए दृढ़ संकल्प, वह 2007 में Network for People Living with HIV/AIDS में शामिल हुई।
ज्योति धवले का मानना है कि खुशी एक व्यक्तिगत पसंद है और इसने उन तमाम अंतरों को जन्म दिया है, जिन्होंने चुनौतियों के बावजूद अपने जीवन को बदल दिया। आज, वह एक ब्लॉगर, एक्टिविस्ट और द स्टिग्मा प्रोजेक्ट के इंडियन एंबेस्डर के रूप में एचआईवी / एड्स के इर्द-गिर्द जागरूकता फैला रही है और डेब्यू कर रही है। उन्हें अपने पति और दोस्त विवेक सुर्वे से भी प्यार और करुणा मिली है।
प्रवीसिनी प्रधान के पति को 2003 में एचआईवी का पता चला था। वे भी 15 महीने बाद इस बीमारी का शिकार हो गई। जब प्रवासिनी ने एचआईवी पॉजिटिव का परीक्षण किया, तो उनके ससुराल वालों ने उनसे बात नहीं की और न ही उन्हें अपने पति के अंतिम संस्कार को पूरा करने दिया।
आज, प्रवासिनी एक समर्पित कार्यकर्ता हैं और 2006 में HIV / AIDS (KNP +) के साथ रहने वाले लोगों के लिए कलिंग नेटवर्क की स्थापना की। संगठन के अध्यक्ष के रूप में, वह समाज में सामाजिक कलंक और वर्जनाओं से लड़ने के लिए बीमारी के बारे में जागरूकता फैला रही हैं। कार्यकर्ता एचआईवी के साथ रहने वाले लोगों को सरकारी योजनाओं, स्वास्थ्य सुविधाओं और उपलब्ध उपचार विकल्पों के बारे में सूचित करने पर भी ध्यान केंद्रित करती है।
1995 में, जाह्नबी गोस्वामी ने सार्वजनिक रूप से अपनी एचआईवी स्थिति को साझा किया, ऐसा करने वाली असम और पूर्वोत्तर भारतीय राज्यों की पहली महिला हा। एक्टिविस्ट को लगता है कि इस तरह से मुखर होने से समाज में एचआईवी / एड्स के आस-पास परिवर्तन लाने और मिथकों को खत्म करने में बढ़ावा मिलेगा।