हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्वीन दवा को लेकर दुनिया क्यों है पागल, यहाँ जानिए इस दवा से जुड़ी तमाम अहम जानकारी
यह एक एंटी मलेरियल ड्रग है, जिसे क्लोरोक्वीन से कम जहरीला माना जाता है, और कुछ मामलों में डॉक्टरों द्वारा prescribe की जाती है। अधिकतर गठिया (rheumatoid arthritis) और ल्यूपस (lupus) के रोगियों के लिए डॉक्टर हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्वीन की सलाह देते हैं।
आज हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्वीन दवा कोरोनावायरस (कोविड-19) महामारी से त्रस्त इस पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बनी हुई है। जैसा कि अब तक दुनियाभर के हेल्थ एक्सपर्ट बता ही चुके हैं कि इस महामारी की कोई भी वैक्सीन नहीं बनी है तो ऐसे में हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्वीन को इस वायरस से लड़ने में कारगर माना गया है। जहां भारत में यह दवा मलेरिया के मरीजों को दी जाती है वहीं अब ये दवा अमेरिका समेत कई देशों में कोरोनावायरस से संक्रमित मरीजों को दी जा रही है। इतना ही नहीं इन सभी देशों ने भारत से यह दवा आयात की है और अब तो पड़ोसी देश पाकिस्तान ने भी इस दवा का आयात करने के लिए भारत सरकार से गुजारिश की है।
क्या है हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्वीन
यह एक एंटी मलेरियल ड्रग है, जिसे क्लोरोक्वीन से कम जहरीला माना जाता है, और कुछ मामलों में डॉक्टरों द्वारा निर्धारित की जाती है। अधिकतर संधिशोथ (rheumatoid arthritis) और ल्यूपस (lupus) के रोगियों के लिए डॉक्टर हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्वीन की सलाह देते हैं।
भारत में यह दवा कौन बनाता है?
फार्मास्युटिकल मार्केट रिसर्च फर्म AIOCD Awacs PharmaTrac के अनुसार, इस फरवरी 2020 तक के 12 महीनों के पीरियड में Hydroxychloroquine का मार्केट केवल 152.80 करोड़ रुपये था। हालांकि, कई देश भारत से दवा का आयात करते हैं।
Ipca Laboratories, जिसका मुख्यालय मुंबई में है, का अपने ब्रांडों HCQS और HYQ के साथ बाजार में लगभग 82% हिस्सा था। इप्का द्वारा उत्पादित संस्करणों का लगभग 80% निर्यात किया जाता है। अहमदाबाद मुख्यालय वाला कैडिला हेल्थकेयर (Zydus Cadila) ब्रांड Zy Q तैयार करता है, जिसका बाजार 8% है। वालेस फार्मास्यूटिकल्स (OXCQ), टोरेंट फार्मास्यूटिकल्स (HQTOR) और ओवरसीज हेल्थकेयर प्राइवेट लिमिटेड (CARTIQUIN) के छोटे शेयर हैं।
COVID-19 के प्रकोप ने इस दवा को स्पॉट क्यों किया है?
इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एंटीमाइक्रोबियल एजेंट्स (IJAA) में पिछले महीने एक रिसर्च में, फ्रांसीसी वैज्ञानिकों ने बताया:
‘‘बीस मामलों का इलाज किया गया ... और वायरल की महत्वपूर्ण कमी को देखा गया। Azithromycin (एज़िथ्रोमाइसिन एक एंटीबायोटिक) को हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्वीन में मिलाया जाता है, जो वायरस के प्रसार को रोकने में काफी महत्वपूर्ण है।’’
वहीं इस रिसर्च को एक निश्चित निष्कर्ष निकालने के लिए बहुत छोटा मनाया गया है। 3 अप्रैल को, इंटरनेशनल सोसाइटी ऑफ एंटीमाइक्रोबियल कीमोथेरेपी, जो IJAA की मालिक है, ने कहा कि “रिसर्च, सोसायटी के स्टैंडर्ड पर खरी नहीं उतरती है।’’
हालाँकि, 21 मार्च तक, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने दवा को ‘‘गेम चेंजर’’ कहना शुरू कर दिया था, और तब से यह काफी सुर्खियां बटौर रही है।
पिछले महीने के अंत में, इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) ने COVID-19 रोगियों का इलाज करने वाले एसिम्प्टोमैटिक हेल्थकेयर कार्यकर्ताओं में हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्वीन के उपयोग की सिफारिश करते हुए एक एडवाइजरी जारी की, और डॉक्टरों को पुष्टि किए गए COVID-19 रोगियों के घरेलू संपर्कों के लिए इसे लिखने की अनुमति भी दी।
हालांकि, सरकार ने जोर देकर कहा है कि दवा को केवल COVID-19 उपचार में इस्तेमाल किया जा सकता है।
भारत ने कब से दवा का निर्यात बंद किया?
अमेरिका आपातकालीन उपयोग के लिए दवा खरीद रहा है। 21 मार्च को इप्का ने यहां स्टॉक एक्सचेंजों को बताया कि यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने कंपनी के खिलाफ अपने आयात अलर्ट को ‘‘अपवाद’’ बना दिया था ताकि उसे स्टॉक मिल सके।
भारत ने 4 अप्रैल को दवा के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया। इसके बाद सरकार ने प्रतिबंध को कम करने का फैसला किया।
इन देशों को निर्यात की जा चुकी है दवा
बीते शुक्रवार को मीडिया से बात करते हुए, विदेश मंत्रालय में संयुक्त सचिव, दम्मू रवि ने कहा,
पहली सूची में 13 देशों- अमेरिका, स्पेन, जर्मनी, बहरीन, ब्राजील, नेपाल, भूटान, अफगानिस्तान, मालदीव, बांग्लादेश, सेशेल्स, मॉरीशस और डोमिनिकन गणराज्य को हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्वीन दवा निर्यात की जा चुकी है।
संयुक्त राज्य अमेरिका के अलावा, केवल ब्राजील, कनाडा और जर्मनी को दूसरी खेप में हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वाइन के 50 लाख टैबलेट भेजी जा सकती है।
इसके इलावा बांग्लादेश को हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन की 20 लाख गोलियां, नेपाल को 10 लाख, भूटान को 2 लाख, श्रीलंका को 10 लाख (पहली खेप में नहीं), अफगानिस्तान को 5 लाख और मालदीव को 2 लाख गोलियां देने की तैयारी है।
वहीं कोरोनोवायरस के प्रकोप में पड़ोसी देश पाकिस्तान ने भी भारत से हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्वीन दवा निर्यात करने के लिए मदद मांगी है। पाकिस्तान के अलावा मलेशिया और तुर्की भी मदद मांग रहे हैं।
क्या यह दवा वास्तव में प्रभावी है?
COVID-19 उपचार में हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्वीन और यहां तक कि क्लोरोक्वीन की प्रभावशीलता पर दो बड़े परीक्षण चल रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की एकजुटता परीक्षण में, जिसमें भारत एक हिस्सा है, दुनिया भर के चिकित्सकों को हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्वीन के साथ रोगियों के इलाज के लिए एक आम प्रोटोकॉल का पालन करना है। दूसरा क्लोरोक्वीन एक्सेलरेटर ट्रायल है, जिसकी ज्यादातर फंडिंग वेलकम ट्रस्ट और बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन ने की है।
वेलकम ट्रस्ट / डीबीटी इंडिया अलायंस के वायरलॉजिस्ट और सीईओ डॉ. शाहिद जमील के अनुसार, यह दवा वायरस के खिलाफ कितनी प्रभावी हो सकती है, इस पर अभी जूरी काम कर रही है।
डॉ. जमील ने कहा,
“इन दोनों दवाओं का random testing protocol के तहत रोगियों की बहुत बड़ी संख्या पर परीक्षण चल रहा है। उन परीक्षणों के परिणाम अभी तक आए नहीं हैं। अगर हाई रिस्क वाले क्षेत्रों के हेल्थ वर्कर्स सीमित तरीकों में निवारक उपाय के रूप में हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्वीन / क्लोरोक्वीन ले रहे हैं, तो यह ठीक है। लेकिन, आम जनता के लिए, जो कि ये सोचते हैं कि ये दवाएं सुरक्षित है, के लिए इन दवाओं को पॉपअप करना ठीक नहीं। इनसे वे खुद को बचा नहीं पाएंगे और निश्चित रूप से खुद को नुकसान पहुंचाएंगे।’’
दूसरे कारणों से दवा लेने वाले रोगियों पर इसका क्या असर होगा?
मार्च में, ट्रम्प के बयान से दवा को बढ़ावा मिला और न केवल अमेरिका में panic buying हुई, बल्कि भारत में भी दवा के स्टॉक पर भारी असर पड़ा।
फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट रुमेटोलॉजी कंसल्टेंट डॉ. नवल मेंदिरत्ता ने कहा कि panic buying के चलते उनके यहां भी दवा का स्टॉक खत्म हो गया। हालांकि, गठिया (arthritis) और ल्यूपस रोगी सप्ताह के कुछ दिनों में इसे ना भी लें तो भी ठीक है क्योंकि इस दवा का असर अधिक समय तक रहता है। लेकिन रोगियों को अब मैनेज करना मुश्किल हो गया है।
दवा पर ICMR की सलाह के बाद, विभिन्न रोगियों और स्वास्थ्य पेशेवरों को समान रूप से हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्वीन दवा का स्टॉक मैनटेन करने के लिए कहा गया है।
1mg के फाउंडर प्रशांत टंडन के अनुसार, कुछ रोगियों ने जिन्होंने कभी दवा का इस्तेमाल नहीं किया था, उन्होंने भी उनकी ई-फार्मेसी से इसे लेने का प्रयास किया था, लेकिन असफल रहे क्योंकि उनके पास valid prescriptions नहीं थे।
अब इस दवा को Schedule H1 status में डाल दिया गया है, जिसका अर्थ है कि जिन रोगियों को दवा की आवश्यकता होती है, उन्हें हर बार एक fresh prescription प्राप्त करना होगा तब ही वे इसे खरीद सकते हैं।
लगभग एक महीने के बाद, फार्मेसियों में इस दवा का स्टॉक आसानी से उपलब्ध नहीं हैं और यह कई रोगियों को प्रभावित करता है जिनको वास्तव में इसकी जरूरत है। कुछ रोगियों ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि उनके पास prescription होने के बावजूद अपनी आवश्यक खुराक पाने के लिए उनको संघर्ष करना पड़ रहा है।
1mg के फाउंडर प्रशांत टंडन ने कहा,
“स्टॉक अभी भी सीमित है, और जो भी थोड़ा स्टॉक उपलब्ध है उसे केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा प्राथमिकता और खरीदा जा रहा है। हमें बताया गया है कि हम जल्द ही स्टॉक प्राप्त करेंगे, उम्मीद है कि एक सप्ताह के भीतर।’’
दवा कंपनियां इस मुद्दे को सुलझाने के लिए क्या कर रही हैं?
इप्का के संयुक्त प्रबंध निदेशक अजीत कुमार जैन के अनुसार, कंपनी के पास सरकार की जरूरतों को पूरा करने के लिए उत्पादन को बढ़ाने की क्षमता है, क्योंकि अभी तक घरेलू बाजार के लिए हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्वीन की इसकी उत्पादन क्षमता का केवल 10 प्रतिशत उपयोग किया जाता था।
हालांकि, यह सुनिश्चित करने के लिए कि दवा का दुरुपयोग नहीं हो और panic buying की वजह से स्टॉक खत्म नहीं न हो, कंपनी ने गठिया रोगियों के विशेषज्ञों और देश भर में ‘‘चुनिंदा’’ फार्मेसियों में हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्वाइन उपलब्ध कराने का निर्णय लिया है।
उन्होंने कहा,
‘‘अब, रोगी केवल अपने चिकित्सक तक पहुंच सकते हैं और उन्हें उपलब्ध स्टॉक वाले फार्मेसी के साथ कनेक्ट करने में डॉक्टर उनकी मदद करेंगे। हो सकता है कि लॉकडाउन खुलने के बाद, हम धीरे-धीरे दवा को अधिक व्यापक रूप से उपलब्ध करा सकें।’’
Zydus Cadila के एक प्रवक्ता ने कहा कि कंपनी ने वर्तमान हालात को देखते हुए प्रति माह 20-30 टन हाइड्रॉक्सी क्लोरोक्वीन का उत्पादन करना शुरू कर दिया है, जो कि पहले मात्र 3 टन होता था। यह आने वाले महीनों में ‘‘जरूरत पड़ने पर’’ प्रति माह लगभग 40-50 टन तक बढ़ाया जा सकेगा।