प्रेमासक्त शब्दों की जादूगर अमृता प्रीतम पर गूगल ने बनाया डूडल
पद्मविभूषण, भारतीय ज्ञानपीठ, पद्मश्री से प्रतिष्ठित पंजाबी लेखिका-कवयित्री अमृता प्रीतम की 100वीं जन्मशताब्दी पर गूगल ने अपने होम पेज पर डूडल बनाया है। माना जाता है कि जिस समय वह शादीशुदा होने के बावजूद पूरी निर्भीकता से प्रेम संबंधों में जी रही थीं, भारतीय परिवेश में लिव इन रिलेशन का वह पहला वाकया रहा होगा।
उर्दू-हिंदी-पंजाबी भाषात्रयी में मशहूर लेखिका अमृता प्रीतम की 100वीं जयंती पर गूगल ने उनके प्रति सम्मान प्रकट करते हुए अपने होम पेज पर खास डूडल बनाया है। अमृता प्रीतम का वर्ष 2005 में निधन हो गया था। उनके पास मानवीय भावनाओं का बारीकी से चित्रण करने का बेमिसाल हुनर था। उन्होंने कई एतिहासिक घटनाओं पर कहानियां और उपन्यास लिखे। उनका जन्म पंजाब के गुजरांवाला जिले में 31 अगस्त 1919 को हुआ था।
अमृता ने अपनी लोकप्रिय आत्मकथात्मक कृति 'रसीदी टिकट' में अपने उथल-पुथल भरे जीवन के सारे पन्ने पाठकों के सम्मुख बिखेर दिए हैं कि जिनमें जीवन की जो खूबियां-खराबियां तलाशनी हों, उसे पा ले, सहेज ले। अपने वैवाहिक जीवन से बहुत पहले मुक्ति पाकर उन्होंने प्रेम के लिए अपना खुद का ठीहा (लिव इन रिलेशन) तलाश किया और उसका जीवन भर निर्वाह किया। उनका ज्यादातर समय लाहौर में बीता। वहीं उनकी पढ़ाई भी हुई। माना जाता है कि जिस समय वह शादीशुदा होने के बावजूद पूरी निर्भीकता से प्रेम संबंधों में जी रही थीं, भारतीय परिवेश में लिव इन रिलेशन का वह पहला वाकया रहा होगा।
अमृता प्रीतम को बहुत कम उम्र से ही कहानी, कविता और निबंध लिखने का शौक था। उनका पहला कविता संग्रह उस वक़्त प्रकाशित प्रकाशित हुआ, जब वह मात्र 16 साल की थीं। एक सौ से ज्यादा पुस्तकों की रचनाकार अमृता को पंजाबी भाषा की पहली कवयित्री माना जाता है। भारत-पाकिस्तान बंटवारे पर उनकी पहली कविता 'अज आंखन वारिस शाह नू' काफी चर्चित रही, जिसमें उन्होंने 1947 में हुए भारत-पाक बंटवारे का मार्मिक रेखांकन किया है।
सदियों से कवियों लेखकों के प्रति पाठकों में जो अपार आकर्षण पनपता रहा है, वह उन कवियों लेखकों की शब्दों के प्रति अटूट आस्था का ही प्रतिफल है। आज भी अपने विशाल पाठक वर्ग के प्रति कुछ ऐसे लेखक हैं जो सबसे ज्यादा पढ़े और सराहे जाते हैं। अमृता ऐसी ही एक शख्सियत हैं, जिन्हें पढ़ने वालों का एक बड़ा वर्ग है और जिनके लिखे में संवेदना की एक ऐसी सिहरन है, जिससे गुजरते हुए लगता है, यह जैसे हमारे भीतर की आवाज है, यह हमारा अपना भोगा और बरता हुआ सच है।
अमृता प्रीतम ने अपने जीवन में कुल 28 उपन्यास लिखे। 'पिंजर' उनका काफी लोकप्रिय उपन्यास है, जिसमें भी देश बंटवारे की पृष्ठभूमि पर आधारित एक मार्मिक कहानी का चित्रण है। इस उपन्यास पर 2002 में इसी नाम से एक फिल्म बनाई गई थी। उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो के लिए भी काम किया। उन्होंने एक महिला की जिंदगी में आने वाली कठिनाइयों और संघर्ष पर भी खुलकर लिखा है। अमृता की किताबों का अनेक भाषाओं में अनुवाद है। उनको देश का दूसरा सबसे बड़ा सम्मान पद्मविभूषण मिला। साहित्य अकादमी पुरस्कार से भी उनको सम्मानित किया गया।
वर्ष 1986 में अमृता प्रीतम को राज्यसभा के लिए नामित किया गया। उन्होंने अपनी लेखनी को कुछ इस तरह साधा, जैसे एक संगीतज्ञ वीणा के तारों को साधता है। उनके शब्द उनकी मन-वीणा से निकले हुए प्रतीत होते हैं जिन्होंने लाखों लोगों को जीवन जीने का सलीका सिखाया, प्रेम के लिए मरना मिटना सिखाया। उनको 1982 में 'कागज ते कैनवस' के लिए भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार और 1969 में पद्मश्री, 2004 में पद्मभूषण से प्रतिष्ठित किया गया।