16 साल की उम्र में हुआ ऐसिड अटैक, आज देश के सबसे बड़े अस्पताल AIIMS में नर्सिंग ऑफिसर हैं यास्मीन मंसूरी
यह खौफनाक दास्तां है साल 2004 में तेजाब हमले में पीड़ित यास्मीन मंसूरी का। यास्मीन मंसूरी के पूरे परिवार पर 5-7 लोगों ने ऐसिड अटैक किया जिसके बाद से उनका जीवन एकदम से बदल गया। घर छोड़कर दिल्ली आना पड़ा, पढ़ाई छोड़नी पड़ गई, पूरा चेहरा जला और पहचान चली गई।
'साल 2004 की बात है जब मैं 16 साल की थी। मैं शामली (यूपी) स्थित अपने घर में पूरे परिवार के साथ छत पर सो रही थी। कुछ लोग अचानक आए और मेरे पूरे परिवार पर ऐसिड फेंककर चले गए। वहां से मेरी जिंदगी एकदम से बदल गई।'
यह खौफनाक दास्तां है साल 2004 में तेजाब हमले में पीड़ित यास्मीन मंसूरी का। यास्मीन मंसूरी के पूरे परिवार पर 5-7 लोगों ने ऐसिड अटैक किया जिसके बाद से उनका जीवन एकदम से बदल गया। घर छोड़कर दिल्ली आना पड़ा, पढ़ाई छोड़नी पड़ गई, पूरा चेहरा जला और पहचान चली गई।
यास्मीन मंसूरी अपने आप में एक प्रेरणा हैं। ऐसिड अटैक के समय वह 5वीं ड्रॉप आउट थीं और वहीं सिलाई करती थीं। अटैक के बाद दिल्ली आकर अपना इलाज कराते हुए उन्होंने अपनी पढ़ाई भी पूरी की। उन्होंने कॉरेस्पॉडेंस कोर्स के जरिए 10वीं और 12वीं की पढ़ाई पूरी की। उस समय वह अस्पताल से डिस्चार्ज होकर क्लास लेतीं और पढ़ाई करतीं। उन्हें पढ़ाई की ललक थी जिसके कारण उन्होंने साल 2010 में दिल्ली यूनिवर्सिटी से बीए प्रोग्राम में ग्रैजुएशन के लिए एडमिशन लिया।
साल 2011 में जामिया हमदर्द यूनिवर्सिटी से नर्सिंग के लिए एडमिशन लिया और 2014 में पूरी की। वहां पढ़ाई करने के बाद 2 साल तक जामिया हमदर्द में नौकरी की। फिर दिल्ली सरकार के जनकपुरी सुपर स्पेशिलिटी हॉस्पिटल में नर्सिंग ऑफिसर के तौर पर जॉइनिंग मिली। वह दिन उनके लिए बहुत खुशनुमा था। यास्मीन इतने पर आकर ही नहीं रुकीं।
वह लगातार तैयारी करती रहीं और भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) में नर्सिंग ऑफिसर के पद के लिए अप्लाई किया। वहां पर कोर्ट में केस के जरिए सिलेक्ट हुईं। अब वह 22 जनवरी (बुधवार) से एम्स में काम शुरू करेंगी। उनका जीवन संघर्षों, चुनौतियों और परेशानियों से भरा होने कारण काफी प्रेरणादायक है।
वह अपने दम पर सिर्फ पद के लिए नहीं बल्कि ऐसिड अटैक की पीड़ितों के लिए दिल्ली हाई कोर्ट में लड़ाई लड़ रही हैं। यास्मीन को साल 2017 में विश्व दिव्यांग दिवस 3 दिसंबर को राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद से बेस्ट एंप्लॉयी अवॉर्ड फॉर डिसेबल्ड पीपल का अवॉर्ड भी मिला है।
हाई कोर्ट में केस लड़ा और फिर मिली एम्स में नौकरी
दिसंबर 2016 में भारत सरकार दिव्यांगों के लिए आरक्षण वाला कानून लेकर आई जिसका नाम Rights of Persons With Disabilities Act, 2016 (RPWD Act) था। पहले इसमें सिर्फ 7 श्रेणी के विकलांगों को शामिल किया गया था। बाद में इसमें 21 श्रेणी शामिल की गईं जिनमें एक ऐसिड अटैक पीड़ितों को भी शामिल किया गया।
इस कानून के तहत हर सरकारी नौकरियों में दिव्यांगों को 4% आरक्षण मिलता है। हाल ही में एम्स ने नर्सिंग ऑफिसर के लिए वेकेंसी निकाली थी जिसमें दिव्यांग श्रेणी में केवल 1 पैर से विकलांग लोगों को ही योग्य माना जा रहा था।
इसी के खिलाफ यास्मीन ने कोर्ट में केस लड़ा और हाई कोर्ट के निर्णय के बाद अब एम्स ने अपनी वेकेंसी में ऐसिड अटैक विक्टिम्स को भी दिव्यांग माना है।
हाई कोर्ट ने एम्स को निर्देशित किया कि अपने स्तर पर वह यास्मीन को नौकरी का निर्णय करे। हाल ही में एम्स ने उन्हें जॉइनिंग दी है।
इस केस में यास्मीन का पक्ष एडवोकेट ज्ञानंत और एडवोकेट शमशाद ने रखा। इसके लिए दोनों ने कोई शुल्क नहीं लिया। पूरी लड़ाई में वह अपने दोस्त एहतशाम को भी धन्यवाद देती हैं।
'मरीजों की हालत को मैं अच्छे से समझती हूं'
योर स्टोरी से बात करते हुए वह कहती हैं कि
'नर्सिंग ऑफिसर बनने की प्रेरणा मुझे सफदरगंज अस्पताल में अपने इलाज के दौरान मिली। एक नर्स का काम महज ड्रेसिंग करना, इंजेक्शन लगाना नहीं होता। उनका काम होता है मरीज की फीलिंग को समझना और उनके दर्द को महसूस करना। मेरी कोशिश रहेगी कि नर्सिंग ऑफिसर के तौर पर मैं मरीजों के दर्द को अच्छे से समझूं और उनके दर्द को फील करूं। मुझे यकीन है कि मैं ऐसा करूंगी। मैंने दर्द सहा है, जख्म झेले हैं, मैं मरीजों के दर्द को अच्छे से समझती हूं।'
जल गया बहन का चेहरा और आंख
वह बताती हैं कि वह जॉइंट फैमिली में रहती हैं। वे 6 भाई-बहन हैं। जिस समय हमला हुआ तो चाचा के परिवार के साथ छत पर सो रही थीं। केवल यास्मीन ही नहीं बल्कि उनकी बहन आसमा मंसूरी भी इस तेजाब हमले में झुलस गई थीं। उनका चेहरा और आंखें जल गईं। हालांकि उन्होंने भी हिम्मत नहीं हारी और आज एक प्राइवेट कंपनी में काम कर रही हैं। किस्मत थी कि उस समय पिताजी उनके घर पर नहीं थे वरना वह भी हमले में झुलस जाते।
'छपाक' के विरोध पर बोलीं यास्मीन
हाल ही में तेजाब हमले में पीड़ित लक्ष्मी अग्रवाल के जीवन पर आधारित दीपिका पादुकोण की फिल्म छपाक रिलीज हुई। फिल्म रिलीज होने से दो दिन पहले ही दीपिका जेएनयू चली गईं और इसके बाद दर्शकों के एक धड़े ने फिल्म का बायकॉट कर दिया। इसके बारे में बात करते हुए यास्मीन कहती हैं,
'छपाक का विरोध करने वाले एकदम मूर्ख लोग हैं। आप किसी ऐक्टर की ओर क्यों देख रहे हैं? आप देखिए कि फिल्म किस व्यक्ति और किस मुद्दे पर बनी है। एक ऐसा मुद्दा जिस पर बहुत पहले फिल्म बननी चाहिए थी, उस पर अब फिल्म बनी है और उसका विरोध किया जा रहा है। यह बहुत हास्यास्पद है।'
जारी रहेगी लड़ाई
योर स्टोरी से बात करते हुए वह कहती हैं,
'यह लड़ाई अकेले की नहीं है। पूरे समाज की बात है। ऐसा नहीं है कि मैं एम्स में नौकरी करने लगी तो मैं भूल जाऊंगी। मैं आखिर तक मेरे जैसी पीड़िताओं के लिए लड़ूंगी और उन्हें उनके अधिकारों के लिए जागरूक करूंगी। कई महिलाओं को पता तक नहीं है कि उन्हें सरकारी नौकरियों में रिजर्वेशन मिलता है। मैं चाहती हूं कि ऐसे हमलों में पीड़ित महिलाओं को सरकारी योजनाओं का अधिक से अधिक लाभ मिले।'
तेजाब की बिक्री पर बोलीं यास्मीन
वह कहती हैं,
"तेजाब की बिक्री पर रोक लगी हुई है। इससे चीजें ठीक भी हुई हैं लेकिन पूरी तरह से खत्म नहीं हुईं। आज भी लोग कहीं ना कहीं से तेजाब लाकर अपनी रंजिश निकालने के चक्कर में जिंदगियां बर्बाद कर देते हैं। मैं सरकार से कहना चाहूंगी कि ऐसे लोगों के खिलाफ कड़े से कड़ा कानून लाए और हमला करने वालों को सजा दी जाए ताकि आगे कोई भी हमला करने से पहले 10 बार सोचे।"
वहीं युवाओं से वह कहती हैं कि अगर कोई लड़का महज शादी से इनकार करने पर किसी लड़की पर ऐसिड अटैक करता है तो वह उस लड़की से प्यार करता ही नहीं था। यह एक गंदी सोच वाले लोगों का काम है। ऐसा कोई प्यार करने वाला कर ही नहीं सकता। चीजों को सही करें और कभी किसी लड़की की जिंदगी बर्बाद ना करें।
फिलहाल यास्मीन इंडिया विज्डम फाउंडेशन नाम के एक एनजीओ के साथ जुड़ी हैं जो बच्चों की शिक्षा के लिए काम कर रहा है।