Brands
Discover
Events
Newsletter
More

Follow Us

twitterfacebookinstagramyoutube
ADVERTISEMENT
Advertise with us

क्रांतिकारियों के केस बिना कोई फीस लिए हुए लड़ने वाले 'देशबंधु' चित्तरंजन दास के जन्मदिन पर विशेष

क्रांतिकारियों के केस बिना कोई फीस लिए हुए लड़ने वाले 'देशबंधु'  चित्तरंजन दास के जन्मदिन पर विशेष

Saturday November 05, 2022 , 4 min Read

चित्तरंजन दास, जिन्हें ‘देशबंधु’ या सीआर दास (C. R. Das) के नाम से जाना जाता है, भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिक कार्यकर्ता और वकील थे. अपने कानूनी करियर के दौरान, ‘अलीपुर षड़यंत्र काण्ड’ (1908) के अभियुक्त अरबिंदो घोष पर चल रहे राजद्रोह के केस में घोष का सफलतापूर्वक बचाव किया और फिर ‘मानसिकतला बाग षड्यंत्र’ के मुकदमे ने तो कलकत्ता हाईकोर्ट में इनकी धाक अच्छी तरह जमा दी और इन्हें काफी प्रसिद्धि मिली. अरबिंदो घोष बाद में दार्शनिक बन गए, जिनका आश्रम पुडूचेरी में है. लेकिन चित्तरंजन दास ने मुकदमा लड़ना ज़ारी रखा. दास राष्ट्रवादियों और क्रांतिकारियों के केस बिना कोई फीस लिए हुए लड़ते थे. इन मुकदमों की पैरवी के लिए उन्होंने अपना सब कुछ होम कर दिया था.


कलकत्ता एचसी में बैरिस्टर के रूप में अभ्यास करने के दौरान कई और राष्ट्रवादियों और देशभक्तों की तरह ये भी अपना कामकाज छोड़ ‘असहयोग आंदोलन’ में कूद पड़े. दास ने अपनी चलती हुई वकालत छोड़कर ‘असहयोग आंदोलन’ में भाग लिया और पूर्णतया राजनीति में आ गए. इस दौरान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सिद्धान्तों का प्रचार करते हुए सारे देश का भ्रमण किया. जब असहयोग आंदोलन चल रहा था तब इंडिया के कॉलेज और स्कूलों में पढ़ने वाले कई विद्यार्थियों ने कॉलेज और स्कूल जाना बंद कर दिया था. जिसके बाद कॉलेज और स्कूल छोड़ने वाले स्टूडेंट की एजुकेशन के लिए बांग्लादेश के ढाका में “राष्ट्रीय विद्यालय” की स्थापना करने का काम चित्तरंजन दास ने किया था.


कलकत्ता में वकालत करने से पहले चित्तरंजन दस 1890 में आईसीएस (Indian Civil Services) की पढ़ाई पूरी करने के लिए इंग्लैंड गए लेकिन परीक्षा में पास नहीं होने के कारण कानूनी पेशे में शामिल होने का विकल्प चुना और लंदन में ‘द ऑनरेबल सोसाइटी ऑफ द इनर टेम्पल’ में कानून का अभ्यास किया. इंग्लैंड में अपने कार्यकाल के दौरान, दास ने दादाभाई नौरोजी के लिए सेंट्रल फिन्सबरी से ‘हाउस ऑफ कॉमन्स’ में एक सीट जीतने के लिए प्रचार भी किया था. बता दें, नौरोजी 1892 में वेस्टमिंस्टर का हिस्सा बनने वाले पहले एशियाई थे.


5 नवंबर, 1870 को बंगाल में जन्मे चित्तरंजन दास अपने छोटी राजनीतिक कार्यकाल में बहुत सक्रिय रहे. चितरंजन दास ब्रह्म समाज के कट्टर समर्थक रहे, बाद में वैष्णव हो गए थे.  वे एक कुशल पत्रकार के तौर पर भी जाने जाते थे. साल 1917 में पूरी तरह से राजनीति में आने के बाद एनी बेसेंट को अध्यक्ष बनाने में उनकी अहम भूमिका अदा किया था. अनुशीलन समिति के अध्यक्ष थे, अनुशीलन समिति सशस्त्र क्रांति के रास्ते भारत को आज़ादी दिलाने में यकीन रखती थी. वैष्णव साहित्य प्रधान पत्रिका ‘नारायण’ का वह संपादन भी करते रहे और अंग्रेजी पत्र ‘वंदेमातरम’ के प्रमुख सदस्य रहे.

‘स्वराज्य दल’ के मुखपत्र ‘फॉरवर्ड’ की जिम्मेदारी भी संभाली थी.


गांधी के नेत्रित्व में ‘असहयोग आंदोलन’ में देशबंधु सपत्नीक गिरफ्तार हुए जिसमें उन्हें छह महीने की सजा हुई. 1921 में जब देशबंधु जेल थे उन्हें अहमदाबाद अधिवेशन में कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया.


1922 में जेल से छूटने के बाद उन्होंने बाहर से आंदोलन करने के बजाए परिषदों के भीतर देश विरोधी नितियों के खिलाफ काम करने की नीति कि पैरवी की जिसका प्रस्ताव पास नहीं किया गया. जब कांग्रेस ने इनके ‘कौंसिल एंट्री’ प्रस्ताव को मानने से इनकार कर दिया तब इन्होने अध्यक्ष पद से त्यागपत्र देकर कांग्रेस में ही ‘स्वराज पार्टी’ की स्थापना की. दास इसके अध्यक्ष थे और मोतीलाल नेहरू सचिव.  पार्टी पूरी तरह शान्ति व कानून के माध्यम से स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए कटिबद्ध व समर्पित थी. चितरंजन दास साल 1924 से लेकर के साल 1925 तक कोलकाता महानगर पालिका के मेयर के पद पर रहे थे और यह ऐसा समय था जब इनके द्वारा स्थापित स्वराज्य पार्टी का कांग्रेस पर पूरा वर्चस्व था.


1925 में उनका स्वास्थ्य बिगड़ा और वे दार्जलिंग चले गए लेकिन उनका स्वास्थ्य बिगड़ता ही गया. 16 जून 1925 को तेज बुखार के कारण उन्होंने आख़िरी सांस ली. देशबंधु चितरंजन दास ने अपना घर और अपनी अन्य प्रॉपर्टी महिलाओं के विकास के लिए राष्ट्र के नाम अपनी मृत्यु के कुछ दिनों पहले ही कर दी थी.