दिवाली सिरीज़: दिन में तारे गिनने के लिए मजबूर कर रहे दुनिया के तेल निर्यातक भामाशाह
दिवाली पर मंद-मंद मुस्काती मंदी: दो
"इस दिवाली पर जलते दीये देखने की हसरत में एक बड़ी मौजू सी बात याद आ रही है कि तेल देखिए... और तेल की धार देखिए। इस तेल की धार में मंदी की महाभारत चल रही है। मंदी के तेल में सनी विश्व राजनीति इसी धार में ऊब-डूब हो रही है। पर्व-त्योहार, सोना, पटाखा, हीरा, प्याज, जिंस सब पर इस धार की बौछारें साफ नज़र आ रही हैं।"
मंद-मंद मुस्काती मंदी में महंगाई से लस्त-पस्त घर-घर में महाभारत मची हुई है क्योंकि कठपुतली के तार तेल भंडारों के भामाशाहों की उंगलियों में फंसे हुए हैं। इसलिए आज दिवाली को आतिशबाजी के सुरूर में देखने की बजाय मंदी की उस मिसाइल से रू-ब-रू होना पड़ेगा, जो भारत समेत दुनिया के तमाम मुल्कों को दिन में तारे गिनने के लिए मजबूर कर रही है। तो आइए, सबसे पहले देखते हैं किन देशों के पास सबसे ज्यादा तेल रिजर्व है, और कौन से देश इस समय दुनिया के सबसे बड़े निर्यातक बने हुए पूरे विश्व में उठा-पटक का सबब बने हुए हैं।
दशकों से विश्व राजनीति तेल में सनी हुई है। अमेरिकी एनर्जी इंफॉर्मेशन एडमिनिस्ट्रेशन की एक लिस्ट के मुताबिक, इस समय वेनेजुएला में 287.6 अरब बैरल, सऊदी अरब में 267.9 अरब बैरल, कनाडा में 173.1 अरब बैरल, ईरान में 154.58 अरब बैरल, इराक में 141.35 अरब बैरल, कुवैत में 104 अरब बैरल, संयुक्त अरब अमीरात में 97.8 अरब बैरल, रूस में 80 अरब बैरल, लीबिया में 48 अरब बैरल और नाइजीरिया के पास 37.2 अरब बैरल ऑयल रिजर्व है। यानी तेल उपभोक्ता दुनिया इन तेल उत्पादकों की मुट्ठी में है। उनका कच्चा तेल दुनिया की राजनीतिक दिशाएं तय कर रहा है। खाड़ी युद्ध, कई मुल्कों पर अमेरिकी बमबारी, अलग-अलग देशों के आपसी झगड़े-झंटे इसी तैल्य सियासत से पैदा हो रहे हैं।
इस समय दुनिया में सबसे ज्यादा, औसतन 133.6 अरब डॉलर का कच्चा तेल, सऊदी अरब निर्यात कर रहा है, जो कुल तेल उत्पादन का 15.9 प्रतिशत है। दूसरे नंबर पर रूस लगभग 93.3 अरब डॉलर, तीसरे नंबर पर इराक औसतन 61.5 अरब डॉलर, चौथे नंबर पर कनाडा औसतन 54 अरब डॉलर, पांचवें नंबर पर यूनाइटेड अरब लगभग 49.3 अरब डॉलर का तेल निर्यात कर रहा, यानी अन्य देशों को बेच रहा है, जो कुल हिस्सेदारी का 5.9 प्रतिशत है। अब आइए मिडिल ईस्ट पर। कच्चे तेल के भंडार से मालामाल कुवैत दुनिया को लगभग 38.2 अरब डॉलर का, नाइजीरिया औसतन 33 अरब डॉलर का, अंगोला लगभग 30.5 अरब डॉलर का और कजाखिस्तान औसतन हर साल 26.6 अरब डॉलर का कच्चा तेल निर्यात कर रहा है। जो जितना ज्यादा तेल निर्यात कर रहा है, विश्व राजनीति में वह उतना बड़ा दादा बना हुआ है और तमाम मुल्कों की आर्थिकी सींचते-सुखाते हुए हुए उंगलियों पर नचा रहा है।
दिवाली पर मंदी की मंद-मंद मुस्कान को जरा गौर से देखते हुए सोचिए कि तेल के इन भामाशाहों ने किस तरह विश्व राजनीति का हाजमा खराब कर रखा है। अमेरिका आज दुनिया का दादा तेल उत्पादक शुमार हो रहा है। अमरीकी नागरिक एडविन ड्रेक ने ही पहली बार 27 अगस्त 1859 को अपना लैंप जलाने की तलब में रॉक ऑयल (भूरे रंग का कच्चा तेल) पश्चिमी पेनसिल्वेनिया की पिटहोल सिटी में खोज निकाला था। उसके बाद के वर्षों में दुनिया रोशन करने वाली तेल की उथल-पुथल शुरू हुई।
देखते ही देखते गिने-चुने बाशिंदो वाली पिटहोल सिटी की दस हजार आबादी के बीच पचासों होटल और चकलाघर तक खुल गए और शहर की रईसी सबके सिर चढ़कर बोलने लगी। अथाह तेल की बिक्री से शहर के चारो तरफ दिवाली जैसा उजाला छा गया। बाद में तेल के बाई-प्रोडक्ट ने गैसोलीन तो पूरे विश्व की दशा-दिशा में क्रांतिकारी परिवर्तन ला दिया, जिसकी इकोनॉमी की आंच पर आज हमारी भी होली-दिवाली, ईद समेत विभिन्न राष्ट्रों की विश्व राजनीति तप रही है।
अब आइए, तेल की थ्योरी का दूसरा पन्ना पलटते हुए दिवाली गुलज़ार करने वाले एक मौत के सामान की ताज़ा दास्तान से मुखातिब होते हैं, जो किसी तेल भंडार पर गिर पड़े तो आग के गगनचुंबी बगूले उठने लगें। खाड़ी के देशों में उठ ही रहे हैं। इस मौत के सामान को बारूद कहते हैं। दिवाली में यह खूब गुल खिलाता है। दिवाली के दिन सबकी नींद हराम करते हुए आंखें फाड़-फाड़ कर इसके कारनामे बड़े गौर से हमारे देशवासी देखते हैं। इस बार के त्योहार पर यह भी मंदी की महक से सराबोर है। भारत में इसके मुख्य उत्पादन केंद्र हैं, दक्षिण भारत के रामेश्वरम और शिवकाशी, जहां लगभग बीस हजार करोड़ की एक हजार पटाखा इंडस्ट्री में सात लाख से अधिक बच्चे और बड़े लोग लगे हुए हैं।
सौ साल से लोगों का जीना मुहाल कर रहे इनके बारूद भंडारों पर जबसे सुप्रीम कोर्ट का हथौड़ा चला है, इस इंडस्ट्री की घिग्घी बंध गई है वरना अब तक तो इस दिवाली के लिए सैकड़ों टन बारूद के सामान पूरे देश में बिछ चुके होते। इन पर मंदी की मार पड़ने से ज्यादा खुशी की बात और क्या हो सकती है।
शिवकाशी को आतिशबाजी की राजधानी बनाने का श्रेय शिवाकाशी के कलकत्ता रिटर्न नडार बन्धुओं षणमुगम और अय्या को दिया जाता है, जो 1922 में प.बंगाल से तो माचिस बनाने की विद्या सीखकर आए और शिवकाशी में पटाखे की फैक्ट्री चलाने लगे। वहां के लाखों बच्चे और महिलाएं इस इंडस्ट्री की रीढ़ हैं, जो रोजी-रोटी के लिए जान पर खेल रहे हैं।
नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, यहां पांच से पंद्रह साल तक के बच्चों से नाममात्र की मजदूरी पर 12-12 घंटे काम कराया जाता है। लगभग बीस मॉनिटरिंग एजेंसियां भी ऐसे बारूदबाजों का कुछ नहीं बिगाड़ पा रही हैं। इंडस्ट्री के करोड़पति मालिकानों की मदद से यहां इस समय तीन इंजीनियरिंग कॉलेज, एक वुमन कॉलेज, 2 पॉलीटेक्निक, एक फॉर्मेसी और तीन आर्ट कॉलेज समेत 42 एजुकेशनल इंस्टीट्यूट चल रहे हैं।
इस बीच राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई) ने हाल ही में चेताया है कि दिवाली को देखते हुए भारी मात्रा में खतरनाक चीनी पटाखे अवैध रूप से भारत पहुंचने लगे हैं। इस दिवाली पर पटाखा निर्माता चीनी कंपनियां अपना सालाना बिजनेस टारगेट पूरा करने के लिए भारतीय बाजार पर नजर गड़ाए हुए हैं।
भारत में इस वक़्त पटाखों के अवैध निर्माण और बिक्री पर जारी सख्ती और लागत में बढ़ोतरी के कारण भी पटाखा निर्माण उद्योग इस समय मंदी की कुटिल मुस्कान से रू-ब-रू है। उद्योग मंडल एसोचैम की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पटाखों की मांग में 35 से 40 फीसद तक की भारी गिरावट आई है। अन्तरराष्ट्रीय बाजार में रुपये की कीमत में गिरावट से एल्युमिनियम पाउडर, बेरियम नाइट्रेट तथा अन्य कच्चे माल के आयात शुल्क में बढ़ोत्तरी की वजह से भी पटाखा निर्माण उद्योग पर उल्टा असर पड़ा है।
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