डायबिटीज से पीड़ित 5 में से 4 भारतीयों की मेंटल हेल्थ पर असर: IDF सर्वे
भारत में मधुमेह से पीड़ित तीन चौथाई (86%) लोग, अपने मधुमेह के परिणामस्वरूप चिंता, अवसाद या अन्य मानसिक बीमारियों का सामना करते हैं, जिनमें से आधे से ज्यादा (61%) लोगों ने अपनी इस हालत के चलते लांछन भी झेले हैं. वर्ल्ड डायबिटीज डे के मौके पर IDF द्वारा किए गए एक सर्वे में ये बातें सामने आईं हैं.
वर्ल्ड डायबिटीज डे (World Diabetes Day) के मौके पर अंतरराष्ट्रीय मधुमेह संघ (International Diabetes Federation - IDF) द्वारा किए गए एक नए वैश्विक सर्वे से पता चला है कि मधुमेह से पीड़ित 86% लोग, अपने मधुमेह के परिणामस्वरूप चिंता, अवसाद या अन्य मानसिक बीमारियों का सामना कर चुके हैं.
जटिलताएँ बढ़ जाने का डर (76%) मानसिक बीमारियों का सबसे आम कारण था. अन्य कारक थे- दैनिक मधुमेह प्रबंधन (72%), हेल्थकेयर से जुड़े किसी पेशेवर व्यक्ति से सहायता प्राप्त करना (65%) तथा दवाओं व ज़रूरी सामग्री तक पहुँच बना पाना (61%).
सर्वे के दौरान बेहतर सहयोग की ज़रूरत साफ तौर पर उभर कर सामने आई, जिसमें मधुमेह से पीड़ित 79% भारतीय अपने स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं से भावनात्मक और मानसिक स्वास्थ्य पाने के लिए अधिक सहायता की मांग कर रहे थे.
यद्यपि मधुमेह हमेशा मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी मुसीबतों का कारण नहीं बनता, फिर भी मधुमेह से पीड़ित लगभग 85% भारतीय डायबिटीज बर्नआउट महसूस होने की बात करते हैं. इसका मुख्य कारण यह है कि वे दैनिक मधुमेह प्रबंधन से हताश या पूरी तरह पराजित महसूस करने लगते हैं. चिंताजनक बात यह है कि बर्नआउट से प्रभावित लगभग तीन चौथाई (73%) लोगों ने तनाव या पराजित महसूस करने के कारण, अपने मधुमेह का उपचार रोक देने या उसे बीच-बीच में छोड़ देने की बात को स्वीकार किया है.
अहमदाबाद में स्थित डायबिटीज केयर एंड हॉरमोन क्लिनिक के चेयरमैन एवं डायबिटीज विशेषज्ञ (Diabetologist & Chairman of Diabetes Care & Hormone Clinic) डॉ. बंशी साबू ने कहा, “आईडीएफ के नवीनतम अनुमानों के अनुसार, भारत में फिलहाल करीब 74 मिलियन लोग मधुमेह से पीड़ित हैं, और वर्ष 2045 के आने तक वयस्क आबादी में इसके फैलने की दर 10% हो जाने की आशंका है. इन आँकड़ों को ध्यान में रखते हुए, आईडीएफ का सर्वे संकेत देता है कि 59 मिलियन से अधिक लोगों का मानसिक स्वास्थ्य अपनी बीमारी को रोज़ाना सँभालने के बोझ के चलते प्रभावित हो सकता है.”
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए डॉ. बंशी साबू ने बताया, “मधुमेह तो शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य दोनों को प्रभावित करता है, मगर देखभाल अक्सर केवल ब्लड सुगर के प्रबंधन पर केंद्रित होती है, जिससे कई मरीज हार मान लेते हैं. मधुमेह के साथ बेहतर ज़िंदगी जीने के लिए, हमें ब्लड सुगर से कहीं आगे निकलकर देखने की ज़रूरत है.”
वर्ष 1995 के दौरान टाइप 1 डायबिटीज़ की चपेट में आईं नूपुर लालवानी ने कहा, “मधुमेह महज एक बीमारी नहीं, बल्कि गले से बँध जाने वाला ऐसा हमसफर है, जो हर चीज़ को तहसनहस कर डालता है. मुझे सिर्फ़ ज़िंदा रहने के लिए 24/7, रोज़ाना करीब 180 फैसले करने पड़ते हैं.”
इस विश्व मधुमेह दिवस के अवसर पर, अंतरराष्ट्रीय मधुमेह संघ (IDF) मधुमेह के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले गहन प्रभाव को पहचानने के लिए- स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं, नीति निर्माताओं और समुदायों का आवाहन कर रहा है. अच्छी सेहत को मधुमेह की देखभाल के केंद्र में रख देने से, दुनिया भर में मधुमेह पीड़ित लाखों लोगों के स्वास्थ्य नतीजों और उनके जीवन की समग्र गुणवत्ता में सुधार आ सकता है.
गौरतलब हो कि मधुमेह के चलते स्वास्थ्य पर बढ़ते ख़तरे को लेकर गहराती जा रही चिंताओं के जवाब ढूंढ़ने के लिए, 1991 में अंतरराष्ट्रीय मधुमेह महासंघ (International Diabetes Federation) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization) ने मिलकर विश्व मधुमेह दिवस (World Diabetes Day, WDD) मनाने की शुरुआत की थी. संयुक्त राष्ट्र संकल्प (United Nation Resolution) 61/225 पारित होने के साथ ही 2006 में विश्व मधुमेह दिवस (World Diabetes Day) एक आधिकारिक संयुक्त राष्ट्र दिवस (United Nations Day) बन गया था. यह हर साल 14 नवंबर को सर फ्रेडरिक बैंटिंग (Sir Frederick Banting) के जन्मदिन पर मनाया जाता है, जिन्हें चार्ल्स बेस्ट (Charles Best) के साथ 1921 में चिकित्सीय इंसुलिन खोज लेने का श्रेय दिया जाता है.