महज 18 साल की उम्र में 19 हज़ार बच्चों के लिए विज्ञान को बनाया आसान, मिल चुका है प्रतिष्ठित डायना मेमोरियल अवार्ड
Ranjana Tripathi
Tuesday July 28, 2020 , 5 min Read
अनिकेत अब आगे इंजीनियरिंग की पढ़ाई करना चाहते हैं, जिससे वो और अधिक सीखकर इस पहल को अधिक प्रभावी ढंग से आगे ले जा सकें।
देश में शुरुआत से ही पारंपरिक शिक्षा को व्यापक स्तर पर अपनाया जाता रहा है और बेहद कम ऐसे संस्थान हैं जो अपने छात्रों को विज्ञान जैसे विषयों पर सीधे प्रयोगों के माध्यम से शिक्षित करने का काम करते हैं। इस बीच दिल्ली के 18 वर्षीय अनिकेत गुप्ता छात्रों के लिए विज्ञान जैसे विषयों को रुचिकर बनाने की दिशा में अपनी एक बड़ी पहल 'इंडियन साइंस एंड टेक्नालजी कैम्पेन' के साथ आगे बढ़ रहे हैं।
अनिकेत का मानना है कि छात्रों को एक विषय के तौर पर विज्ञान महज पारंपरिक तरीकों से नहीं समझाई जा सकती है। ऐसा करने से विज्ञान जैसे दिलचस्प विषय पर भी उनकी रुचि कम हो जाती है।
अनिकेत कहते हैं,
“विज्ञान देखने और महसूस करने की वस्तु है, लेकिन वर्तमान में हालात जुदा हैं। हम देखकर जल्दी सीखते हैं, लेकिन मौजूद पारंपरिक शिक्षा प्रणाली के जरिये ऐसा संभव नहीं हो पा रहा है।”
इस समस्या को समझते और इसके समाधान के लिए कदम उठाते हुए अनिकेत ने पहल की शुरुआत की है। इस पहल के तहत अनिकेत छोटे-छोटे प्रयोगों के जरिये छात्रों को विज्ञान के कॉन्सेप्ट को समझाने का काम करते हैं।
विज्ञान का उदाहरण देते हुए अनिकेत बताते है कि जब हमारे स्कूलों में शिक्षक को पत्तों के बारे में पढ़ाना होता है तो वे ब्लैकबोर्ड पर पत्ते का चित्र बनाते हैं, बजाय इसके कि वो वास्तविक पत्ते के जरिये उस जानकारी बच्चों के साथ साझा करें, इससे छात्रों के मन में और अधिक उत्सुकता उत्पन्न हो पाएगी।
कैसी रही शुरुआत?
अनिकेत ने जनवरी 2019 में इस पहल की शुरुआत की थी। अनिकेत के अनुसार जब शिक्षा को लेकर उन्होने इस तरह के एक बदलाव की शुरुआत की तो पहले कुछ शिक्षकों को यह पसंद नहीं आया कि कोई उनके पढ़ाने के तौर-तरीकों को बदलने की कोशिश कर रहा है। कुछ समय बाद जब बच्चे इसे लेकर उत्सुक हुए और उन्होने अपने शिक्षकों से सवाल करने शुरू किए और फिर जब शिक्षकों को भी यह महसूस हुआ कि यह पढ़ाई का एक बेहतर तरीका हो सकता है तब उन्होने इसे धीरे-धीरे इसे स्वीकार करना शुरू कर दिया।
अनिकेत की इस पहल को कई सरकारी और निजी स्कूलों में लागू किया गया है। प्रोजेक्ट के तहत हर क्लास के लिए सिलेबस स्पेसिफाइड होता है, जिसके आधार पर छात्रों को शिक्षित करने का काम किया जाता है।
अनिकेत शिक्षकों को भी इस दिशा में प्रशिक्षित करने का काम करते हैं। इस पर बात करते हुए वो कहते हैं,
“आखिरी में शिक्षकों को ही छात्रों को शिक्षित करना है, ये एक बड़ा बदलाव है और हमने इसमें शिक्षकों को भी शामिल करते हुए उन्हे प्रशिक्षित किया है।”
अनिकेत अपनी इस पहल के साथ दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र के 25 सरकारी और 3 निजी स्कूलों के छात्रों को शिक्षित करने का काम कर चुके हैं।
मिला समर्थन
अनिकेत कहते हैं कि जब वो इस विचार को लेकर पहली बार अपने ही स्कूल के प्रिंसिपल के पास गए तो उन्होने उनके प्रोजेक्ट में दिलचस्पी दिखाई और अनिकेत से स्कूल की सभी कक्षाओं में इसे लागू करने के लिए कहा। इस दौरान अनिकेत के शिक्षक भी उनके साथ खड़े थे।
अनिकेत कहते हैं,
“हमारे अपने स्कूल के साथ ही प्रिंसिपल सर ने मुझे अन्य स्कूलों तक भी पहुँचने में मदद की, जिससे यह प्रोजेक्ट बड़ी संख्या में छात्रों तक पहुँच सका, इसके लिए मैं उनका आभार व्यक्त करना चाहूँगा।”
अनिकेत के साथ 600 से अधिक वॉलांटियर्स की एक टीम भी काम कर रही है। इन वॉलांटियर्स में इंजीनियरिंग छात्र भी शामिल हैं, जो सक्रिय तौर पर इसमे सहयोग करते हैं। टीम के सदस्य 5वीं कक्षा से लेकर 10 वीं तक के छात्रों को शिक्षित करते हैं, लेकिन जल्द ही अनिकेत 12वीं तक के छात्रों के लिए काम करना चाहते हैं।
इस प्रोजेक्ट की शुरुआत के साथ ही अनिकेत की उनके माता-पिता का भी समर्थन मिलना शुरू हो गया, हालांकि पहले इसके भविष्य को लेकर वो थोड़ा सा अनिश्चित थे, लेकिन जल्द ही वे समझ गए और सब सामान्य हो गया।
मिल चुका है प्रतिष्ठित अवार्ड
अनिकेत ने अपनी पहल के जरिये अब तक 19 हज़ार से अधिक छात्रों को शिक्षा के इस नए स्वरूप से रूबरू कराया है, जिससे उन छात्रों में विज्ञान के प्रति दिलचस्पी काफी हद तक बढ़ी है।
अनिकेत को उनके काम के लिए डायना मेमोरियल अवार्ड भी मिल चुका है। यह अवार्ड राजकुमारी डायना की याद में उनके बेटों द्वारा समाज में बदलाव लाने का काम कर रहे लोगों को दिया जाता है। इस अवार्ड को पाने वालों की उम्र 9 से 25 साल के बीच होती हैं। इस खास पहल के लिए अनिकेत को दिल्ली सरकार से भी समर्थन हासिल हुआ है।
कोरोना प्रभाव और भविष्य
कोरोना वायरस महामारी का प्रभाव अनिकेत के इस काम पर भी पड़ा है। अनिकेत के अनुसार इस समय उनके काम की रफ्तार काफी कम हो गई है। लॉकडाउन के दौरान अनिकेत ने एक नया इनिशिएटिव ‘द टेल ऑफ ह्यूमनकाइंड’ शुरू किया है, जिसके तहत वह मेंटल हेल्थ की दिशा में काम कर रहे हैं।
अनिकेत बच्चों को साथ लेकर घर पर मौजूद समान से प्रयोग भी करवाते हैं, जिससे बच्चे मानसिक रूप से खुद को स्वस्थ महसूस करते हैं।
फिलहाल अनिकेत अपनी पहल के साथ दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में ही काम का रहे हैं, लेकिन निकट भविष्य में वे देश के अन्य राज्यों में इस प्रोजेक्ट को लेकर जाना चाहते हैं। अनिकेत का कहना है कि वे शिक्षा के साथ बच्चों को स्किल्स भी देना चाहते हैं। अनिकेत अब आगे इंजीनियरिंग की पढ़ाई करना चाहते हैं, जिससे वो और अधिक सीखकर इस पहल को अधिक प्रभावी ढंग से आगे ले जा सकें।