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विधानसभा चुनावों के बाद केजरीवाल पर सवाल खड़े करने वाले राजनीतिक पंडितों की ज़ुबान होगी बंद : आशुतोष

पूर्व पत्रकार और संपादक आशुतोष का विश्लेषण, पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजों का असर राष्टीय स्तर पर भी होगा और पंजाब - गोवा के परिणाम ‘आप’ के लिये शेष भारत का 'गेटवे' साबित हो सकते हैं  

विधानसभा चुनावों के बाद केजरीवाल पर सवाल खड़े करने वाले राजनीतिक पंडितों की ज़ुबान होगी बंद : आशुतोष

Friday January 06, 2017 , 7 min Read

वैसे तो विधानसभा के चुनाव स्थानीय मुद्दों पर लड़े जाते है और स्थानीय मुद्दे ही राजनीतिक पार्टियों की क़िस्मत तय करते हैं । लेकिन जब चुनाव उत्तर प्रदेश में लड़ा जा रहा हो जिसे बड़े आराम से 'मिनी भारत' की संज्ञा दी जा सकती है तो चुनाव महज़ स्थानीय नहीं रह जाते हैं । साथ में अगर चुनाव सुदूर उत्तर और सीमावर्ती पंजाब में भी हो और पश्चिम मे छोटे से राज्य गोवा में हो तो इन चुनावों की अहमियत और भी बढ़ जाती है । ऐसे में ये कहना सही होगा कि इन चुनावों के नतीजों का राष्ट्रीय असर भी होगा । पंजाब में अकाली बीजेपी की सरकार है और गोवा में बीजेपी की । हालाँकि यूपी में बीजेपी की सरकार नहीं है फिर भी यूपी वो राज्य हैं जहाँ लोकसभा के चुनाव में बीजेपी को ८० में से ७२ सीटें मिली थी और एक सीट बीजेपी समर्थित पार्टी के खाते में गयी थी । यानी यूपी ने मोदी जी को प्रधानमंत्री बनाने में बहुत बड़ी भूमिका अदा की थी । ऐसे में हर आदमी की नज़र इस बात पर होनी चाहिये कि क्या २०१४ का जादू दोहराया जायेगा और क्या वहाँ आसानी से बीजेपी की सरकार बन पायेगी !! फिर ये चुनाव नोटबंदी के फ़ौरन बाद होने जा रहे हैं । आठ नवंबर को मोदी जी ने बड़े धूमधाम के साथ नोटबंदी को लागू करने की घोषणा की थी । मोदी ने नोटबंदी के बहाने देश में काला धन और भ्रष्टाचार पर बड़ा हमला बोलने का दावा किया था । आलोचक उनकी बात से सहमत नहीं है। नोटबंदी को मोदी का अबतक का सबसे बड़ा दाँव माना जा जा रहा है । जहाँ एक तबक़ा इसको एक बड़ा तुग़लक़ी फ़रमान कह रहा है वहीं मोदी समर्थक इसे राष्ट्रवाद को मज़बूत करने की दिशा में एक बड़ा क़दम मान रहे हैं । इस मसले पर पूरे देश में पिछले दो महीने से ज़बर्दस्त मंथन चल रहा है । पक्ष विपक्ष में जम कर तर्क चल रहे हैं । विपक्ष पहली बार सरकार पर बुरी तरह से हमलावर है । इस वजह से संसद का शीतकालीन सत्र भी नहीं चल पाया । इसके साथ ही मोदी जी को प्रधानमंत्री बने ढाई साल से ज़्यादा हो गये हैं । यानी मोदी जी ने लोकसभा चुनाव के समय जो सपने दिखाये थे उनको कसौटी पर कसने का ये सुनहरा मौक़ा होगा । उनका हनीमून पीरियड ख़त्म हो गया है। जनता को उनके कामों की समीक्षा करने का वक़्त आ गया है । क्या वाक़ई मोदी जी जनता की उम्मीदों पर खरे उतर रहे हैं, जो वायदे किये थे क्या उस दिशा में कुछ काम हुआ है, क्या जनता उनके कामकाज से इत्तफ़ाक़ रख रही है; या सपने सिर्फ़ सपने ही रह गये ।

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आतंकवाद से जूझते देश को मोदी जी ने से भरोसा दिया था कि उनकी सरकार आतंकवादियों और पाकिस्तान के मंसूबों को नेस्तनाबूद कर देगी । मोदी जी ने कहा था कि मनमोहन सरकार आतंकवाद पर नरम थी और इस वजह से देश को आतंकवाद की गाज झेलनी पड़ रही थी । मनमोहन एक कमज़ोर प्रधानमंत्री थे, जब कि देश को पाकिस्तान को सबक़ सिखाने के लिये मज़बूत नेत्रत्व की ज़रूरत थी । सितंबर के महीने में मोदी सरकार ने आतंकवाद की कमर तोड़ने के लिये सर्जिकल स्ट्रांइक करने का ऐलान किया जिसकी वजह से देश में राष्ट्रवाद की नई लहर पैदा करने का दावा बीजेपी और मोदी समर्थकों ने की । सर्जिकल स्ट्राइक को तीन महीने से अधिक हो गये हैं । विधानसभा चुनाव के बहाने अब लोगों को इस पर भी अपना निर्णय देने का समय आ गया है । ख़ासतौर से सीमावर्ती प्रांत पंजाब में जो पिछले साल दो बड़ा आतंकवादी हमला झेल चुका है ।

२०१४ के चुनाव में मोदी जी ने देश की समस्याओं के लिये कांग्रेस को ज़िम्मेदार ठहराया था । ऐसे में क्या देश को मँहगाई, बेरोज़गारी, औद्योगिक विकास और आर्थिक प्रगति के रास्ते में कुछ मिला या नहीं, ये भी जनता को बताना होगा । और चूँकि मोदी जी की सरकार में वो ही सर्वेसर्वा हैं जैसे इंदिरा गांधी थी, तो हिसाब भी जनता उनसे ही माँगेगी, बीजेपी या उनकी सरकार से नहीं । यानी सही मायनों में ये चुनाव मोदी की लोकप्रियता और इनके कामकाज के तौरतरीकों पर जनमतसंग्रह होगा ।

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२०१४ में जनता ने ये जता दिया था कि उसे कांग्रेस के उस वक़्त के स्वरूप और राहुल गाँधी की लीडरशिप पर यक़ीन नहीं था । जनता ने उन्हें पूरी तरह से रिजेक्ट कर दिया था । राहुल गांधी मोदी के सामने पप्पू साबित हो गये थे । ऐसे में बीते सालों में कांग्रेस और ख़ासतौर पर राहुल ने अपने आप को नये सिरे से साबित करने के लिये कितनी मेहनत की है, बदलते समाज के मुताबिक़ जनता की निगाह में खुद को कितना सशक्त बनाया है, एक मज़बूत विपक्ष की भूमिका में मोदी की सरकार पर नकेल कसने मे वो कितने कामयाब रहे हैं, इसकी भी परीक्षा इन चुनावों में होगी । विशेष तौर पर पंजाब और गोवा में जहाँ पार्टी विपक्ष में है । पंजाब में वो दस सालों से सत्ता से बाहर है । गोवा में पाँच साल से । दोनों जगह एनडीए की सरकार हैं । दोनों ही सरकारें लोकप्रिय नहीं है । कांग्रेस के लिये हरियाणा, महाराष्ट्र, असम में सरकार गँवाने की भरपायी करने का ये बेहतरीन अवसर है । साथ ही ये साबित भी करना होगा कि वो भारतीय राजनीति में अभी भी उसको नकारा नहीं जा सकता ।

लेकिन कांग्रेस और राहुल गांधी की राह में आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल सबसे बड़ा रोडा हैं । दिल्ली में कांग्रेस को दो बार बुरी तरह से परास्त करने के बाद आप के हौसले बुलंद है और आज की तारीख़ में आप उसके राष्ट्रीय अस्तित्व के लिये सबसे बड़ी चुनौती भी हैं । पंजाब में आप अगर नहीं होती तो कांग्रेस के लिये मार्ग प्रशस्त था । अकाली बीजेपी की सरकार बुरी तरह से लोगों की नज़र से उतर चुकी है। वहाँ आसानी से उसकी सरकार बन सकती थी लेकिन आप ने पहले लोकसभा में चार सीटें जीतकर और पिछले दो सालों में मेहनत करके आप को काफ़ी मज़बूत स्थिति में ला दिया है । ओपिनियन पोल से इतर पंजाब में आप की सरकार बनने का क़यास लगाया जा रहा है ।

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गोवा में भी कांग्रेस की जड़ें खोदने का काम आप ने किया है । पाँच साल तक बीजेपी सरकार के सामने कांग्रेस एक मज़बूत विपक्ष के तौर पर ख़ुद को पेश नहीं कर पायी । विधानसभा के अंदर और बाहर विपक्ष का काम या तो निर्दलीय विधायकों ने किया या पिछले एक साल में आप ने बीजेपी की नाक में दम किया । लिखने के समय तक आप ४० में से अपने ३६ उम्मीदवारों का ऐलान कर चुकी है वहीं कांग्रेस अभी भी उम्मीदवार तय करने के लिये संघर्ष कर रही है । उसके दो विधायक बीजेपी और एक पार्टी महासचिव महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी से जा जुड़े हैं । उधर यूपी में बड़े धूमधाम से कांग्रेस ने शुरूआत की पर जल्दी ही उसे एहसास हो गया कि यहाँ उसे कोई गंभीरता से लेने को तैयार नहीं है । इन दोनों राज्यों में अगर आप कांग्रेस से आगे निकली जिसकी संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता तो फिर देश में ये संदेश फैलेगा कि आप कांग्रेस को रिप्लेस कर रही है । जो आप को नई ऊर्जा तो देगा ही कांग्रेस के लिये मरणगान भी साबित हो सकता है ।

आप के लिये दोनों राज्यों में अच्छा प्रदर्शन उसके लिये भविष्य की राष्ट्रीय राजनीति के लिये अमृत का काम करेगा । दूसरे राज्यों के मतदाताओं के लिये संदेश भी होगा कि आप एक दीर्घकालीन राजनीति के लिये बनी है और सहीं मायने में मोदी विरोध की धुरी बन सकती है। जो ये समझते है कि आप की दिल्ली की जीत एक तुक्का थी या फिर पानी का बुलबुला था, उनका भ्रम भी टूटेगा । पंजाब और गोवा, आप के लिये शेष भारत का 'गेटवे' साबित हो सकता है । ख़ासतौर पर २०१७ में होने वाले गुजरात और हिमाचल प्रदेश विधानसभा के चुनावों पर काफ़ी प्रभाव पड़ेगा । जो मोदी जी को भी तकलीफ़ देगा और राहुल को भी । अरविंद के नेतृत्व पर सवाल उठाने वाले राजनीतिक पंडितों की ज़ुबान भी हमेशा के लिये बंद हो जायेगी । 

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