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लॉकडाउन हुआ तो इस गाँव के बुजुर्गों ने किया पढ़ाई-लिखाई का फैसला, अब रोज जाते हैं स्कूल

लॉकडाउन में स्कूल जाकर पढ़ना लिखना सीख गए बुजुर्ग, अंग्रेजी में करने लगे हैं संवाद

लॉकडाउन हुआ तो इस गाँव के बुजुर्गों ने किया पढ़ाई-लिखाई का फैसला, अब रोज जाते हैं स्कूल

Thursday July 08, 2021 , 3 min Read

"मालूम है कि इनमें से किसी भी वृद्ध को उनके समय में स्कूल जाने का मौका नहीं मिल पाया था, जिसके चलते उनकी शिक्षा बिल्कुल भी नहीं हो सकी थी। इन वृद्धजनों को शिक्षित करने की पहल की शुरुआत मणिपुर के जेमसन हारोई ट्रस्ट ने की थी और इसी के बाद गाँव के शिक्षित युवाओं ने इसमें सक्रिय तौर पर भाग लेना शुरू किया था।"

कोरोना महामारी ना जाने कितने लोगों के लिए बुरा वक्त साबित हुई है, लेकिन इस महामारी के दौरान ही कुछ लोगों ने अपने जीवन में एक बड़े और खूबसूरत बदलाव को भी लाने का काम किया है।


इस दौरान आपदा को अवसर में बदलने वाले युवाओं के एक समूह ने भारत और म्यांमार सीमा पर स्थित एक गाँव में कोरोना महामारी के चलते लागू हुए लॉकडाउन के दौरान अपने गाँव के वृद्ध लोगों को पढ़ना-लिखना सिखाने का काम किया है।


मणिपुर स्थित चात्रिक कूहलेन गाँव में सैकड़ों परिवार रहते हैं। लॉकडाउन के दौरान तमाम युवा भी प्रतिबंधों के चलते गाँव में ही फंस गए थे। ऐसे में युवाओं ने अपने गाँव के अशिक्षित बुजुर्गों के जीवन में शिक्षा की रोशनी भरने का संकल्प लेने का काम किया है।


मालूम है कि इनमें से किसी भी वृद्ध को उनके समय में स्कूल जाने का मौका नहीं मिल पाया था, जिसके चलते उनकी शिक्षा बिल्कुल भी नहीं हो सकी थी। इन वृद्धजनों को शिक्षित करने की पहल की शुरुआत मणिपुर के जेमसन हारोई ट्रस्ट ने की थी और इसी के बाद गाँव के शिक्षित युवाओं ने इसमें सक्रिय तौर पर भाग लेना शुरू किया था।

अब अंग्रेजी भी पढ़ते हैं बुजुर्ग

ट्रस्ट के संस्थापक सोरिंथन हारोई ने मीडिया से बात करते हुए बताया है कि इन सभी वृद्धजनों की ये खास कक्षाओं की शुरुआत 3 मई से हुई थी। ये कक्षाएँ सुबह 6 बजे से शुरू हो जाती हैं,हालांकि गाँव के अधिकतर बुजुर्ग किसान भी हैं ऐसे में इन कक्षाओं में औसतन 20 वृद्ध ही हिस्सा ले पाते हैं, जबकि अन्य वृद्धजन अपनी सहूलियत के हिसाब से कक्षाओं में हिस्सा लेते हैं।


बुजुर्गों ने इन कक्षाओं के बाद अपने अनुभवों को मीडिया के साथ साझा करते हुए बताया है कि इसके पहले वे वर्णमाला के अक्षर और अंकों को पहचान भी नहीं पाते थे, लेकिन अब वे इसी के साथ अंग्रेजी के कुछ शब्दों को भी पढ़ना और बोलना भी सीख गए हैं। कक्षाओं में आने वाले बुजुर्गों में सबसे बड़ी खुशी इस बात की भी है कि वे सभी अपने धार्मिक ग्रन्थों को भी पढ़ सकेंगे।

मिल रहा है दोस्ताना माहौल

गाँव के ज़्यादातर वृद्धजन अकेले में अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं, ऐसे में ये कक्षाएँ ना सिर्फ उन्हें शिक्षित कर रही हैं बल्कि इसके जरिये वे सभी आपस में मिलजुल कर एक दोस्ताना माहौल भी बना पा रहे हैं। 


अब इस दिशा में और आगे बढ़ते हुए ट्रस्ट गाँव के युवा विवाहित जोड़ों और माध्यम आयु वर्ग के लोगों के लिए भी इसी तरह की कक्षाएँ शुरू करने की तैयारी कर रहा है।


कोरोना महामारी के दौरान ट्रस्ट गाँव के लोगों को सुरक्षित रखने का भी काम कर रहा है। इस दौरान गाँव से बाहर जाने वाले लोगों को गाँव में वापसी करने के दौरान कोविड निगेटिव रिपोर्ट दिखाने के बाद ही अंदर आने दिया जाता है, जबकि इस दौरान गाँव के बाहर से आए हुए व्यक्ति को गाँव में रुकने की अनुमति नहीं दी जाती है।


Edited by Ranjana Tripathi