भारत की आधी आबादी ने खोला तरक्की का नया द्वार- 'महिला बाजार'
ग्लोबलाइज तरक्की के दौर में 'महिला बाजारों' के माध्यम से भारत की आधी आबादी का बेमिसाल सशक्तीकरण हो रहा है। वे दिन लद चुके, जब आमतौर पर महिलाएं फाइनेंशियल मैनेजमेंट के लिए अपने पति पर निर्भर हुआ करती थीं। अब वे 'महिला बाजार' में खुद कमाई के साथ अपने पैसे का हिसाब भी रखने लगी हैं।
दिग्गज निवेशक वॉरेन बफे कहते भी हैं कि महिलाओं को निवेश करने पर ध्यान देना चाहिए। आज भारत के श्रम बाजारों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाना चाहे जितना चुनौतीपूर्ण हो, आधी आबादी दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मणिपुर, मध्य प्रदेश, झारखंड समेत देश के कई इलाकों में 'महिला बाजार' एक ऐसी दस्तक दे रही है, जिसे सुनकर कोई भी चौंक सकता है। इस दिशा में महिलाओं के स्वयं सेवी संगठनों की भूमिका तो गज़ब की है। दिल्ली के सीविक सेंटर के पीछे टैगोर रोड पर वर्ष 2007 से 'दिल्ली सेवा' संगठन इस दिशा में महिलाओं को प्रोत्साहित कर रहा है।
ये महिला बाजार, बाकी बाज़ारों की तुलना में कुछ अलग सा होता है। सैकड़ों की तादाद में वहां महिलाएं अपनी खुद की रेडी, पटरी पर दुकानें लगाकर हज़ारों की कमाई करने लगी हैं। ये महिलाएं अपने घर के आस-पास की कालोनियों में बर्तन बेचकर, वहां से पुराने कपड़े जुटाकर इस महिला बाज़ार में बेच रही हैं।
इसी तरह आगरा (उ.प्र.) का 'हींग की मंडी' बाजार महिलाओं के फुटवियर के लिए पूरी दुनिया में फेमस हो चुका है। यहां किफायती लेडीज फुटवियर की अलग मंडी है। भोपाल (म.प्र.) में 72 वर्षों से महिला बाजार लग रहा है। महिलाओं के इस मेला बाजार में ज्यादातर दुकानदार और खरीददार महिलाएं होती हैं। 'वीमेन इंटरप्रेन्योर फेयर' नाम के इस बाजार में दस साल से बड़े लड़कों की एन्ट्री पर रोक है।
आज की जागरुक महिलाएं ऑर्गेनिक फसलों की उपज और घरेलू सामानों की खरीद-फ़रोख्त के एक और मोरचे पर दस्तक दे रही हैं। स्टार्टअप के अलावा वे सामुदायिक स्तर पर अलग-अलग समूहों में आधुनिक बाजारों को गति देने लगी हैं। मसलन, गुमला (झारखंड) की पंद्रह महिलाओं का एक समूह वर्षों से खाली पड़ी बंजर जमीन पर औषधीय खेती कर रहा है। ये महिलाएं औषधीय खेती के उत्पाद ग्रामीण सेवा केंद्र पर बेचकर अपनी आमदनी बढ़ा रही हैं। उन 15 महिलाओं ने पहली बार खाली बंजर 15 एकड़ जमीन में लेमन ग्रास लगाई, फिर बेचा तो उससे पंद्रह हजार रुपए का मुनाफा हुआ।
इम्फाल (मणिपुर) का 'ईमा कीथल' महिला बाजार तो आज भारत ही नहीं, पूरी दुनिया की सुर्खियों में है। बताते हैं कि इस बाजार की नींव पांच सौ साल पहले 16वीं शताब्दी में पड़ी थी। इसे विश्व का सबसे बड़ा और अपनी तरह का पहला 'महिला बाजार' माना जाता है। इसमें कोई भी पुरुष दुकानदार नहीं होता है। इस बाजार की महिलाएं एक जमाने में अंग्रेजों से भी टक्कर ले चुकी हैं। इस बाजार का नाम है- ईमा कीथल।
मणिपुरी भाषा में मां को 'ईमा' कहते हैं। म्यांमार सीमा से 65 किलोमीटर पहले उत्तर-पूर्व के एक दूर-दराज़ के कोने में यह अनूठा बाज़ार लगता है। इस 'मदर्स मार्केट' को चार हजार मणिपुरी महिलाएं चला रही हैं। यह बाज़ार मणिपुरी महिलाओं की सामाजिक और राजनीतिक सक्रियताओं का भी केंद्र है।
मेहमानों के लिए इमा कैथल का माहौल दोस्ताना है। अगर कोई यहां की इमाओं से निजी तौर पर मिलना चाहे तो उसका भी स्वागत होता है। यह बाज़ार तीन बड़ी दो-मंजिला इमारतों में लगता है।
'इमा कैथल' बाजार को संभाल रही इन चार हजार महिलाओं का एक 'ख्वैरम्बंद नूरी कैथल' संगठन भी है, जिसका बिल्डिंग की ऊपरी मंज़िल पर दफ़्तर है। इमा कैथेल की ज़्यादातर महिलाएं मैतेई जातीय समूह की हैं, जो मणिपुर के मूल निवासी हैं। वर्ष 2003 में राज्य सरकार ने इमा कैथल की जगह एक आधुनिक शॉपिंग सेंटर बनाने की घोषणा की थी। नई सदी में इस बाज़ार के लिए वह पहला मौका था जब यहां विरोध का झंडा बुलंद हुआ। इमाओं ने रात भर धरना दिया, जिसके बाद सरकार को अपनी योजना रद्द करनी पड़ी।
इमा कैथल की तीन इमारतों के सामने सैकड़ों अन्य महिलाएं फल, सब्जियां, जड़ी-बूटियां और सुखाई हुई मछलियां बेचती हैं। जनवरी 2019 में यहां की महिलाएं विमान से दिल्ली पहुंचकर संसद तक संघर्ष कर चुकी हैं।