संस्कृत भाषा का भविष्य संवारने के लिए योगी सरकार की पहल
भारतीय लोक जीवन से लुप्तप्राय संस्कृत भाषा को पुनर्जीवित करने के लिए उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने प्रेस विज्ञप्तियां हिंदी-अंग्रेजी-उर्दू के साथ अब संस्कृत में भी जारी कर एक अद्भुत पहल की है। जनगणना के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में 3,062 लोगों की मातृभाषा संस्कृत है। जर्मनी के चौदह विश्वविद्यालयों में संस्कृत पढ़ाई जाती है।
देश में ऐसा पहली बार हो रहा है कि उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार ने अपने एक महत्वपूर्ण निर्णय के बाद राज्य में सरकारी प्रेस विज्ञप्तियां अब संस्कृत भाषा में भी जारी करने की शुरुआत कर दी है। इससे पहले सरकारी प्रेस नोट केवल त्रिभाषा हिंदी-अंग्रेजी-उर्दू में जारी किए जाते रहे हैं। प्रदेश सरकार चाहती है कि संस्कृत बोलने और जानने वाले लोगों तक सरकार की उपलब्धियां पहुंचें। जैसे हिंदी-अंग्रेजी-उर्दू भाषा भाषियों को उनकी भाषा में सरकार के काम-काज की जानकारियां मिलती रही हैं, उसी तरह संस्कृत बोल-पढ़ रहे लोगों तक भी सरकार अपनी बात पहुंचाना चाहती है क्योंकि यह सरकार उनकी भी है। उन्हे भी ये लगना चाहिए कि शासन उनका भी है और उनकी भाषा में सब बताया जा रहा है।
सरकारी सूत्र बताते हैं कि अभी तो ये शुरुआत है। इसकी धीरे-धीरे लोगों को जानकारी होगी। सरकार की यह भी कोशिश है कि वाराणसी में संस्कृत विश्वविद्यालय में इसका प्रचार-प्रसार कराया जाए। वहां लगभग पचास हजार छात्र सम्बद्ध विभिन्न कॉलेजों में संस्कृत पढ़ रहे हैं। यदि उन तक सरकार अपना नया मंतव्य साझा करने में सफल रही तो यह संस्कृत भाषा के लिए एक बड़ी उपलब्धि होगी। मातृभाषा संस्कृतियों की जड़ होती है। आर्थिक विकास भाषाओं की बलि ले रहा है। इस समय हमारे देश में लगभग चार सौ क्षेत्रीय भाषाएं लुप्त होने के कगार पर हैं। सबसे ज्यादा खतरा छोटे छोटे आदिवासी समुदायों की भाषा पर मंडरा रहा है। ऐसी कई भाषाएं हैं, जो सिर्फ बोली जाती हैं। उन्हें अभी तक लिपिबद्ध नहीं किया गया है। ऐसी ही एक भाषा है गोंडी। छह राज्यों में करीब 1.2 करोड़ लोग इसे बोलते हैं लेकिन अभी तक गोंडी के लिए कोई मानक लिपि नहीं है।
प्राचीन काल से ही संस्कृ।त को सभी भाषाओं की जननी कहा जाता है। पुरा काल में हमारे देश में संस्कृीत को राष्ट्री य भाषा के रूप में मान्यभता प्राप्ता थी। जैसे-जैसे बाहरी आक्रांता देश के शासक बनते गए, संस्कृत भाषा से भी लोग दूर होते चले गए। आज भी भारत के कई हिस्सोंा में संस्कृात का बोलबाला है, जबकि उत्तराखंड में इसे आधिकारिक भाषा की मान्यतता प्राप्ति है। इस भाषा में विश्व की समस्त भाषाओं से ज्यारदा शब्दइ समाहित हैं। एक अनुमानित गणना के मुताबिक संस्कृयत में लगभग 102 अरब 78 करोड़ 50 लाख शब्दय विद्यमान हैं।
फिलहाल, नासा रिसर्च सेंटर में संस्कृत भाषा की लगभग साठ हजार पांडुलिपियां उपलब्ध हैं। कर्नाटक के गांव मुत्तुनर में आज भी लोग संस्कृषत भाषा में ही आपस में बातचीत करते हैं। आज जर्मनी में संस्कृनत बोलने वालों की सर्वाधिक मांग है। वहां की लगभग 14 यूनिवर्सिटी में संस्कृंत पढ़ाई जाती है। नासा के मुताबिक, वर्ष 2034 तक संस्कृतभाषी सुपर कंप्यूभटर भी तैयार हो जाएंगे। भाषा वैज्ञानिकों का मानना है कि कंप्यूंटर सॉफ्टवेयर की दृष्टि से संस्कृत सर्वश्रेष्ठस भाषा है।
दक्षिण भारत के जिन राज्यों में संस्कृत भाषा प्रचलित है, उनसे भी योगी सरकार संस्कृत में प्रेस नोट के लिए संपर्क कर रही है। भारत में मातृभाषा के रूप में दर्ज 22 भाषाओं में संस्कृत सबसे आखिरी नंबर पर आती है। वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक कुल 24,821 देशवासियों की मातृभाषा संस्कृत है, जबकि उससे पहले वर्ष 2001 में देश के मात्र 14,135 लोगों ने संस्कृत को अपनी मातृभाषा बताया था। वही उत्तर प्रदेश में मात्र 3,062 लोग ही अपनी मातृभाषा संस्कृत बताते हैं। सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी के कुलपति प्रो. राजाराम शुक्ल का मानना है कि यूपी सरकार के इस कदम से संस्कृत भाषा का प्रचार-प्रसार होगा और संस्कृत पढ़ने वालों की संख्या भी बढ़ेगी। उनका विश्वविद्यालय इसमें पूरा सहयोग करेगा।