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बैंक क्यों हो जाते हैं दिवालिया और फिर वापस कैसे मिलेगा आपका पैसा?

बैंकों का दिवालिया हो जाना एक घटना है, जिसके पीछे मुख्य कारण बैंकों के प्रबंधन की ओर से की  गई गलतियाँ हैं।

बैंक प्रबंधन की लापरवाही का नतीजा आम ग्राहकों को उठाना पड़ता है।

बैंक प्रबंधन की लापरवाही का नतीजा आम ग्राहकों को उठाना पड़ता है।



साल 2004 में राणा कपूर ने अपने एक रिश्तेदार अशोक कपूर के साथ मिलकर यस बैंक की स्थापना की थी और बैंक साल 2005 में भारतीय शेयर बाज़ार में लिस्ट भी हो गई। बात चाहे सेविंग अकाउंट पर 6 फीसदी का आकर्षक ब्याज देने की हो या यूपीआई जैसी सेवाओं को ग्राहकों के सामने पेश करने की, यस बैंक लोगों की जरूरतों के हिसाब से लगातार काम करते हुए आगे बढ़ता रहा। 2008 के मुंबई आतंकी हमले में बैंक के सह-संथापक अशोक कपूर की मौत हो गई, इसके बाद से ही समय अंतराल में कई विवाद बैंक के हिस्से आते रहे, लेकिन अब हालात ऐसे बिगड़े की बैंक के ग्राहकों के माथे पर चिंता की लकीरें बनीं हुई हैं।


यस बैंक पर कथित तौर पर खराब क्रेडिट स्कोर वाले उद्योगपतियों को बड़ी मात्रा में लोन बांटने का आरोप है, जिसके चलते बैंक आज इस वित्तीय संकट से जूझ रहा है। आरबीआई ने बैंक के ग्राहकों के लिए निकासी की सीमा भी तय कर दी है और दावा किया जा रहा है कि कुछ समाधान निकालते हुए बैंक को इस संकट से बचा लिया जाएगा, लेकिन इस तरह बैंकों के दिवालिया होने या इस कगार पर पहुँचने की मुख्य वजह क्या होती हैं?

कैसे काम करता है बैंक?

बैंक आमतौर पर लोगों से डिपॉज़िट यानी पैसे लेते हैं और उन्हे बड़े पैमाने पर ब्याज के साथ लोन के रूप में देते रहते हैं। यह बैंक के काम करने का एक बेसिक मॉडल है। आमतौर पर आम या छोटे निवेशक बैंकों में राशि एक निश्चित समय के लिए जमा करते हैं, जिसपर बैंक उन्हे एक निश्चित ब्याज के साथ लौटाने का वादा करती है, इसी बीच बैंक उस राशि को अन्य लोगों/उद्योगों/संस्थानों को अधिक ब्याज दर पर लोन के रूप में देती है, जिससे बैंक की कमाई होती है। इन सब के बीच यदि बैंक ये दो तरह की गलतियाँ करता है, तो उसपर वित्तीय संकट का खतरा मंडराने लगता है।

'बैड लोन' हैं घातक

पहला दिवालियापन (तकनीकी रूप से इन्सॉल्वेंसी) है। इन्सॉल्वेंसी तब होती है जब किसी बैंक की संपत्ति (एसेट) उसकी देनदारियों (लायबिलिटी) से कम होती है। बैंकों का प्रमुख दायित्व ग्राहकों के जमा धन की ज़िम्मेदारी है। बैंक लोन देने के साथ अपने पास कुछ मात्रा में कैश भी रखता है, जिससे कभी-कभी होने वाली निकासी के लिए अपने जमाकर्ताओं की मांगों को पूरा कर सके। यदि बैंक की कुल संपत्ति उसकी देनदारियों से अधिक हो जाएगी, तो बैंक लाभ कमा रही है। हालांकि, अगर कुछ लोग बैंक से लिए गए लोन को चुकाने में विफल हो जाते हैं और बैंक इस राशि की वसूली नहीं कर पाती है तो ये बैंकिंग टर्म में ‘बैड लोन’ कहलाते हैं, इसके चलते बैंक की परिसंपत्तियां उसकी देनदारी से नीचे चली जाती हैं और इस कारण ही बैंक दिवालिया होने की कगार पर पहुँच जाते हैं।




जब लिक्विडिटी बने समस्या

दूसरी समस्या तरलता यानी लिक्विडिटी के साथ है। बैंक ‘कम समय के लिए उधार लेना और अधिक समय के लिए उधार देना’ वाले कॉन्सेप्ट पर काम करते हैं। बैंक अपने ग्राहकों से यह वादा करती है कि वे अपनी जमा कि गई राशि को किसी भी समय बैंक से वापस ले सकते हैं, जबकि बैंक ग्राहकों पर यह भी भरोसा करती है कि ग्राहक एक साथ सारा पैसा नहीं निकालेंगे। हालांकि यदि ऐसा होता है और बैंक के ग्राहक एक ही समय में बैंक से पैसा निकाल लेते हैं, तो बैंक के पास नगदी नहीं बचेगी। हालांकि यह बैंक का दिवालिया होना नहीं है क्योंकि इसके ऋण का मूल्य अभी भी इसकी जमा राशि के मूल्य से अधिक है, लेकिन यह अपने ग्राहकों की जरूरतों को पूरा नहीं कर सकता है।

बैंक डूबे तो आपके पैसे का क्या होगा?

यदि कोई बैंक किसी कारण दिवालिया हो जाता है या वो अपने ग्राहकों की जमा राशि को लौटाने की स्थिति में नहीं रहता है तो आरबीआई के अनुसार उस बैंक को अपने ग्राहक को कुल जमा राशि या अधिकतम 5 लाख रुपये (जो अधिक हो) लौटाने ही होंगे। यह प्रावधान डीआईसीजीसी एक्ट 1961 के सेक्शन 16(1) के तहत किया गया है, हालांकि पहले ग्राहकों को वापस मिलने वाली रकम की गारंटी सिर्फ 1 लाख रुपये ही थी, जो साल 1993 से लागू थी। यह कवर ग्राहक को आरबीआई की सहयोगी कंपनी डिपॉज़िट इंश्योरेंश एंड क्रेडिट गारंटी कॉर्पोरेशन द्वारा किया जाता है।


उदाहरण के तौर पर यदि आपने किसी बैंक में 10 लाख रुपये जमा किए हुए हैं और बैंक दिवालिया हो जाता है तो बैंक आपको पक्के तौर पर 5 लाख रुपये वापस करेगा, लेकिन बाकी बची हुई राशि भी आपको वापस मिलेगी इसकी कोई गारंटी नहीं है। यह नियम हर उस बैंक पर लागू है जिसे आरबीआई की तरफ से देश में अपने कारोबार के संचालन के लिए लाइसेन्स मिला हुआ है।