248 अरब, 35 करोड़ रुपए दानकर अब चौथे नंबर के अमीर बने वॉरेन बफेट
"अपनी अकूत कमाई के 248 अरब 35 करोड़ रुपए दान कर तीसरे से अब चौथे नंबर के अमीर बन गए वॉरेन बफेट पहली भारतीय कंपनी पेटीएम में 2,394 करोड़ रुपए निवेश करने के बाद अब एक और भारतीय बीमा कंपनी आईसीआईसी प्रू में 9000 करोड़ इन्वेस्ट करने जा रहे हैं। वह अपना बीमा उत्पाद पेटीएम के माध्यम से बेचना चाहते हैं।"
अपनी पैंतालीस फीसदी पूंजी दान कर देने के बाद तीसरे नंबर से अब दुनिया के चौथे सबसे बड़े अमीर वॉरेन बफेट में आज भी अरबपतियों पर दांव लगाकार खुद अरबों रुपए कमा लेने का कमाल का हुनर है। उनकी कंपनी बर्कशायर हाथवे ने पहली बार भारतीय कंपनी 'पेटीएम' में भी अनुमानतः 2,394 करोड़ रुपए का निवेश किया है। अभी हाल ही में उन्होंने बर्कशायर हैथवे के 248.35 अरब रुपये के शेयर दान करने का फैसला किया है।
दूसरी तरफ, अपनी पुरानी निवेश सैद्धांतिकी के फॉर्मूले पर ही वॉरेन बफेट आज भी किसी भी तरह का इंवेस्टमेंट कर अरबों रुपए मुनाफा कमा रहे हैं। कई कंपनियों में उनके निवेश पच्चीस-तीस साल से अरबों की मोटी कमाई करा रहे हैं। उनकी कामयाबी का सबब ये है कि उनकी देखा-देखी, उनके फॉर्मूलों की नकल कर आम लोग भी स्टॉक मार्केट से अच्छी कमाई करने लगे हैं।
बफेट कहते हैं, "निवेश में अनुभव, समझदारी और धैर्य की जरूरत होती है।" उनका कहना है, अपने सभी अंडे एक ही टोकरी में नहीं रख देने चाहिए। निवेश के पैसे अलग-अलग कंपनियों में निवेश करते समय यह ध्यान रखें कि पूरा पैसा न डेट में, न इक्विटी में लगाएं। अपनी कीमत चुकाकर ही बदले में बेहतर मूल्य हासिल हो सकता है। निवेश के लिए कंपनी का चयन करते समय ध्यान रखें कि प्रतिष्ठा बनाने में एक-दो दशक लग जाते हैं, लेकिन बर्बाद होने के लिए महज पांच मिनट काफी होते हैं।
बफेट की कंपनी बर्कशायर हाथवे के कई ऐसे निवेश रहे हैं, जिन्होंने कई गुना निवेश हासिल किया है। द्वितीय विश्व युद्ध के दौर में जब फ्रैंकलिन रोजवेल्ट अमेरिका के राष्ट्रपति थे, वारेन बफेट दूसरे बच्चों के खेल खेलने की बजाए स्टॉक मार्केट पर निगाहें गड़ाए रहते थे।
बफेट का कहना है कि अमीर व्यक्ति ‘टाइम’ में इन्वेस्टमेंट करता है और नासमझ सिर्फ लगाता है। पैसे की अपेक्षा वक्त ज्यादा मूल्यवान होता है। हर निवेशक को एक दिन में चौबीस घंटे ही मिलते हैं लेकिन अलग-अलग निवेशक उस समय का अलग-अलग तरह से इस्तेमाल करते हैं। वह एक आंकड़े जरिए बताते हैं, सन् 1942 की पहली तिमाही में अपना पहला शेयर खरीदते समय वह सिर्फ ग्यारह वर्ष के थे। उन्ही दिनो जब पर्ल हार्बर कांड हुआ, उन्होंने एक शेयर में 114.75 डॉलर निवेश कर दिया। उसके बाद से आज के वक़्त तक मार्केट कई बार लुढ़क चुका है। उससे घबराना नहीं चाहिए। वक़्त और धैर्य आगे का रास्ता खुद खोल देता है।
गौरतलब है कि बफेट ने सबसे ज्यादा पैसा बीमा क्षेत्र में लगाया है। अब वह भारतीय कंपनी 'आईसीआईसी प्रू' के साथ 14 प्रतिशत हिस्सेदारी की डील में नौ हजार करोड़ निवेश करने जा रहे हैं। वह अपना बीमा उत्पाद पेटीएम के माध्यम से बेचना चाहते हैं।
एक ताज़ा जानकारी के मुताबिक, बफेट अपनी कंपनी के करीब 248.35 अरब रुपये अलग-अलग पांच संस्थाओं- बिल एंड मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन, सुसान थॉम्पसन बफे फाउंडेशन, शेरवुड फाउंडेशन, हॉवर्ड जी बफे फाउंडेशन और नोवो फाउंडेशन को दान करने जा रहे हैं। फिलहाल, वह 2006 से अब तक 2.35 लाख करोड़ रुपये के शेयर दान कर चुके हैं।
इस तरह बफेट अपनी कुल हिस्सेदारी का 45 फीसदी हिस्सा परोपकारी कार्यों में खर्च कर चुके हैं। जब इतनी बड़ी राशि उनके मालिकाना में थी, जिस कंपनी को ऊंची हैसियत की बनाने में उन्होंने अपने पचास साल खर्च कर दिए, वह दुनिया के तीसरे नंबर के सबसे बड़े अमीर थे, लेकिन आज के समय में अपनी पैंतालीस प्रतिशत राशि दान में देने के कारण वह अमीरी की दौड़ में चौथे पायदान पर पहुंच गए हैं। आज भी इंश्योरेंस सेक्टर से मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर तक में सक्रिय उनकी कंपनी बर्कशायर हैथवे का बाजार मूल्य 34.49 लाख करोड़ रुपये से अधिक है।