खत्म होती कला को बचा रही हैं ये 93 वर्षीय कलाकार, प्रयासों के लिए इन्हे मिल चुका है पद्मश्री
बिहार के दरभंगा जिले के एक छोटे से गाँव से आईं गोदावरी दत्ता आज खत्म होती मिथिला कला को न सिर्फ सहेज रही हैं, बल्कि नए कलाकारों को इसे आगे ले जाने के लिए भी तैयार कर रही हैं।
दरभंगा जिले के बहादुरपुर गाँव की 93 वर्षीय मधुबनी कलाकार गोदावरी दत्ता कई प्रशंसाओं की महिला हैं। मिथिला कला में उनके अनुकरणीय योगदान के लिए 2019 में उन्होंने देश का चौथा सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार प्रतिष्ठित पद्म श्री पुरस्कार जीता।
गोदावरी ने द टेलीग्राफ को बताया।
“मिथिला कला एक पारंपरिक रूप है। यह कला पूर्वजों प्राप्त होती है। आमतौर पर माताएं अपनी बेटियों को यह सिखाती हैं, ताकि भविष्य में जरूरत पड़ने पर वो पेंट कर सकें।”
उनकी माता और गुरु सुभद्रा देवी मिथिला परंपराओं की अच्छी जानकार और कुशल कलाकार थीं, उन्होंने ही युवा गोदावरी को कला को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया।
गोदावरी, जिन्हें 2006 में राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल द्वारा 'शिल्प गुरु' की उपाधि से सम्मानित किया गया था, उन्होने 1980 के दशक में अपने कौशल को साझा करना शुरू किया। द बेटर इंडिया के अनुसार पिछले 35 वर्षों से उन्होंने भारत और विदेशों में कई शैक्षणिक संस्थानों का दौरा किया और छात्रों, शिक्षकों और कलाकारों समेत करीब 50,000 लोगों को यह कला रूप सिखाया है।
इसके अलावा उन्होंने बिहार के मिथिला गाँव की ग्रामीण महिलाओं को भी अपनी कला को बेचने के अवसर प्रदान करके उन्हें आर्थिक रूप से स्वतंत्र बनने में सक्षम बनाया है। इसके अलावा उन्होंने बालिका शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए मिथिला में एक ग्राम समिति बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
सहेज रही हैं कला
गोदावरी कला के लिए एक संग्रहालय स्थापित करके अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खत्म होती कला के रूप को लोकप्रिय बनाने के लिए अपना काम कर रही हैं। मिथिला संग्रहालय के निर्माण में सात साल का समय लगा है।
गोदावरी ने बताया,
“जापान का एक कलाकार हमसे मिथिला पेंटिंग का संग्रह लेता था। वह चित्रों को ले जाता और वहाँ प्रदर्शनियाँ आयोजित करता है। काम से प्रभावित होकर भारत के वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों ने उन्हें हमें जापान ले जाने के लिए कहा, जहाँ हम मिथिला पेंटिंग पर काम कर सकते थे।
मिथिला कला रूप को रामायण, महाभारत, घटनाओं, प्रकृति और यहां तक कि सांसारिक गतिविधियों की कहानियों के चित्रण के लिए जाना जाता है। गोदावरी विशेष रूप से अपनी कला में रंगों को शामिल करने के लिए प्राकृतिक रंगों और मदद के लिए बांस की छड़ियों का उपयोग करती हैं। खत्म होती कला रूप को जीवित रखने के अपने प्रयास में वह युवा पीढ़ी के कलाकारों पर भरोसा करती हैं।
वह आगे कहती हैं,
“परंपरा को जीवित रखने के लिए बहुत सारी चीजें करनी होती हैं और मैं ऐसा करने के लिए स्वस्थ रहना चाहती हूं। मिथिला कला अद्वितीय है और आने वाली पीढ़ी को भी इसे जीवित रखने के बारे में सोचना चाहिए।"