बेंगलुरु के इस इंजीनियर ने बनाया है इको फ्रेंडली मास्क, जो इस्तेमाल के बाद खुद ही पौधा बन जाता है
बेंगलुरु के एक इंजीनियर ने एक ऐसे मास्क का निर्माण किया है जो पूरी तरह से बायोडिग्रेडेबल है और ये मास्क इस्तेमाल के बाद खुद ही पौधे का रूप ले लेते है।
कोरोना वायरस महामारी के बढ़ते प्रकोप के साथ मास्क आज पूरी दुनिया भर में लोगों के जीवन का स्थायी हिस्सा बन चुके हैं। ऐसे में मास्क के उत्पादन और उपयोग में बीते समय में जबरदस्त बढ़ोत्तरी दर्ज़ की गई है, हालांकि मास्क के बढ़ते उपयोग के साथ इसके जरिये तेजी से फैलने वाले प्रदूषण ने भी लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचने का काम किया है।
इसी समस्या का समाधान बेंगलुरु के एक इंजीनियर ने खोज निकाला है और एक ऐसे मास्क का निर्माण किया है जो पूरी तरह से बायोडिग्रेडेबल है और ये मास्क इस्तेमाल के बाद खुद ही पौधे का रूप ले लेते है।
खास है ‘सीड पेपर’
रोशन राय सीड पेपर इंडिया के संस्थापक हैं और ‘सीड पेपर’ का निर्माण करते हैं। यह कंपनी पुराने कपड़ों को बायोडिग्रेडेबल पेपर में बदलने का काम करती है और फिर इस पेपर में कृत्रिम रूप से बीज जड़े जाते हैं। ऐसे में जब पेपर का उपयोग हो जाता है तब उसे जमीन पर बो दिया जाता है। इसी के साथ बायोडिग्रेडेबल पेपर में लगे हुए बीज अंकुरित होना शुरू कर देते हैं।
रोशन आमतौर पर उस कपड़े का इस्तेमाल करते हैं जिन्हे कपड़ा फैक्टरियाँ कूड़े के रूप में डम्प कर देती हैं। इन्ही कपड़ों को बायोडिग्रेडेबल पेपर में बदल दिया जाता है और फिर इसमें तुलसी, मैरीगोल्ड और अन्य हर्ब्स आदि के बीज जोड़े जाते हैं।
पर्यावरण के अनुकूल है उत्पाद
इस तरह से तैयार किया गया कागज आम कागज की तुलना में अधिक लचीला और टिकाऊ होता है। कागज का उपयोग विजिटिंग कार्ड और शादी के कार्ड के निर्माण में भी किया जाता है। कार्ड के निर्माण के दौरान इस्तेमाल की जाने वाली स्याही भी पर्यावरण के अनुकूल होती है।
इस्तेमाल हो जाने के बाद इन कागजों को आसानी से गमले में गाड़ा जा सकता है, जहां पानी मिलने के साथ ही इसके भीतर के बीज अंकुरित हो उठते हैं।
गौरतलब है कि इस इनोवेशन के साथ प्रदूषण को रोकने में बड़ी सफलता हासिल हो रही है। एक ओर जहां कपड़े के अपशिष्ट को नदियों व अन्य जल निकायों में जाने से बचाया जा रहा है वहीं दूसरी ओर बेकार हो चुके कागज का इस्तेमाल भी पौधे उगाने के लिए किया जा रहा है।
कारगर हैं ये खास मास्क
इस खास पेपर से ही इन मास्क का निर्माण किया जा रहा है जो बढ़ते प्रदूषण से निपटने में मददगार साबित हो रहे हैं। न्यूज़ 18 से बात करते हुए रोशन ने बताया है कि ये खास मास्क सुगंध भी छोड़ते हैं, इसी के साथ ये मास्क उपयोग में ना होने के बाद जमीन के संपर्क में आकर कुछ ही हफ्तों में पूरी तरह सड़ जाते हैं और पौधे के उगने में सहायक बन जाते हैं।
अनुमान है कि आज देश में हर रोज़ 30 लाख से अधिक मास्क रोजाना कूड़ेदान में डाले जा रहे हैं। कूड़े के इस भंडार से बचने के लिए बायोडिग्रेडेबल मास्क बड़े स्तर पर कारगर साबित हो सकते हैं। रोशन के पास आज भारत के साथ ही कनाडा, मेक्सिको, अमेरिका और अन्य तमाम देशों से ऑर्डर मिले रहे हैं। लोग इन खास मास्क को न सिर्फ अपने लिए खरीद रहे हैं बल्कि वे इन्हे अपने प्रियजनों को उपहार में भी दे रहे हैं।