जानिए किसी बैंक के डूब जाने का क्या मतलब होता है, ग्राहकों के पैसों का क्या होता है?
एक के बाद एक तमाम बैंकों के दिवालिया होने की खबरों से हर किसी के मन में एक बड़ा सवाल ये उठ रहा है कि आखिर बैंकों का दिवालिया होना क्या होता है? आइए समझते हैं इसे.
पहले सिलिकॉन वैली बैंक (Silicon Valley Bank) दिवालिया हुआ. फिर सिग्नेचर बैंक (Signature Bank) पर ताला लगा. इसके बाद फर्स्ट रिपब्लिक बैंक (First Repulic Bank) के डूबने की नौबत आ गई है. हफ्ते भर में तीन बड़े अमेरिकी बैंकों के डूबने की खबर के बाद अब क्रेडिट सुईस (Credit Suisse) पर भी दिवालिया होने का संकट मंडरा रहा है. एक के बाद एक तमाम बैंकों के दिवालिया होने की खबरों से हर किसी के मन में एक बड़ा सवाल ये उठ रहा है कि आखिर बैंकों का दिवालिया (Bankruptsy) होना क्या होता है? कब माना जाता है कि कोई बैंक दिवालिया हो गया? क्या बैंक दिवालिया होने पर उसमें जमा लोगों के पैसे डूब जाते हैं? आइए समझते हैं किसी बैंक के डूब जाने का क्या मतलब होता है.
कब माना जाता है किसी बैंक को दिवालिया
अगर किसी बैंक की लायबिलिटी उसके असेट्स से ज्यादा हो जाती है और बैंक इस स्थिति से निपट नहीं पाता है तो वह दिवालिया हो जाता है. यानी जब बैंक की कमाई इतनी कम हो जाती है कि वह अपने खर्चे तक नहीं चुका पाता और बैंक इस नुकसान से लड़ नहीं पाता तो माना जाता है कि बैंक डूब गया है. ऐसी स्थिति में देश के मुद्रा नियामक (भारत के मामले में भारतीय रिजर्व बैंक) के पास अधिकार होता है कि वह उस बैंक को बंद कर दे, अगर वह राष्ट्रीय बैंक है. वहीं प्राइवेट बैंक के मामले में भी प्रक्रिया काफी हद तक ऐसी ही होती है.
बैंक डूबने पर क्या होता है?
जैसी ही लोगों को पता चलता है कि कोई बैंक दिवालिया होने वाला है या डूबने वाला है तो सबसे पहले लोग उस बैंक में जमा अपने पैसे निकालने लगते हैं. इससे बैंक की हालत और ज्यादा खराब होने लगती है, क्योंकि बैंक की कमाई का जरिया ही आपकी जमा पूंजी होती है, जिसे वह कर्ज के रूप में दूसरों को देकर ब्याज कमाते हैं. तेजी से बैंक से पैसे निकलने की वजह से देखते ही देखते चंद दिनों या हफ्तों में ही बैंक ढ़ह जाता है यानी डूब जाता है. ऐसी स्थिति में सबसे पहले नियामक की तरफ से बैंकों से पैसे निकालने पर पाबंदी लगा दी जाती है. कई मामलों में एक तय सीमा तक पैसे निकालने की अनुमति दे दी जाती है. ग्राहकों के बैंक से जुड़े डेबिट और क्रेडिट कार्ड समेत ऑनलाइन बैंकिंग टूल्स को बंद कर दिया जाता है. इसके बाद या तो उस बैंक को किसी दूसरे बैंक के साथ मर्ज कर दिया जाता है या फिर उसे पूरी तरह बंद करते हुए उसके ग्राहकों का सेटलमेंट कर दिया जाता है.
लोगों के जमा पैसों का क्या होता है?
अगर कोई बैंक डूब जाता है तो उसमें ग्राहकों के जमा पैसों को एक निश्चित सीमा तक निकाला जा सकता है. भारतीय रिजर्व बैंक की सब्सिडियरी डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी (DICGC) कॉरपोरेशन डिपॉजिट इंश्योरेंस के तहत ग्राहकों को उनकी जमा पूंजी में से 5 लाख रुपये तक की रकम सुरक्षित वापस मिल जाती है. यह रकम ज्यादा भी हो सकती है, अगर बैंक की हालत थोड़ी ठीक रही तो, वरना कम से कम 5 लाख रुपये तो मिलेंगे ही. यानी 5 लाख रुपये तक के बैंक जमा पर सुरक्षा की गारंटी होती है.
तो क्या बैंकों में 5 लाख रुपये से ज्यादा जमा ना करें?
अगर आप बैंक में अधिक पैसे जमा करते हैं तो आप सारे पैसे एक ही बैंक में ना रखें. कोशिश करें कि इन पैसों को अलग-अलग बैंकों में रखें. एक बैंक में 5 लाख रुपये से अधिक ना रखें, ताकि अगर कोई बैंक डूबता है तो आपके पैसे बचे रहें.