FD के ऑटो रिन्युअल का ऑप्शन कैसे करा सकता है नुकसान, 4 पॉइंट में समझें
नॉन-ऑटो रिन्यूअल का विकल्प चुना है तो एफडी अपने आप रिन्यू नहीं होती. ग्राहक को बैंक में जाकर इसे रिन्यू कराना होता है.
ग्राहकों को फिक्स्ड डिपॉजिट (Fixed Deposit or FD) पर ब्याज का नुकसान न हो और उनके लिए सुविधा भी रहे, इसके लिए बैंक, एफडी की मैच्योरिटी पर उसके ऑटो रिन्युअल की सुविधा देते हैं. एफडी के ऑटो रिन्युअल का अर्थ होता है कि एफडी कराते वक्त चुने गए मैच्योरिटी पीरियड के पूरा हो जाने के बाद एफडी अपने आप आगे, उतनी ही अवधि के लिए रिन्यू हो जाती है. यानी मैच्योरिटी पर एफडी का पैसा अपने आप उतने ही वक्त के लिए रीइन्वेस्ट हो जाता है. इससे ग्राहक को ब्याज का नुकसान नहीं होता. कुछ बैंकों में यह उतनी बार ऑटो रिन्यू हो जाती है, जितनी बार की मंजूरी जमाकर्ता ने दी है.
ऑटो रिन्युअल का विकल्प, ग्राहक या तो एफडी कराते वक्त या फिर एफडी टर्म के दौरान कभी भी चुन सकते हैं. अगर ऑटो रिन्युअल ऑप्शन चुना है और इसे मॉडिफाई करना चाहते हैं तो एफडी के मैच्योर होने से पहले ऐसा किया जा सकता है. इसके लिए एफडी करते वक्त ग्राहकों का प्रीअप्रूवल लिया जाता है. इस विकल्प में ग्राहक को खुद से बैंक में जाकर एफडी को मैनुअली रिन्यू कराने की जरूरत नहीं होती.
वहीं अगर ग्राहक ने नॉन-ऑटो रिन्यूअल का विकल्प चुना है तो एफडी अपने आप रिन्यू नहीं होती. ग्राहक को बैंक में जाकर इसे रिन्यू कराना होता है. ग्राहक चाहे तो इसे पहले वाली अवधि तक ही रिन्यू करा सकता है या फिर किसी दूसरे मैच्योरिटी पीरियड के लिए नई एफडी करा सकता है.
आज के टाइम में जब बैंक जल्दी-जल्दी एफडी की ब्याज दरों में बदलाव कर रहे हैं, ऐसे में ऑटो रिन्युअल ऑप्शन से बचना बेहतर रह सकता है. इसकी वजह है कि इस ऑप्शन में बैंक ग्राहक को कुछ नुकसान हो सकते हैं. आइए इन पर डालते हैं एक नजर...
1. अगर आप एफडी के ऑटो रिन्युअल का ऑप्शन चुनते हैं तो जैसा कि कहा कि यह अपने आप उतने ही मैच्योरिटी पीरियड के लिए फिक्स हो जाएगी. यानी ग्राहक के पास अपनी मर्जी से, अपने मन का मैच्योरिटी पीरियड चुनने का विकल्प नहीं रहता. वहीं अगर ऑटो रिन्युअल का विकल्प न चुना जाए तो ग्राहक अपनी मर्जी का मैच्योरिटी पीरियड चुन सकता है और एफडी को अपनी पसंद की समयावधि के लिए आगे फिक्स करा सकता है.
2. एफडी खुलवाने के टाइम पर किसी मैच्योरिटी पीरियड के लिए जो ब्याज दर लागू होती है, पूरे मैच्योरिटी पीरियड के दौरान वही ब्याज दर लागू रहती है. ऐसे में अगर एफडी ऑटो रिन्यू हो जाती है तो बैंक ग्राहक यह तुलना नहीं कर पाएगा कि किसी और मैच्योरिटी पीरियड पर उसे ज्यादा बेहतर रिटर्न/ब्याज मिल रहा है या नहीं. एफडी की मैच्योरिटी पर हो सकता है कि उसी अवधि के लिए ब्याज, पहले की तुलना में बढ़ गया हो या घट गया हो. अगर ब्याज घटा है तो एफडी ऑटो रिन्यू होने पर नुकसान होगा. ऑटो रिन्युअल में ग्राहक को पहले वाले मैच्योरिटी पीरियड और उसके लिए निर्धारित ब्याज के साथ ही जाना होगा.
3. ऑटो रिन्युअल न चुनने का एक फायदा यह है कि मैच्योरिटी पीरियड पूरा होने के बाद अगर आपको लगता है कि मौजूदा बैंक में आपको रिटर्न अच्छा नहीं मिल रहा है तो आप उस मैच्योर हो चुकी एफडी का पैसा निकालकर किसी और बैंक में एफडी करा सकते हैं, जहां आपको बेहतर रिटर्न मिल रहा हो.
4. अगर आप मैनुअल एफडी रिन्युअल के साथ जाते हैं तो एफडी के मैच्योर होने पर आप यह भी तय कर सकते हैं कि आपको आगे एफडी ही करानी है या फिर इस मैच्योरिटी अमाउंट को किसी और निवेश विकल्प में डालना है. जैसे कि म्यूचुअल फंड, शेयर, आरडी, PPF आदि.