मिलें अठारह मेडिकल उपकरणों का आविष्कार करने वाले डॉ जगदीश चतुर्वेदी से
बेंगलुरु के डॉ जगदीश चतुर्वेदी पेशे से तो ईएनटी विशेषज्ञ हैं, वह लेखन, कॉमेडी, स्टार्टअप में भी दखल रखते हैं लेकिन वह ज्यादातर नए मेडिकल उपकरणों के आविष्कार में व्यस्त रहते हैं, जिससे हेल्थ केयर बिज़नेस में भी उन्हे अपनी जगह बनाने में कामयाबी मिली है। वह अब तक 18 उपकरणों का सह-आविष्कार कर चुके हैं।
उठा-पठक भरे बाजार की दौड़ में हेल्थ केयर बिज़नेस के मोरचे पर तमाम बड़ी कंपनियां प्रतिस्पर्धा में हैं, जिनके बीच बेंगलुरु के एक डॉक्टर जगदीश चतुर्वेदी अपनी कामयाबी की एक अलग ही दास्तान लिख रहे हैं। गौरतलब है कि ‘हेल्थ केयर 50’ की सूची में तीन भारतीयों दिव्या नाग, डॉक्टर राज पंजाबी और अतुल गवांडे को भी जगह मिल चुकी है। पिछले महीने कैडिला हेल्थकेयर का एकीकृत शुद्ध लाभ 460.1 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है।
इस बीच शीर्ष स्वास्थ्य संगठन एनएटीएचईएएलटी-हेल्थकेयर फेडरेशन ऑफ इंडिया के साथ मिलकर काम करने जा रहा है। टीपीजी ग्रोथ समर्थित एशिया हेल्थकेयर होल्डिंग ने नोवा आईवीआई फर्टिलिटी के अधिग्रहण को लेकर समझौता किया है तो चिकित्सा जांच केंद्रों की श्रृंखला चलाने वाली कंपनी मेट्रोपोलिस हेल्थकेयर लिमिटेड हेल्थ केयर बिज़नेस में अपने प्रतिद्वंद्वियों को कड़ी टक्कर दे रही है। ऐसे माहौल में डॉक्टर जगदीश चतुर्वेदी के कामयाब होने की एक बड़ी वजह उनका स्वयं पेशे से चिकित्सक होना है।
उन्होंने हेल्थ केयर क्षेत्र में जरूरी सुविधाओं की कमी दूर करने के लिए तरह तरह के इनोवेशन किए। अब उनके आइडिया से हेल्थ केयर बिज़नेस में कमाई होने लगी है। डॉ चतुर्वेदी ने सेना के लिए काम आने वाला एप बनाया, जिससे सेना को एक बड़ा फायदा मिला मिला है। डॉ चतुर्वेदी मूलतः ईएनटी विशेषज्ञ हैं। देश के खासकर हेल्थकेयर सिस्टम की कमियां दूर करने के लिए उन्होंने पिछले एक दशक में 18 इनोवेशन किए हैं। वह कमियों से परेशान होने की बजाय उसे सुलझाने के उपायों में व्यस्त होते रहते हैं। उनको ऐसी मुश्किलों के समाधान का पहला आइडिया वर्ष 2008 में आया, जब उनकी ट्रेनिंग चल रही थी।
उनका पहला इनोवेशन डिजिटल कैमरा युक्त पोर्टेबल ईएनटी एंडोस्कोप रहा। डॉक्टर होने के नाते उनको इसकी कुछ ज्यादा जानकारी नहीं थी तो सबसे पहले उन्होंने एक डिजाइन फर्म को लाइसेंस दिया। वर्ष 2015 में डिवाइस लॉन्च होने के बाद उन्होंने स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में बायोडिजाइन की पढ़ाई। वहां से लौटने के बाद खुद की कंपनी स्थापित की और पुराने साइनस व नाक से जुड़ी बीमारियों में काम आने वाले उपकरण बनाने लगे। इसके साथ ही इनोवेशन करने वाले डॉक्टरों का एक नया मंच एचआईआईआईएच भी गठित किया। अब तक वह अठारह मेडिकल उपकरणों को तैयार करने में अहम भूमिका निभा चुके हैं।वह अपनी तरह से सीमित संसाधनों में मेडिकल उपकरणों का आविष्कार करने में जुटे रहते हैं। गांवों में मौजूद बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं के बीच उन्होंने यह सीखा है। अपनी पुस्तक 'इन्वेंटिंग मेडिकल डिवाइसेज- अ पर्सपेक्टिव फ़्रॉम इंडिया' में वह लिखते हैं कि कभी वह मरीज़ों की जांच के लिए लंबे शीशे और हेड लैंप का इस्तेमाल करते रहे थे जबकि उनके ही अस्पताल में फ़्लैट स्क्रीन वाली टीवी और कहीं आधुनिक टेक्नॉलॉजी मौजूद थी। तभी उनको एक ऐसा ईएनटी इंडोस्कोप तैयार करने का आइडिया मिला, जिसमें डिजिटल कैमरा भी लगा हो। उन्हे कोई ऐसा प्रॉडक्ट बनाने का पहले से अनुभव तो था नहीं, इसलिए एक दूसरी फर्म का उनको सहारा लेना पड़ा। जब तक वह ट्रेनिंग में रहे, सहयोगी डॉक्टरों ने उनके मिशन को संभाले रखा। अस्पताल के ईएनटी विभाग के दूसरे सीनियर डॉक्टरों का सहयोग मिला।
डॉ चतुर्वेदी बताते हैं कि इनोवेशन के मामले में मेडिकल पेशेवर ही नहीं, सेना के लोग भी आगे रहते हैं। ऐसे ही हैं सिंगापुर सेना के लेफ्टिनेंट कर्नल वाय सी चोए को लगता था कि उनकी सेना में पुरातन टेक्नोलॉजी ही इस्तेमाल हो रही है। उन्होंने इसे पुराने ढर्रे से बाहर निकालने के बारे में सोचना शुरू किया। उन्होंने समाधान सोल्जर एप के रूप में खोजा। यह एप सैनिकों को तो आपस में जोड़ने का काम करता ही है, उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रशिक्षण संबंधी कार्यक्रमों और जानकारियों से रूबरू भी करवाता है। जिन दिनों डॉ चतुर्वेदी के नेतृत्व में नए तरह के ईएनटी इंडोस्कोप पर काम चल रहा था, उन्होंने अमरीकी स्टैनफर्ड यूनिवर्सिटी में बायोडिज़ाइन की पढ़ाई के लिए आवेदन कर दिया। इसके लिए उन्हें भारत सरकार से मानदेय भी मिला। वर्ष 2015 में उन्होंने डिजिटल ईएनटी इंडोस्कोप लॉन्च किया तो उनकी कंपनी चल पड़ी। अब उनके एजेंडे में नाक की चिकित्सा में काम आने वाला मेडिकल उपकरण बनाना था। डॉ चतुर्वेदी का मानना है कि जब हम किसी सिस्टम का हिस्सा होते हैं तो उसमें टेक्नॉलॉजी के लिए जगह बनाना आसान होता है। यद्यपि वह यदा कदा कॉमेडी भी कर लिया करते थे लेकिन कत्तई अपने पेशे और मेडिकल उपकरणों की खोज की प्रक्रिया में लगातार बने रहे।
उन्होंने अपनी तरह तरह की संभावनाओं और स्थितियों के बीच सुरक्षित मैसेजिंग एप फॉरवर्ड हेल्थ बनाया, जिससे अब तक आठ हजार से ज्यादा डॉक्टर और नर्स जुड़ चुके हैं। अब तक उनकी कोशिशों से अठारह तरह के उपकरण मेडिकल मार्केट में उपलब्ध हैं। कुछ वर्षों तक बेंगलुरु के सेंट जॉन मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल और फोर्टिस अस्पताल से जुड़े रहे एवं मेडिकल डिवाइस इनोवेटर, लेखक और स्टैंड-अप कॉमेडियन के रूप में भी ख्याति अर्जित कर चुके डॉ चतुर्वेदी उद्यमिता और अस्पताल प्रबंधन (एनआईबीएम) में एमबीए की भी डिग्री प्राप्त क चुके हैं। कम लागत और उच्च गुणवत्ता वाले चिकित्सा उपकरणों के त्वरित विकास में उनकी मुख्य विशेषज्ञता है। वह मेडिकल क्षेत्र में स्टार्टअप कंपनियों को लगातार प्रोत्साहित कर रहे हैं। उन्हें एमआई प्रौद्योगिकी के 35 इनोवेटरों में से एक के रूप में पहचाना जाता है।