क्यों घर-घर जाकर दूध बांटती है ये मेयर?
कहते हैं दिन बदलते देर नहीं लगती। दिन अच्छे हों तो बुरे दिन आते वक्त नहीं लगता और दिन बुरे हों तो अच्छे दिन आते भी वक्त नहीं लगता, लेकिन सराहनीय वही है, जो अपने बदलते दिनों में अपनी पहचान को खत्म करने की कोशिश नहीं करता। क्योंकि वो जानता है, आज उसके साथ जो कुछ भी अच्छा हो रहा है उसमें उसके बुरे दिनों का भी योगदान है। ऐसी ही एक कहानी है अजिताय विजयन की। माना कि आज की तारीख में अजिता केरल के त्रिशूर जिले की मेयर हैं, लेकिन एक वक्त ऐसा भी था जब वो दरवाजे दरवाजे जाकर लोगों को दूध के पैकिट बांटती थी। पिछले 18 सालों से अजिता ये काम कर रही हैं और मेयर बनने के बाद भी उन्होंने अपने इस काम को छोड़ा नहीं।
केरल के त्रिचूर जिले में हर रोज़ सुबह अपनी स्कूटी पर सवार होकर अजिता घर-घर में दूध पहुंचाने का काम करती हैं और यही वो समय होता है, जब अजिता वहां के लोगों से उनके सुख दुख, दिक्कत परेशानियों और ज़रूरतों की जानकारी भी लेती हैं। अजिता पिछले साल त्रिशूर की मेयर निर्वाचित हुई थीं। महापौर के बड़े पद पर बैठने के बाद भी अजीता ने दूध पहुँचाने का काम बंद नहीं किया।
दूध बेचने का काम अजिता विजयन ने 18 साल पहले अपने घर की आर्थिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए किया था। घर का खर्च आसानी से चल सके, इसलिए अजिता ने पति की आय में मदद करने के लिए ये काम शुरु किया था, जो कि आज 18 साल बाद भी उसी तरह जारी है। अजिता का दिन सुबह 4 बजे से ही शुरू हो जाता है। सुबह दूध के पैकिट रखकर वे अपनी स्कूटी से निकल पड़ती हैं और करीब 150-200 घरों में दूध पहुंचाने का काम करती हैं। वो कहती हैं, "मेरी सुबह 4.30 बजे शुरू होती है। 5.30 बजे से लेकर मैं दो से तीन घंटे में दूध की आपूर्ति पूरी करती हूँ। निगम कार्यालय सुबह 9.30 बजे शुरू होता है और फिर मैं ऑफिस के कामों में लग जाती हूं। लोगों से जुड़ने का यह मेरे लिए बेहतर तरीका है। मैं जब हर सुबह लोगों से मिलती हूं तो उनमें से कुछ लोग अपनी समस्याओं और चिंताओं को मुझसे साझा भी करते हैं, जो कि मुझे तुरंत निर्णय लेने में सहायक है।"
अजिता विजयन जब जिले की महापौर बनीं, तो उनके ग्राहकों को लगा अब वो दूध के पैकिट पहुंचाने का काम बंद कर देंगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और अजिता ने अपने काम को जस का तस जारी रखा। अजिता का कहना है, कि 'पार्टी ने जो उनके प्रति भरोसा दिखाया है, उसके लिए वो भी पार्टी की आभारी हैं, लेकिन महापौर का पद अस्थायी है।' यही वजह है कि अजिता ने दूध बेचने का अपना काम बंद नहीं किया और ना ही वो इसे बंद करेंगी। उनके अनुसार पार्टी में रहना महापौर बने रहना अस्थायी है, लेकिन दूध बेचना उनकी कमाई का एकमात्र जरिया है, जो हमेशा उनके साथ रहेगा। साथ ही इस काम को करते हुए उन्हें लोगों से जुड़ने का मौका मिलता है और उनकी समस्याओं के बारे में भी पता चलता है। सुबह दूध बांटने के काम में अजिता के कुछ घंटे ही लगते हैं, इसके बाद वे सारा दिन महापौर के रूप में अपना काम करती हैं।
गौरतलब है, कि अजिता विजयन ने 1999 में अपनी राजनितिक पारी शुरू की थी और वे कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (सीपीआई ) से जुड़ीं और दो बार 2005 और 2015 में महापौर चुनी गईं। पहले साल 2005 में और उसके बाद 2015 में वे सभासद बनीं और फिर 2018 में त्रिशुर जिले की मेयर के रूप में लोगों ने उनमें अपना विश्वास दिखाया।
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