टाटा ट्रस्ट की 'अंतरण' मुहिम से कलाकार-शिल्पकार बन रहे आत्मनिर्भर, ख़ुद के बिज़नेस की कर रहे शुरुआत
ओडिशा के मणियाबंध के रहने वाले अकुला चरण नंदी, एक बुनकर के लिए काम करते थे और उत्पादों को बिचौलियों के ज़रिए गांव के बाज़ार में बेचते थे। मासिक तौर पर वह 15 हज़ार रुपए कमा लेते थे, लेकिन इतनी रक़म उनके परिवार के गुज़ारे के लिए काफ़ी नहीं थी क्योंकि उनके परिवार में 9 लोग थे।
45 वर्षीय अकुला को समय के साथ इस बात का एहसास हुआ कि उन्हें अपने परिवार को पालने के लिए बुनाई के अलावा और भी बहुत कुछ सीखना होगा। इसके साथ-साथ वह अपना ख़ुद का काम भी शुरू करना चाहते थे। वह कुर्ते और साड़ी वगैरह डिज़ाइन करना चाहते थे, लेकिन उन्हें कोई सही राह दिखाने वाले की ज़रूरत थी।
इसके बाद, उनका परिचय टाटा ट्रस्ट की मुहिम 'अंतरण' से हुआ। इस मुहिम का उद्देश्य स्थानीय कलाकारों और शिल्पकारों की मदद करना और उनके बेहतरीन उत्पादों को घरेलू और विदेशी बाज़ारों तक पहुंचाना है। इस मुहिम के तहत कलाकारों की उनका ख़ुद का बिज़नेस शुरू करने में मदद की जाती है।
भारत में करीब 70 लाख परिवार कला और शिल्प के सेक्टर से रोज़गार पा रहे हैं। रोज़गार के मामले में खेती के बाद क्राफ़्ट सेक्टर ही आता है। पिछले कुछ सालों में ऑटोमेशन और उत्पादन की आधुनिक तकनीकों के चलते कलाकारों की कमर टूट गई है क्योंकि ये मशीने एक समय में बड़ी मात्रा में एक जैसे उत्पाद तैयार कर सकती हैं और इसलिए बाज़ार में उत्पाद भी कम क़ीमत में उपलब्ध हो जाते हैं। इसके अलावा ओडिशा, असम, पश्चिम बंगाल, अन्य पूर्वी और उत्तर-पूर्व के राज्यों में स्थित गांवों के स्थानीय कलाकारों के उत्पादों की पहुंच घरेलू और एक्सपोर्ट बाज़ार तक नहीं है। अकेले उत्तर-पूर्व भारत में हथकरघा बुनकरों की 55 प्रतिशत आबादी रहती है, लेकिन उनके उत्पाद सिर्फ़ घरेलू इस्तेमाल तक ही सीमित हैं।
कुछ ऐसे ही हालात अकुला के भी थे और इन समस्याओं का समाधान ढूंढने के लिए ही वह 2018 में अंतरण का हिस्सा बने। सोशल स्टोरी के साथ हुई बातचीत में उन्होंने कहा, "मैंने सिर्फ़ डिज़ाइनिंग ही नहीं और भी बहुत कुछ सीखा। मैंने कलर कॉम्बिनेशन, अलग-अलग प्रकार के कपड़ों की बुनाई, ग्राहकों से बातचीत करना और अपने बिज़नेस को स्थापित करने की तैयारी करना, ये सभी कुछ सीखा। अब मैं न सिर्फ़ साड़ियों की सिलाई-बुनाई कर सकता हूं, बल्कि कुर्ते, दुपट्टे और अन्य कपड़े भी तैयार कर सकता हूं।"
अंतरण मुहिम की बदौलत, इस फ़रवरी अकुला ने अपनी हैंडलूम कंपनी शुरू की। उन्होंने कटक, ओडिशा में त्रिरत्न हैंडलूम क्राफ़्ट नाम से अपने बिज़नेस की शुरुआत की है। तब से अकुला चेन्नई और मुंबई के बाज़ारों में अपने उत्पाद बेच रहे हैं। जून तक अकुला के बिज़नेस का टर्नओवर 8 लाख रुपए तक पहुंच गया था। हाल में उनकी कंपनी में 15 कर्मचारी काम कर रहे हैं, जिनमें उनका छोटा भाई भी शामिल है।
न सिर्फ़ अकुला बल्कि टाटा ट्रस्ट की अंतरण मुहिम की बदौलत सैकड़ों कलाकार अपना बिज़नेस शुरू करने की कला सीख रहे हैं। अंतरण के अंतर्गत चल रहे आजीविका कार्यक्रम के ज़रिए असम, नागालैंड और ओडिसा के 200 कलाकारों तक पहुंचा जा चुका है।
टाटा ट्रस्ट्स की हेड ऑफ़ द क्राफ़्ट्स, शारदा गौतम ने योरस्टोरी के साथ हुई बातचीत में कहा,
"उत्तर-पूर्वी राज्यों में बुनकरों की आबादी में लगभग 99 प्रतिशत महिलाएं हैं, जो सही मार्गदर्शन के अभाव में अपनी आजीविका को सुचारू रूप से चलाने के लिए जूझ रही हैं। ये कलाकार पूरी तरह से बाज़ार से कटे हुए हैं।"
अंतरण मुहिम के अंतर्गत कलाकारों-शिल्पकारों को कम्प्यूटर पर काम करने और ग्राहकों के साथ संवाद करने आदि के गुर भी सिखाए जाते हैं। उन्हें डिज़ाइनिंग की बारीकियों के बारे में भी बताया जाता है। इस मुहिम के ज़रिए कंपनी रजिस्टर कराने में भी कलाकारों की मदद की जाती है।
शारदा बताती हैं कि कलाकार तीन तरह के होते हैं। एक तो वे जो बिज़नेस की समझ रखते हैं और उससे जुड़े स्किल्स भी जानते हैं। दूसरे वे जो कारीगर होते हैं। इन्हें उत्पादन की आधुनिक तकनीकों के बारे में बहुत जानकारी नहीं होती, लेकिन ये हथकरघा बुनाई की कला में पारंगत होते हैं। तीसरे वे जो मजदूरी करते हैं। इनके पास कोई ख़ास स्किल नहीं होता लेकिन पहली दो श्रेणियों वाले कलाकारों की मदद करते हैं।
अंतरण मुहिम के अंतर्गत इनक्यूबेशन सेंटर्स भी शामिल हैं, जहां पर पहली दो श्रेणियों के कलाकारों को शिक्षित किया जाना है। ओडिशा, असम और नागालैंड में तीन इनक्यूबेशन सेंटर्स खोले जा रहे हैं।
कलाकारों के समय का ख़्याल रखते हुए शाम 6 बजे से राज 9 बजे तक ओडिशा में क्लासेज़ चलाई जाती हैं। इसके अलावा, असम और नागालैंड में सुबह के वक़्त क्लासेज़ लगती हैं, ताकि महिलाएं अपने बच्चों और पतियों को स्कूल-ऑफ़िस भेजने के बाद खाली हो जाएं।
भविष्य की योजनाओं के बारे में बात करते हुए शारदा ने बताया कि आने वाले कुछ महीनों में ओडिशा, असम और आंध्र प्रदेश में तीन इनक्यूबेशन डिज़ाइन सेंटर्स खुलने जा रहे हैं।