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खतरे की घंटी: भारत में तेजी से बढ़ रहा है बच्चों में ब्रेन ट्यूमर

भारत में हर साल 40,000-50,000 व्यक्तियों में मस्तिष्क कैंसर का मूल्यांकन किया जाता है, जिनमें 20 प्रतिशत बच्चे होते हैं...

खतरे की घंटी: भारत में तेजी से बढ़ रहा है बच्चों में ब्रेन ट्यूमर

Tuesday June 13, 2017 , 7 min Read

"विश्वभर में प्रतिदिन ब्रेन ट्यूमर से पीड़ित होने वाले पांच सौ से अधिक नए मामलों की जानकारी प्राप्त होती है। ब्रेन ट्यूमर बीमारी की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है, कि हर साल 40-50 हजार लोग इसके मरीज बनते हैं, जिनमें से सिर्फ तीन प्रतिशत लोग ही बच पाते हैं और जो बात सबसे ज्यादा परेशान करने वाली है, वो ये है कि इनमें सबसे ज्यादा प्रतिशत बच्चों का होता है..."

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ब्रेन ट्यूमर से बचने का एक ही उपाय है और वो है जागरुकता...a12bc34de56fgmedium"/>

ये बात कई बार सिद्ध हुई है कि रेडिएशन पेनिट्रेशन से ब्रेन ट्यूमर पनपना कोई बड़ी बात नहीं है। एडल्ट्स में तो फिर भी इसकी आशंका कम रहती है लेकिन बच्चों को ये रडिएशन जबरदस्त नुकसान पहुंचा सकते हैं। जितनी कम उम्र का बच्चा उतना गहरा नुकसान, तो क्यों न सरकार के जगाने का इंतजार किए बगैर हम पहले ही सतर्कता बरत लें।

भारत में हर साल 40,000-50,000 व्यक्तियों में मस्तिष्क कैंसर का मूल्यांकन किया जाता है। इनमें से 20 प्रतिशत बच्चे होते हैं। एक साल पहले यह आंकड़ा पांच प्रतिशत के आसपास था। अधिकांश ट्यूमर से पीड़ित होने वाले रोगियों की संख्या ट्यूमर की तुलना में ब्रेन मेटास्टेसिस के कारण अधिक होती है। यह बच्चों में कैंसर का सबसे सामान्य प्रकार होता है। ब्रेन ट्यूमर बेहद घातक है, जिसकी वजह से मरीज बीमारी का पता चलने के 9 से 12 महीनों के भीतर मौत का शिकार हो जाता है। भारत में ब्रेन ट्यूमर के रोगियों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। बचपन में होने वाले कैंसर के अध्ययन के अनुसार, ब्रेन ट्यूमर ज्यादातर लड़कियों में पाया जाता है। भारत सरकार ने ब्रेन ट्यूमर की रोकथाम, स्क्रीनिंग, रोग का जल्दी पता लगाने और उपचार प्रदान करने के लिए राष्ट्रीय कैंसर नियंत्रण कार्यक्रम की शुरूआत भी की है। डॉक्टरों की मानें, तो इससे बचने का एक ही उपाय है, और वो है जागरूकता

ब्रेन ट्यूमर 120 प्रकार के हैं और पीड़ितों के बचने की 3 प्रतिशत दर स्थिति की गंभीरता को दर्शाती है। । पहले के मुकाबले इस बीमारी से पीड़ित बच्चों की संख्या बढ़ी है। इसका कारण खानपान की चीजों में रसायन और कीटनाशक का अत्यधिक इस्तेमाल हो सकता है। इसके अलावा मोबाइल का अधिक इस्तेमाल भी ब्रेन ट्यूमर का कारण बन सकता है। डॉक्टरों का कहना है कि मस्तिष्क में नियमित दर्द रहने पर अक्सर लोग उसे माइग्रेन समझकर नजरअंदाज कर देते हैं। लेकिन इस बीमारी से बचाव के लिए जांच जरूर कराना चाहिए।

'एम्स' के न्यूरोलॉजी डिपार्टमेंट ने एक सर्वे कराया तो पाया कि सेलफोन के इस्तेमाल से ब्रेन ट्यूमर का खतरा 1.33 गुना बढ़ जाता है। पहले भी सेलफोन से संभावित बुरे प्रभावों पर कई देशों में शोध किए गए हैं, लेकिन वहां भी इनके नतीजों पर सरकारों का रुख उत्साहजनक नहीं दिखा। कैनेडियन ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन (सीबीसी) ने अपने सर्वे में पाया, कि अगर सेलफोन को जेब, ब्रा और पेंट में रखा जाए तो इससे शरीर को मिलने वाले रेडिएशन मानक स्तरों से कहीं ज्यादा होते हैं, फिर फोन किसी भी नामी कंपनी का ही क्यों न हो।

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ब्रेन ट्यूमर क्या है?

जब शरीर में कोशिकाओं की अनावश्यक वृद्धि होती है, लेकिन शरीर को इन अनावश्यक वृद्धि वाली कोशिकाओं की आवश्यकता नहीं होती हैं। ब्रेन के किसी हिस्से में पैदा होने वाली असामान्य कोशिकाओं की वृद्धि ब्रेन ट्यूमर के रूप में प्रकट होती हैं। ट्यूमर मुख्यत: दो प्रकार का होता है, जैसे कि- घातक ट्यूमर और सौम्य ट्यूमर। ब्रेन ट्यूमर किसी भी उम्र में हो सकता है। ब्रेन ट्यूमर होने के सही कारण स्पष्ट नहीं है। ब्रेन ट्यूमर के लक्षण उनके आकार, प्रकार और स्थान पर निर्भर करते हैं।

इन लक्षणों को न करें नजरअंदाज

अक्सर सिर में दर्द हो, अचानक मिर्गी के दौरे पड़ें, बच्चों की आंखों की रोशनी कमजोर होने लगे, बार-बार चश्मे का नंबर बदलने की जरूरत पड़े या फिर बच्चों के कान में परेशानी जैसी समस्या हो तो यह ब्रेन ट्यूमर के लक्षण हो सकते हैं। यदि सिर में लगातार तेज दर्द होता है। सिर के आकार में कोई बदलाव आ रहा है तो सावधान हो जाइए। ये ब्रेन ट्यूमर के लक्षण हो सकते हैं। ऐसा होने पर तुरंत डाक्टर को दिखाएं।

ब्रेन ट्यूमर, कैंसर का ही एक प्रकार है। जो मस्तिष्क के अंदर होता है। ब्रेन ट्यूमर 2 माह के बच्चे से लेकर 80 साल तक किसी भी उम्र में हो सकता है। 20 से 40 वर्ष की आयु वाले ब्रेन ट्यूमर अमूमन बिना कैंसर वाले ट्यूमर होते हैं। शुरूआती स्टेज में इसका सफल उपचार संभव होता है। डाक्टरों के अनुसार सभी ब्रेन ट्यूमर कैंसर नहीं होते और अधिकतर ब्रेन ट्यूमर मस्तिष्क के बाहर नहीं फैलते। ये कुछ ऐसे लक्षण होते हैं, जिनसे ब्रेन ट्यूमर का शक होता है, ये लक्षण अन्य तकलीफों में भी हो सकते हैं। इसलिए इन लक्षणों के चलते न्यूरोलॉजिस्ट और न्यूरो सर्जन से जांच करानी चाहिए। ताकि समय रहते सीटी स्कैन और एमआरआई के माध्यम से इलाज शुरू किया जा सके। ब्रेन ट्यूमर का इलाज अधिकतर ऑपरेशन के द्वारा किया जाता है। इनमें से बहुत से ट्यूमर दूरबीन और नाक के रास्ते से भी निकाले जा सकते हैं। ऑपरेशन के बाद ट्यूमर की जांच की जाती है। उसे एक से चार तक ग्रेडिंग में बांटा जाता है। जांच से ब्रेन ट्यूमर के आगे का इलाज रेडियो थेरेपी और कीमोथेरेपी से किया जाता है।

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जोखिम के कारण

ब्रेन ट्यूमर आनुवांशिक हो सकता है। हालांकि ऐसा बहुत ही कम मामलों में होता है। (सभी प्रकार के कैंसर में से 10 प्रतिशत से भी कम मामलों में यह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जाता है)। एक व्यक्ति के जीन की बनावट कैंसर का कारण बन सकती है। ज्यादातर प्रकार के ब्रेन ट्यूमर उम्र के साथ बढ़ते हैं। कुछ चुनिंदा प्रकार के रसायनों (कार्सियोजेनिक) के प्रयोग से ब्रेन कैंसर का जोखिम बढ़ता है। जो लोग आयनाइजिंग रेडिएशन के संपर्क में रहते हैं उनमें ब्रेन ट्यूमर का खतरा अधिक रहता है। प्राथमिक जांच से पता चला है कि सेलफोन से निकलने वाली रेडियोफ्रिक्वेंसी ऊर्जा ब्रेन ट्यूमर का कारण बन सकती है। हालांकि इसके परिणाम नियत नहीं हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने एक मानक तय किया है जिसके मुताबिक सभी ट्यूमर्स को वर्गीकृत किया जाता है। ट्यूमर्स को उनके पैदा होने की कोशिकाओं और 1 से 4 के बीच के अंक के मुताबिक एक नाम दिया जाता है। इस संख्या को ग्रेड नाम दिया जाता है और यह दर्शाता है कि कोशिकाएं कितनी तेजी से विकसित और फैल सकती हैं। उपचार की योजना बनाने और परिणाम का अंदाजा लगाने के लिए यह एक महत्वपूर्ण सूचना है।

ब्रेन ट्यूमर्स की जांच करने के लिए कई इमेजिंग परीक्षण कराए जाते हैं

सीटी स्कैन, पीईटी स्कैन, सेरेब्रल एंजियोग्राम, एमआरआई, एमआरआई स्पेक्ट्रोस्कोपी, एमआरआई कॉन्ट्रास्ट, परफ्यूजन एमआरआई, फंक्शनल एमआरआई।

ब्रेन ट्यूमर से कैसे लड़ा जाए?

दिक्कत यह है कि इस बीमारी के होने पर उसके लक्षण जल्दी नहीं दिखते। यह देखा गया है कि ब्रेन ट्यूमर से पीड़ित 50 फीसद मरीजों को एक साल बाद बीमारी का पता चलता है। 12-13 फीसद मरीजों को तो बीमारी होने के पांच साल बाद पता चलता है। करीब 10 फीसद मरीजों को तो 10 साल बाद जानकारी मिलती है। ऐसे में मस्तिष्क में दर्द होने पर लोग उसे माइग्रेन समझकर दवा लेते रहते हैं। यदि दवा लेने के बाद भी माइग्रेन ठीक न हो तो सीटी स्कैन जरूर कराना चाहिए ताकि ब्रेन ट्यूमर होने के संदेह को दूर किया जा सके। ब्रेन ट्यूमर के इलाज के लिए सर्जिकल उपायों में शामिल है- माइक्रोसर्जरी, एंडोस्कोपिक सर्जरी, इमेज गाइडेड सर्जरी, इंटराऑपरेटिव मॉनिटरिंग। सर्जरी के साथ रेडिएशन थेरेपी, कीमोथेरेपी और टारगेटेड थेरेपी का प्रयोग उपचार के विकल्प के तौर पर किया जा सकता है।

-प्रज्ञा श्रीवास्तव

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