EPS: आपकी कुल सैलरी में से हर माह इसमें भी जमा होता है पैसा, क्या है इसका फायदा?
EPS 16 नवंबर 1995 से लागू है.
निजी क्षेत्र में संगठित क्षेत्र के तहत काम करने वाले कर्मचारी भी रिटायरमेंट के बाद मासिक पेंशन पा सकें, इसके लिए इंप्लॉई पेंशन स्कीम, 1995 (EPS) को शुरू किया गया. EPF स्कीम, 1952 के तहत कर्मचारी के EPF में कर्मचारी की ओर से योगदान 12 प्रतिशत होता है. वहीं एंप्लॉयर की ओर से किए जाने वाले 12 प्रतिशत कॉन्ट्रीब्यूशन में से 8.33 प्रतिशत EPS में जाता है. बाकी हिस्से में से EPF में 3.67 प्रतिशत और EDLI में 0.50 प्रतिशत जाता है.
कर्मचारी 58 वर्ष की उम्र में पहुंचने पर EPS के पैसे से मासिक पेंशन पा सकता है. कर्मचारी के पेंशन अकाउंट में सरकार की ओर से भी योगदान रहता है. लेकिन याद रहे कि एक कर्मचारी की EPS (Employee Pension Scheme) में अधिकतम मासिक योगदान 1250 रुपये तय है. यह स्कीम 16 नवंबर 1995 से लागू है. EPS की एक खासियत यह है कि इसका फायदा केवल कर्मचारी तक ही सीमित नहीं है, बल्कि अगर किसी कारण से EPF मेंबर की मृत्यु हो जाती है तो उसके परिवार यानी जीवनसाथी और बच्चों को भी पेंशन का लाभ मिलता है. इसे ‘फैमिली पेंशन’ कहा जाता है.
EPS के लिए शर्तें
- कर्मचारी, EPF स्कीम का सदस्य होना चाहिए.
- EPS में योगदान केवल कंपनी और सरकार की ओर से रहता है.
- उसकी नौकरी का कार्यकाल कम से कम 10 साल तक होना चाहिए. 9 वर्ष 6 माह की नौकरी भी 10 साल की ही मानी जाती है.
- अगर किसी कर्मचारी की सर्विस 10 साल से कम है तो उन्हें 58 साल की आयु में पेंशन अमाउंट निकालने का विकल्प मिलता है.
- अगर किसी ने 6 माह से कम वक्त के लिए EPF में योगदान किया है तो उसे पेंशन अमाउंट निकालने का अधिकार नहीं है.
- कर्मचारी 58 वर्ष की उम्र पूरी कर चुका हो. हालांकि 50 की उम्र पूरी कर लेने और 58 की उम्र से पहले भी पेंशन के विकल्प को चुन सकते हैं. लेकिन इस स्थिति में कर्मचारी को घटी हुई पेंशन मिलेगी.
- कर्मचारी चाहे तो 58 वर्ष की आयु क्रॉस करने के बाद भी EPS में योगदान कर सकता है या तो 58 की उम्र से ही या फिर 60 की उम्र से पेंशन शुरू करा सकता है. 60 साल की उम्र से पेंशन शुरू कराने पर टाले गए दो वर्ष के लिए 4% सालाना की दर से बढ़ी हुई पेंशन मिलती है.
- कर्मचारी की असामयिक मृत्यु होने पर उसके परिवार को पेंशन मिलती है. कर्मचारी खुद भी पूर्ण रूप से डिसेबल होने की स्थिति में पेंशन का हकदार होता है.
- EPF ने फैमिली पेंशन के मामले में न्यूनतम 10 साल की सर्विस अनिवार्यता की शर्त नहीं रखी है. यानी 10 साल पूरे होने से पहले अगर इंप्लॉई की मौत हो जाती है तो भी उसके परिवार को पेंशन मिलेगी.
- एक कर्मचारी के एक से ज्यादा EPS अकाउंट नहीं हो सकते.
- EPS के तहत मैक्सिमम पेंशनेबल सैलरी लिमिट 15000 रुपये प्रतिमाह तक है. यानी इतने ही बेसिक+ DA अमाउंट पर पेंशन कटेगी, फिर चाहे कर्मचारी की सैलरी कितनी ही ज्यादा क्यों न हो जाए.
पेंशन स्कीम सर्टिफिकेट
ऐसे कर्मचारी/सब्सक्राइबर्स, जिन्होंने 10 साल से कम समय तक EPF में योगदान किया है और काम नहीं कर रहे हैं वे या तो पेंशन निकाल सकते हैं या पेंशन सेवा को जारी रखने के लिए स्कीम सर्टिफिकेट ले सकते हैं, लेकिन यह अनिवार्य नहीं है. पेंशन विदड्रॉ करने या स्कीम सर्टिफिकेट लेने के लिए फॉर्म 10C भरना होता है. पेंशन स्कीम सर्टिफिकेट का फायदा यह है कि अगर कर्मचारी सेवा अंतराल के बाद जब कभी दोबारा कहीं नौकरी शुरू करेगा, तो पहले वाली नौकरी की अवधि उसकी नई नौकरी के साथ जुड़ जाएगी. उसे दोबारा से नए सिरे से 10 साल की सर्विस पूरी करने की जरूरत नहीं होगी.
पहले वाली नौकरी अवधि और बाद वाली नौकरी अवधि को मिलाकर अगर उसने कम से कम 10 साल पूरे कर लिए तो वह रेगुलर पेंशन स्कीम का लाभ लेने का हकदार हो जाएगा. दूसरी बार नौकरी छोड़ने पर फिर से फॉर्म 10C भरकर स्कीम सर्टिफिकेट लेना होगा, जिसमें दूसरी नौकरी की अवधि भी जुड़ जाएगी. ऐसा कर्मचारी के 58 साल का होने तक चलता रहेगा. इसके बाद सर्टिफिकेट को EPFO को सरेंडर कर पेंशन शुरू कराई जा सकती है.
यह भी जान लें
जब व्यक्ति नौकरी बदलता है तो उसका EPF तो ट्रांसफर हो सकता है लेकिन पेंशन नहीं. जॉब छोड़ने पर कर्मचारी के पास विकल्प रहता है कि या तो वह EPF के साथ पेंशन फंड भी निकाल ले या फिर इसे जमा रखकर आगे कंटीन्यू करे. पेंशन अमाउंट निकाल लेने की स्थिति में कर्मचारी को रिटायरमेंट के बाद मासिक पेंशन नहीं मिलती.