13 सितंबर से शुरू होगी Flipkart-Amazon Sale? जानिए 99..499.. जैसे प्राइस टैग क्यों रखती हैं कंपनियां
जब भी आप किसी सेल में जाते होंगे तो वहां आपको 99, 999 या 499 जैसे प्राइस टैग दिखते होंगे. मन में एक सवाल ये जरूर उठता होगा कि 1 रुपये बचाकर कंपनी को क्या मिलता है.
आने वाला हफ्ता बहुत ही खास रहने वाला है. ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि अगले हफ्ते
की सेल (Flipkart Sale) और की सेल (Amazon Sale) शुरू हो सकती है. फ्लिपकार्ट द बिग बिलियन डेज (The Big Billion Days) सेल ला रहा है, जबकि अमेजन की तरफ से ग्रेट इंडियन फेस्टिवल (Great Indian Festival) सेल लाई जा रही है. वैसे तो दोनों में से किसी भी ई-कॉमर्स दिग्गज ने आधिकारिक रूप से सेल की तारीख का खुलासा नहीं किया है, लेकिन माना जा रहा है कि दोनों ही सेल 13 सितंबर से शुरू होंगी. दरअसल, मोबाइल ब्रांड पोको ने अपने नए बजट फोन का प्रचार करते हुए पर बिग बिलियन डेज के 13 सितंबर (The Big Billion Days Sale Date) से शुरू होने का इशारा दिया है. बता दें कि पोको (POCCO) फ्लिपकार्ट की बिग बिलियन डेज सेल का एसोसिएट स्पॉन्सर भी है. अक्सर ऐसा देखा गया है कि दोनों ही प्लेटफॉर्म एक ही तारीख के आस-पास अपनी सेल रखते हैं। ऐसे में उम्मीद है कि अमेजन की सेल भी 13 सितंबर (Great Indian Festival Sale Date) को ही शुरू हो.भले ही हम बिग बिलियन डेज सेल की बात करें या फिर ग्रेट इंडियन फेस्टिवल सेल की बात करें, दोनों में ही प्रोडक्ट की कीमतें बेहद खास रहती हैं. यहां तक कि मॉल से लेकर बाजार तक में तमाम चीजों के प्राइस टैग एक ही पैटर्न पर बनाए दिखते हैं. ये 99, 499, 999, 1999 जैसे फिगर में लिखे होते हैं. ऐसे में सवाल ये उठता है कि आखिर 1 रुपये बचाकर कंपनी को क्या मिल जाता है? क्या सिर्फ 1 रुपये का डिस्काउंट देखकर कोई उस सामान को खरीदने के लिए आकर्षित होगा? जवाब है हां, आइए समझते हैं कैसे काम करती है ये प्राइसिंग स्ट्रेटेजी.
साइकोलॉजिकल प्राइसिंग स्ट्रेटेजी होती है ये
तमाम तरह की सेल में 99, 999 या 499 जैसे फिगर यूं ही नहीं लिखे जाते हैं, यह एक मार्केटिंग स्ट्रेटेजी है. साइकोलॉजिकल प्राइसिंग स्ट्रेटेजी के तहत ग्राहकों को लुभाने के लिए ऐसे प्राइस टैग रखे जाते हैं. दरअसल, जब भी एक ग्राहक किसी प्रोडक्ट की कीमत को 9 के फिगर में देखता है तो वह उसे कम लगती है. जैसे अगर कोई ग्राहक 499 रुपये कीमत देखता है तो एक नजर में यह कीमत उसे कम लगती है, लेकिन जब वह 500 रुपये की कीमत देखता है तो यह उसे ज्यादा लगती है. हालांकि, पहली नजर के बाद हर कोई सही कीमत समझ जाता है, लेकिन 99 वाला फिगर उसका ध्यान एक बार प्रोडक्ट या सर्विस की तरफ खींच देता है.
एक्सपेरिमेंट से भी साबित हो चुका है ये
साइकोलॉजिकल प्राइसिंग स्ट्रेटेजी को लेकर शिकागो यूनिवर्सिटी और एमआईटी की तरफ से एक एक्सपेरिमेंट भी किया जा चुका है. इस एक्सपेरिमेंट के तहत उन्होंने महिलाओं के कपड़ों की कीमत को 34 डॉलर, 39 डॉलर और 44 डॉलर की कैटेगरी में रखा, जिससे इस प्राइसिंग स्ट्रेटेजी को मजबूती मिली. आपको जानकर हैरानी हो सकती है कि 39 डॉलर वाले कपड़े सबसे अधिक बिके. यह देखकर शिकागो यूनिवर्सिटी और एमआईटी के प्रोफेसर भी हैरान थे. 99 वाले फिगर के प्राइस टैग वैसे तो हर कंपनी अपने प्रोडक्ट पर लगाती है, लेकिन सेल के दौरान ऐसे प्राइस टैग कुछ ज्यादा ही दिखते हैं.
1 रुपये बचाकर क्या मिल जाता है?
वैसे तो आप साइकोलॉजिकल प्राइसिंग स्ट्रेटेजी को समझ ही चुके हैं, लेकिन इस 1 रुपये का कैश पेमेंट के बाजार में एक बड़ा रोल है. 1-1 रुपये कर के कंपनी लाखों रुपये कमा सकती है. ऐसे बहुत से लोग होते हैं जो किसी दुकान या स्टोर से सामान खरीदते हैं और अगर उनका बिल 99 के फिगर में आता है तो वह 1 रुपये छोड़ देते हैं. अगर दुकान छोटी है तो यह 1 रुपया दुकान मालिक की जेब में जाता है, जबकि अगर कोई बड़ा स्टोर है तो कैश काउंटर पर खड़े व्यक्ति को इसका फायदा होता है. वैसे तो चीजों के दाम 1 रुपये कम रखने का मकसद साइकोलॉजिकल प्राइसिंग स्ट्रैटेजी था, लेकिन 1 रुपये ना लौटाकर इससे एक अलग ही तरह की कमाई की जा रही है.