Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
Yourstory

Brands

Resources

Stories

General

In-Depth

Announcement

Reports

News

Funding

Startup Sectors

Women in tech

Sportstech

Agritech

E-Commerce

Education

Lifestyle

Entertainment

Art & Culture

Travel & Leisure

Curtain Raiser

Wine and Food

YSTV

ADVERTISEMENT
Advertise with us

एक के बाद एक औंधे मुंह क्यों गिरते जा रहे हैं अमेरिकी बैंक, जानिए भारत पर इसका असर होगा या नहीं

पहले सिलिकॉन वैली बैंक बंद हुआ, फिर सिग्नेचर बैंक पर ताले लगे, पिछले ही हफ्ते एक सिल्वर गेट बैंक भी डूबा था. अमेरिका के बैंक एक के बाद एक दिवालिया हो रहे हैं. क्या भारत पर भी इसका असर पड़ सकता है?

एक के बाद एक औंधे मुंह क्यों गिरते जा रहे हैं अमेरिकी बैंक, जानिए भारत पर इसका असर होगा या नहीं

Monday March 13, 2023 , 5 min Read

पहले अमेरिका के कैलिफोर्निया में स्थित सिलिकॉन वैली बैंक (Silicon Valley Bank) दिवालिया हुआ और कुछ ही दिन बाद न्यूयॉर्क के सिग्नेचर बैंक (Signature Bank) पर भी ताले लगने की खबर आ गई. अगर आने वाले दिनों में किसी और बैंक के डूबने की खबर सुनने को मिले, तो हैरानी नहीं होनी चाहिए. लेकिन यहां सवाल ये उठता है कि आखिर ये बैंक एक के बाद एक औंधे मुंह क्यों गिरते जा रहे हैं? आखिर क्या वजह है कि बैंकों के डूबने का सिलसिला सा चल पड़ा है? कहीं 2008 जैसी मंदी (Recession) ने दस्तक तो नहीं दे दी, जिसका कई महीनों से डर जताया जा रहा था? एक बड़ा सवाल ये भी उठता है कि अमेरिका में जो सिलसिला शुरू हुआ है, क्या उसकी आंच भारत के बैंकिंग सेक्टर (Banking Sector) तक भी आएगी?

पहले समझिए क्यों दिवालिया हुआ सिलिकॉन वैली बैंक

सिलिकॉन वैली के डूबने की सबसे बड़ी वजह ये रही कि बैंक ने कुछ गलत फैसले किए. सिलिकॉन वैली बैंक के बारे में कहा जाता है कि जिन स्टार्टअप को कोई बैंक हाथ नहीं लगाता था, सिलिकॉन वैली उन्हें भी कर्ज दे देता था. साल 2021 में शेयर बाजारों में एक तगड़ा बूम आया और ब्याज दरें लगभग जीरो हो गईं. टेक स्टार्टअप्स के पास बहुत सारा पैसा इकट्ठा हो गया, जिसे कई स्टार्टअप ने सिलिकॉन वैली बैंक में जमा कर दिया. बैंक ने भी उन पैसों को लंबी अवधि के बॉन्ड में निवेश कर दिया. पिछले साल जब ब्याज दरें बढ़ीं तो बॉन्ड्स अपनी वैल्यू गंवाने लगे.

वहीं टेक स्टार्टअप्स ने अपने पैसे निकालने शुरू कर दिए, क्योंकि उनका खर्च बढ़ गया. बैंक को अपने बॉन्ड्स को नुकसान में बेचना पड़ा, ताकि पैसे चुकाए जा सकें. नुकसान बढ़ने लगा तो कंपनी के शेयर की कीमत गिरने लगी. तमाम वेंचर कैपिटल निवेशकों ने अपने पोर्टफोलियो स्टार्ट्प्स से बैंक से पैसे निकालने को कह दिया. इन सब की वजह से सिलिकॉन वैली बैंक दिवालिया हो गया, जो अमेरिकी इतिहास का दूसरा सबसे बड़ा दिवाला है. साल 2008 में वॉशिंगटन म्यूचुअल (Washington Mutual) अमेरिका के इतिहास का पहला सबसे बड़ा बैंक दिवाला था.

सिग्नेचर बैंक के साथ क्या हुआ?

सिग्नेचर बैंक पिछले साल के अंत में FTX क्रिप्टो एक्सचेंज के पतन के साथ सुर्खियों में आया था. एफटीएक्स के सिग्नेचर बैंक में खाते थे. साल 2018 में ही ये बैंक क्रिप्टो असेट्स के डिपोजिट के बिजनेस में उतरी थी. बैंक के लिए यही फैसला सबसे खतरनाक साबित हुआ. क्रिप्टोकरंसी में डील करने वाला एक अन्य बैंक Silvergate Bank पिछले ही हफ्ते डूबा है. उसे देखने के बाद सिग्नेचर बैंक के जमाकर्ताओं में भी खलबली मच गई. हालांकि, एफटीएक्स के डूबने के बाद से ही जांच एजेंसियों की नजर सिग्नेचर बैंक पर थी. मामला बिगड़ता देख वित्तीय नियामकों ने सिग्नेचर बैंक बंद कर दिया. बैंक के मैनेजर्स को भी इसका पता बैंक बंद करने की घोषणा किए जाने से कुछ ही देर पहले चला. अमेरिका के इतिहास में यह तीसरा सबसे बड़ा दिवाला बताया जा रहा है.

गलत फैसलों की वजह से बंद हो रहे हैं बैंक

अगर गौर से देखा जाए तो पता चलता है कि इन बैंकों के बंद होने की वजह उनके गलत फैसले रहे. एक ने तेजी से पैसे लेकर उन्हें बिना रिस्क का कैल्कुलेशन किए इन्वेस्ट कर दिया और दूसरे ने क्रिप्टो असेट्स में हाथ डाला. इन बैंकों को पैसों को निवेश करने से पहले सही फैसला लेना चाहिए था. जो भी कदम उठाने की सोची उसके फायदे और नुकसान समझने चाहिए थे. भविष्य के हिसाब से कैल्कुलेशन कर के चलना चाहिए था. आसान भाषा में कहें तो रिस्क का कैल्कुलेशन ना करना ही इन बैंकों को भारी पड़ा है, जिनकी वजह से वह डूबे हैं.

क्या भारत तक आ सकती है इसकी आंच?

अगर अमेरिकी शेयर बाजार में कोई हलचल होती है तो उसका सीधा असर भारतीय बाजारों पर देखने को मिलता है. सवाल ये है कि क्या अमेरिका में बैंक डूब रहे हैं तो उनका असर भारत पर भी पड़ेगा? इस आशंका को पूरी तरह से नकारा तो नहीं जा सकता है, लेकिन ये कहा जा सकता है कि भारतीय बैंकिंग सिस्टम पर उसका असर नहीं पड़ेगा. हां, भारत के शेयर बाजारों पर कुछ वक्त के लिए असर दिख सकता है. जैसा कि पिछले शुक्रवार को ही शेयर बाजार बुरी तरह टूटे थे.

भारतीय बैंकिंग सेक्टर पर कोई असर क्यों नहीं?

भारत के बैंकों का सिलिकॉन वैली बैंक से कोई भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष नाता नहीं है. भारतीय बैंकिंग सेक्टर में घरेलू निवेश है, जिन्हें सरकारी सिक्योरिटीज में निवेश किया गया है. साथ ही भारतीय बैंकिंग सिस्टम को भारतीय रिजर्व बैंक की तरफ से रेगुलेट किया जाता है, ऐसे में सिलिकॉन वैली बैंक जैसी हालत भारत के किसी बैंक की नहीं होगी. भारतीय बैंकों के पास पर्याप्त असेट भी है, जिसकी वजह से यहां के बैंकिंग सिस्टम पर सिलिकॉन वैली बैंक के दिवालिया होने का असर नहीं होगा. सिलिकॉन वैली बैंक का मामला सीधे-सीधे असेट-लायबिलिटी मिसमैच का मामला है, भारतीय बैंकों में ऐसी कोई स्थिति अभी तक नहीं है.

अब सवाल ये है कि क्या बैंकों का डूबना मंदी की आहट है? वैसे विशेषज्ञों का तो मानना है कि यह मंदी की आहट नहीं है. ये बैंक अपने गलत फैसलों की वजह से डूबे हैं, ना कि मंदी की मार से. हां, अगर जल्द से जल्द सरकार सिलिकॉन वैली को रिवाइव नहीं करती और उसका संचालन शुरू नहीं करती तो स्टार्टअप की दुनिया में बड़ी उठा-पटक देखने को मिल सकती है. स्टार्टअप्स के पास पैसों का संकट आएगा, जिससे वह सैलरी नहीं दे पाएंगे तो छंटनी का एक दौर शुरू हो सकता है.