अपनी उम्र के सोलवें साल में ही वैकल्पिक नोबेल से सम्मानित ग्रेटा का दुख-सुख
कोई युवा हो अथवा बुजुर्ग, किसी भी कामयाब शख्सियत के जीवन में दुख और सुख दोनो के ही आने-जाने का क्रम लगा रहता है। हाल ही में संयुक्त राष्ट्र में अपनी जुझारू तकरीर से पूरी दुनिया को मुग्ध कर लेने वाली 16 वर्षीय ग्रेटा के साथ भी है। पता चला है कि वह 'एस्परजर सिंड्रोम' की बीमारी से पीड़ित हैं।
अपनी उम्र के सोलहवें साल में ही पूरी दुनिया के युवाओं की प्रेरणा स्रोत बन चुकीं स्वीडिश एक्टिविस्ट ग्रेटा थुनबर्ग को 'राइट लाइवलिहुड अवॉर्ड' दिए जाने की घोषणा हुई है। यह ग्रेटा का दुर्लभ सुख है; लेकिन हाल ही में संयुक्त राष्ट्र में जलवायु आपदा पर पूरी दुनिया के शीर्ष नेताओं को झकझोर देने वाली ग्रेटा 'एस्परजर सिंड्रोम' की बीमारी से ग्रसित हैं। यह उनका जन्मजात दुःख है। वर्ष 2019 के 'राइट लाइवलिहुड अवॉर्ड' से सम्मानित चार लोगों में शामिल ग्रेटा को वैकल्पिक नोबेल देने के बारे में फाउंडेशन का कहना है कि 'उन्होंने वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर जलवायु परिवर्तन से निपटने के कदम उठाने की राजनीतिक मांगों को प्रेरणा और बढ़ावा दिया है।
ग्रेटा इस धारणा को चरितार्थ करती हैं कि हर किसी में बदलाव लाने की शक्ति होती है। उनकी मिसाल से हर तरह के लोग राजनीतिक कदमों की मांग करने के लिए प्रेरित और सशक्त हुए हैं।' ग्रेटा समेत चार लोगों को 'राइट लाइवलिहुड अवॉर्ड', नोबेल पुरस्कार दिए जाने से छह दिन पहले स्वीडन के स्टॉकहोम में चार दिसंबर 2019 को एक समारोह में दिया जाएगा।
उल्लेखनीय है कि प्रतिवर्ष राइट लाइवलिहुड अवार्ड देने की शुरुआत वर्ष 1980 में हुई थी। स्वीडिश-जर्मन समाजसेवी याकोब फॉन उएक्सकुल द्वारा इस अवॉर्ड की स्थापना उद्देश्य उन हस्तियों की छवि को समाज के लाना रहा है, जिन्हें नोबेल पुरस्कार समिति नजरअंजाद कर देती है। इसीलिए इसे वैकल्पिक नोबेल पुरस्कारों की पहचान मिली हुई है। वर्ष 2019 के ग्रेटा, दावी कोपेनावा, हुतुकारा यानोमामी, अमीनातू हैदर को 103,000 डॉलर से पुरस्कृत किया जाएगा। हुतुकारा यानोमामी एसोसिएशन ब्राजील में अमेजन के जंगलों और वहां रहने वाले आदिवासियों का संरक्षण कर रहा है।
मोरक्को की एक्टिविस्ट अमीनातू हैदर को पश्चिमी सहारा में उनके दृढ़ अहिंसक कदमों के लिए और चीनी वकील गुओ जियानमेई को चीन में महिला अधिकारों पर उनके काम के लिए सम्मानित किया गया है। ग्रेटा ने अपना आंदोलन 20 अगस्त, 2018 को तब शुरु किया, जब वे स्वीडन की संसद के बाहर अकेली ही धरने पर बैठ गईं। इस तरह उन्होंने हफ्ते दर हफ्ते एक दिन स्कूल जाने के बजाए संसद के सामने जाकर जलवायु परिवर्तन को लेकर ठोस कदम उठाने की मांग रखी। एक अकेले इंसान के साहस और दृढ़ता से धीरे धीरे पूरे विश्व में लोग प्रभावित हुए और उनकी प्रेरणा से कई देशों में लाखों लोग प्रदर्शन कर नेताओं से जलवायु परवर्तन की गंभीरता को समझ जल्द से जल्द कदम उठाने की मांग करने लगे।
सोलह साल की जुझारू पर्यावरण ऐक्टिविस्ट ग्रेटा इस समय भले पूरी दुनिया में छा गई हों, उनका अपना भी एक दुख है। 'न्यूयॉर्क टाइम्स' के मुताबिक ग्रेटा एस्परजर सिंड्रोम से पीड़ित हैं। एस्परजर सिंड्रोम ऑटिज़्म की एक फॉर्म है। ग्रेटा बताती हैं कि उन्होंने लंबे समय तक अवसाद, अलगाव और चिंता झेली है।
वह अपनी इस बीमारी के संबंध में विगत 02 अप्रैल को ऑटिज़्म अवेयरनस डे के दिन अपने फेसबुक पेज पर एक पोस्ट भी डाल चुकी हैं, जिसमें उन्होंने लिखा है कि 'आज ऑटिज़्म अवेयरनस डे है और ऑटिज़्म कोई तोहफ़ा नहीं है। कई लोगों के लिए ये स्कूल, कामकाजी जगहों और बुली करने वाले लोगों के ख़िलाफ़ कभी न ख़त्म होने वाली लड़ाई है लेकिन सही परिस्थितियों में सही सुधारों के साथ ये बीमारी अपने आत्मबल से एक महान शक्ति बन सकती है।' जानकारों के मुताबिक, एस्परजर सिंड्रोम वाले लोगों में काफ़ी ओसीडी देखी जाती है। इसमें लोगों को एक ही तरह के खयाल बार-बार आते हैं।